यूपी का गुंडा राज : तंत्र पर त्वरित निर्णय, प्रसन्न होता लोक
उत्तरप्रदेश अब गुंडा छवि से बाहर आ गया है। निवेशक प्रदेश में निवेश करने से घबराते नहीं हैं। अब प्रदेश में न ही दंगा फसाद के विषय दिखते हैं न ही बस और ट्रेन जलाने के। चूंकि लोक हमेशा तंत्र से परेशान होता है इसलिए तंत्र में थोड़ा सा सुधार लोक को प्रसन्न कर देता है।
वेबडेस्क। लोकतन्त्र का अर्थ है एक ऐसा तंत्र जो लोक के हितों के लिए कार्य करे। तंत्र लोक के लिए बनाया जाता है। जैसा लोक चाहता है वैसा तंत्र को कार्य करना चाहिए। जब ऐसा नहीं होता है तब लोक हताश होता है। लोक का दुर्भाग्य है कि वह एक भीड़ बनकर रह गया है। हर व्यति तंत्र से जुडऩा चाहता है क्योंकि तंत्र के माध्यम से वह सब कमाया जा सकता है जो अपने पुरूषार्थ एवं मेहनत से प्राप्त नहीं हो सकता है। लोक के माध्यम से धन नहीं कमाया जा सकता है। तंत्र के माध्यम से सपदा कमाई जा सकती है। इसलिए तंत्र पर कार्यवाही करने वाले लोग तंत्र से समन्वय बनाना चाहते हैं। जब कोई लोक का व्यक्ति लोक के लिए तंत्र का उपयोग करता है तो वह लोक के दिलों में उतर जाता है।
आजादी के बाद तंत्र का उपयोग लोक से धन कमाने में हुआ जिसके कारण जनता में सरकार के प्रति हताशा का भाव आया। 2014 के बाद जब मोदी की सरकार बनी तो उनके और लोक की राह में सबसे ज़्यादा तंत्र ही आड़े आया। तंत्र से जुड़े लोगों ने सहयोग नहीं किया। 2018 के दौरान तंत्र से जुड़े लोग नहीं चाहते थे कि 2019 में मोदी की वापसी हो। 2017 के शुरुआती दिनों में तंत्र से सामंजस्य बैठाने में योगी को भी मुश्किल आयीं। दशकों से एक ढर्रे पर चलने वाला तंत्र नये तरह के पुरुषार्थ के लिए तैयार ही नहीं था।
गायें और गौशाला जैसे विषय तंत्र के लिए नए थे। जैसे-जैसे योगी की नीतियों से तंत्र का सामंजस्य बैठता गया, तंत्र में अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप कम होता चला गया। 2022 में उत्तराखंड में जिस तरह धामी ने अपने आठ माह के कार्यकाल में ताबड़तोड़ फैसले लिए उसके बाद न तो उनके दल के लोग और न ही तंत्र के व्यवस्थित लोग चाहते थे कि उनकी वापसी हो। भितरघात और तंत्र के चक्रव्यूह में फंसा अभिमन्यु खटीमा से चुनाव भी हार गया किन्तु लोक का आशीर्वाद होने के कारण कलियुग की महाभारत में अभिमन्यु आखिरी गढ़ तोडऩे में कामयाब रहा। अभिमन्यु को यह बात अब स्पष्ट है कि तंत्र क्षणभंगुर है और लोक स्थायी। दो दिन के समय काल में घटने वाली घटनाएँ इस बात की पुष्टि करती है।
एक दिन मुख्यमंत्री अक्षय पात्र योजना के कार्यक्रम में एक बच्चे को गोद में खिलाते दिखते हैं। बच्चों के साथ बचपन की यादों में खो जाते हैं और लोक में प्रसन्नता छा जाती है। अगले दिन मुख्यमंत्री हेलीपैड से उड़ान भरते हैं और सूबे की राजधानी के डीएम और एसपी के तबादले के आदेश आ जाते हैं। किसी को कानों कान खबर नहीं होती है और मुख्यमंत्री एक झटके में तंत्र के पेच कसने का संदेश दे देते हैं। हालांकि, दोनों घटनाओं में कोई सामंजस्य नहीं है किन्तु इसके पीछे छिपे संदेश के निहितार्थ बहुत गूढ और दूरगामी परिणाम वाले हैं। ऐसे ही प्रशासनिक निर्णय लेने के कारण उत्तरप्रदेश के मुखयमंत्री लोकप्रिय हो चुके हैं।
असामाजिक तत्वों से निपटने में उनका बुलडोजर अभियान लोक को संतुष्टि का भाव देता है। वह तंत्र का उपयोग लोक के लिए कर रहे हैं और जब-जब आवश्यक होता है तब-तब तंत्र के पेच कसने की सूचनाएं आ जाती हैं। उत्तरप्रदेश अब गुंडा छवि से बाहर आ गया है। निवेशक उत्तरप्रदेश में निवेश करने से घबराते नहीं हैं। अब उत्तरप्रदेश में न ही दंगा फसाद के विषय दिखते हैं न ही बस और ट्रेन जलाने के। इसी तरह उत्तराखंड की नौकरशाही के कसते पेच उत्तराखंड में निवेश का मार्ग प्रशस्त करेंगे। चूंकि लोक हमेशा तंत्र से परेशान होता है इसलिए तंत्र में थोड़ा सा सुधार लोक को प्रसन्न कर देता है। तंत्र का खेल ऐसे समझ सकते हैं कि जिस समय फिलीपींस विश्व का सबसे गरीब देश था उस समय उसका राजा मारकोस विश्व का सबसे अमीर आदमी था।
आज भी अगर देखें तो परिवारवादी राजनीति में बहुत से नेता ऐसे हैं जिनके पास हजारों करोड़ की घोषित और अघोषित संपत्ति है। ये लोग न कोई व्यवसाय करते हैं और न ही कोई नौकरी। फिर हजारों करोड़ की संपत्ति इनके पास आती कहां से है। ये सब तन्त्र से जुडऩे का ही प्रताप था जिसके कारण ये लोग अमीर होते चले गए। तंत्र और तंत्र से जुड़े लोग कभी नहीं चाहते हैं कि इस तंत्र को बदलने की कोई आवाज़ लोक से उठे। लोक से उठी हर आवाज़ को यह तंत्र या तो दबा देगा या किसी भी माध्यम से दबवा देगा। दिल्ली, कर्नाटक, बिहार, तमिलनाडु आदि के बाद महाराष्ट्र में आखिरी परिवारवाद का गढ़ अब ध्वस्त हो चुका है। अब लोक परिवारवादी को नहीं बल्कि स्वयं के बीच के लोक को चुनना पसंद करता है। चूंकि ऐसा व्यति तंत्र का लाभ नहीं लेता है। वह सभी को अपना परिवार मानता है। चूंकि, यह वही तंत्र है जिसे ब्रिटेन ने अपने ग़ुलाम देशों के शोषण के लिए बनाया था इसलिए इस व्यवस्था के परिवर्तन होने तक इस तंत्र के माध्यम से लोक का कल्याण करना आसान कार्य नहीं है।