त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे ओमप्रकाश राजभर!
प्रत्याशी चयन में प्रमुख दलों का जिताऊ पर फोकस, भाजपा ने सपा नेता और पूर्व मंत्री कालीचरण राजभर को मैदान में उतारा - बसपा ने पूर्व मंत्री सादाब फातिमा पर लगाया दांव, ओमप्रकाश से पुराना हिसाब बराबर करना चाहती है बसपा प्रमुख मायावती
लखनऊ(अतुल मोहन सिंह)। योगी सरकार में मंत्री रहे सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर को अपने ही गढ़ में मुंह की खानी पड़ सकती है। सपा मुखिया अखिलेश यादव की साइकिल पर सवार होने के बाद भी इस बार चुनाव में उनकी राह आसान नहीं है। उनकी जीत में कई बड़ी बाधाएं खड़ी हो गईं हैं। अगर यह कहा जाए कि जहूराबाद में उनके समीकरण बिगड़ गया है, तो गलत नहीं होगा। इसकी कई वजहें हैं। इस बार भाजपा और बसपा ने उनको घर में ही घेर लिया है। स्थानीय जानकारों की माने तो ओमप्रकाश की सियासी नाव में इस बार कई छेद हो चुके हैं। भाजपा से बगावत कर विधानसभा पहुंचने की उनकी मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के मुखिया ओमप्रकाश राजभर की राह काफी मुश्किल हो गई है। सबसे बड़ी बाधा शिवपाल सिंह यादव की करीबी एवं अखिलेश सरकार में मंत्री रहीं सैयदा शादाब फातिमा हैं। प्रसपा का गठबंधन होने के बाद जब समाजवादी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। इधर बदली परिस्थितियों में बसपा के टिकट पर कई बार चुनाव लड़ चुके पूर्व विधायक कालीचरण राजभर भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया है। कालीचरण 2002 और 2007 में बसपा से विधायक बनने में सफल रहे हैं। बसपा के टिकट ओर ही वह 2012 और 2017 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे। 2022 के चुनाव में वह भाजपा से मैदान में हैं। ऐसे में जहूराबाद में जिताऊ प्रत्याशी की तलाश में बसपा प्रमुख मायावती ने सपा नेता एवं पूर्व मंत्री सैयद सादाब फातिमा पर दांव लगा दिया। सादाब फातिमा के निर्दलीय लड़ने की सूचना पर मायावती ने उन्हें पार्टी कार्यालय बुलाकर बसपा का टिकट थमा दिया है।
इतना ही नहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया और योगी सरकार में पिछड़ा कल्याण मंत्री रहे ओम प्रकाश राजभर की राह में कई और बड़े सियासी कांटे आ गए हैं। राजभर ने योगी सरकार और भाजपा गठबंधन से कन्नी काटने के लिए कई सारे बहाने बनाए थे, लेकिन इस बार उनके गले की फांस शादाब फातिमा बन गई हैं। सादाब फातिमा और कालीचरण कैसे मुसीबत बन गए इस बात को समझने के लिए 10 वर्ष पूर्व के विधानसभा चुनाव को याद करना पड़ेगा। वर्ष 2012 में जहूराबाद विधानसभा से ओमप्रकाश राजभर और सैय्यदा शादाब फातिमा एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे। उस वक्त शादाब फातिमा समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार थीं और ओम प्रकाश राजभर अपनी सुभासपा से चुनाव लड़ रहे थे। उस चुनाव में शादाब फातिमा ने न सिर्फ जीत हासिल की, बल्कि ओमप्रकाश राजभर की ऐसी दुर्गति हुई कि उन्हें तीसरे पायदान पर रह कर संतोष करना पड़ा था। ओमप्रकाश के खाते में 48 हजार 865 वोट गए थे, जबकि शादाब फातिमा ने 67 हजार 12 वोट हासिल किए थे। दूसरे स्थान पर रहे बसपा के कालीचरण राजभर ने 56,534 मत प्राप्त किए थे।
अखिलेश ने नहीं दिया टिकट तो बागी हुईं फातिमा : सैयद शादाब फातिमा अखिलेश यदाब सरकार में मंत्री रही हैं। उनको शिवपाल सिंह यादव का करीबी माना जाता है। शादाब को उम्मीद थी कि इस बार उन्हें टिकट जरूर मिलेगा। हालांकि उनकी उम्मीदों पर सपा ने पानी फेर दिया। समाजवादी परिवार में जब चाचा-भतीजा विवाद गहराया था तो उस वक्त शादाब फातिमा ने चाचा के खेमे को चुना था। अब भले ही चाचा-भतीजा एक होकर चुनाव लड़ रहे हों, लेकिन शादाब फातिमा की बगावत की सजा अखिलेश ने दे ही दी। अब शादाब फातिमा को गुस्सा आ गया है और उन्होंने ओमप्रकाश राजभर के खिलाफ चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। फातिमा निर्दलीय भले ही वोटकटवा साबित होंती, पर बसपा प्रमुख ने उन्हें अपना आशीर्वाद देकर और मजबूती प्रदान कर दी है। बसपा मुखिया की भी ओमप्रकाश से पुरानी अदावत है। इस तरह बसपा मुखिया ओमप्रकाश को हरवाकर अपना पुराना हिसाब बराबर करना चाहती हैं। बसपा की सादाब फातिमा और भाजपा के कालीचरण के बीच में फंसे ओमप्रकाश को करारी हार झेलनी पड़ सकती है। ओमप्रकाश क्यों हार सकते हैं, इस सवाल का जवाब समझने के लिए आपको जहूराबाद सीट पर वोट का गणित और जातीय समीकरण का हिसाब-किताब समझना होगा।
जहूराबाद में कौन-कितना बलवान : जहूराबाद सीट की बात करें, तो यहां करीब 3 लाख 74 हजार वोटर्स हैं। वर्षों से इस सीट पर सपा और बसपा की टक्कर होती आई है। यह बात और है कि 2017 में मोदी लहर के दौरान जब सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर ने भाजपा का साथ पकड़कर जीत हासिल कर ली थी। इस बार का मुकाबला बेहद अलग और कड़ा होने वाला है। जातीय समीकरण की बात करें तो इस जहूराबाद विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक दलित वोटर्स हैं। यहां दलित वोटर्स की तादाद तकरीबन 75 हजार है। दूसरे नंबर पर राजभर मतदाता हैं, जिनकी संख्या करीब 67 हजार है। वहीं यहां यादव मतदाताओं की संख्या करीब 45 हजार हैं। यहां 35 हजार लोनिया चौहान, करीब 30 हजार मुस्लिम मतदाता और करीब 15 हजार ब्राह्मण वोटर्स हैं।
सादाब फातिमा आसान कर रहीं भाजपा की राह : स्थानीय जानकारों के अनुसार, शादाब फातिमा को बसपा ने मैदान में उतारकर ओमप्रकाश राजभर के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। कहीं न कहीं दलित वोटर्स का झुकाव बसपा की ओर होगा, जिनकी तादाद सबसे अधिक है। इतना ही नहीं, ओमप्रकाश राजभर को लेकर उनके क्षेत्र में भारी नाराजगी भी देखी जा रही है। राजभर मतदाताओं में बंटवारे के लिए भाजपा ने कालीचरण को अपना उम्मीदवार बनाया है। पिछले पांच वर्ष भाजपा ने राजभर समाज के कई नेताओं को सम्मान देकर अपने साथ जोड़ लिया है। संघ परिवार से जुड़े अजय सिंह सिकरवार बताते हैं कि टिकट कटने से नाराज वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह भी भाजपा प्रत्याशी कालीचरण राजभर का समर्थन कर सकते हैं। ओमप्रकाश और फातिमा की लड़ाई में कालीचरण के हाथ सफलता लगने की पूरी संभाबना बन चुकी है।
भाजपा ने समाज को दिया प्रतिनिधित्व और सम्मान : भारतीय जनता पार्टी ने राजभर समाज को प्रतिनिधित्व के साथ पर्याप्त सम्मान दिया। बगावत करने वाले ओमप्रकाश राजभर भी पहली बार विधायक भाजपा के सहयोग से बन सके। उनको मंत्री भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही बनाया। योगी सरकार, महाराजा सुहेलदेव को सम्मान देने के लिए बहराइच के चित्तौरा में विशाल स्मारक बनवा रही है। आजमगढ़ में महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य चल रहा है। भाजपा ने हरिनारायण राजभर को लोकसभा सांसद बनाया था। अनिल राजभर को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। बलिया के बड़े नेता सकलदीप राजभर को राज्यसभा सांसद बनाया। भाजपा ने सब्जी विक्रेता के बेटे विजय राजभर को घोसी से विधायक बनाया। भाजपा ने महाराजा सुहेलदेव सेना के अध्यक्ष बब्बन राजभर एवं भारतीय संघर्ष समाज पार्टी के मदन राजभर को अभी हाल ही में शामिल किया है।
चकनाचूर होने वाला है ओमप्रकाश का दंभ : आंकड़े बताते हैं कि जहूराबाद विधानसभा क्षेत्र में सपा और बसपा की तगड़ी टक्कर होती आई है। पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा और सुभासपा गठबंधन को मौका दिया। ओमप्रकाश राजभर कहते हैं कि योगी सरकार ने पिछड़ा वर्ग के साथ धोखा किया, इसी वजह से उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ा। योगी सरकार को उखाड़ फेंकने का दंभ भरने वाले राजभर अपनी ही सीट बचाने में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं। फिलहाल ओमप्रकाश की हार कितनी बड़ी होगी, इस सवाल का जवाब तो आगामी 10 मार्च को ही मिल सकेगा।
सपा-बसपा की होती आई है टक्कर : जहूराबाद विधानसभा सीट पर सपा और बसपा की टक्कर होती आई है। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनावों में यहां सुभासपा ने जीत दर्ज की। जहूराबाद सीट बलिया लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। 2019 के चुनाव में भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त ने सपा के सनातन पांडेय को 15,519 मतों से हराकर बलिया लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी। इससे पहले के चुनावों की बात करें तो 1989 में कांग्रेस के टिकट पर वीरेंद्र सिंह, 1991 में जनता दल के टिकट पर सुरेंद्र सिंह, 1993 में बसपा के टिकट ओर इश्तियाक अंसारी और 1996 में भाजपा के टिकट पर गणेश ने जीत दर्ज की थी। 2002 एवं 2007 में बसपा से कालीचरण राजभर, 1012 में सपा से सैयदा शादाब फातिमा और 2017 में सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर विधायक बने।
विधानसभा चुनाव : 2012
सैयदा शादाब फातिमा : सपा : 67,012 (33.02%)
कालीचरण राजभर : बसपा : 56,534 (27.86%)
ओमप्रकाश राजभर : सुभासपा : 48,865 (24.08%)
सुरेंद्र सिंह : कांग्रेस : 14,968 (07.38%)
विधानसभा चुनाव : 2017
ओमप्रकाश राजभर : सुभासपा : 86,583 (37.56%)
कालीचरण राजभर : बसपा : 68502 (29.72%)
महेंद्र : सपा : 64574 (28.01%)
कन्हैया : निषाद पार्टी : 2681 (1.16%)
विधानसभा चुनाव : 2022
सुभासपा : ओमप्रकाश राजभर
भाजपा : कालीचरण राजभर
बसपा : सैयदा सादाब फातिमा
कांग्रेस : मुन्ना सिंह
विधानसभा चुनावों के विजेता
1989 – वीरेंद्र सिंह (कांग्रेस)
1991 – सुरेंद्र सिंह (जनता दल)
1993 – इश्तियाक अंसारी (बसपा)
1996 – गणेश (भाजपा)
2002 – कालीचरण राजभर (बसपा)
2007 – कालीचरण राजभर (बसपा)
2012 – सैयदा शादाब फातिमा (सपा)
2017 – ओमप्रकाश राजभर (सुभासपा)
मतदाताओं का समीकरण
कुल मतदाता : 3,77,379
दलित : 75,490
राजभर : 66,328
यादव : 43,840
चौहान : 33,997
मुस्लिम : 27,637
ब्राह्मण : 14,891