प्रसंगवश: एक हैं तो सुरक्षित हैं...

प्रसंगवश : अतुल तारे

Update: 2024-11-25 10:07 GMT

रांची से मुंबई की दूरी लगभग 1660 किलोमीटर है। राँची, भारत के पूर्वी दिशा में है तो मुंबई पश्चिम में | पूर्व और पश्चिम दिशा ने भारतीय राजनीति के दो विमर्श दिये हैं और साथ ही उत्तर प्रदेश ने, जो कि स्वाभाविक उत्तर में ही है। अपना भी उत्तर देकर पश्चिम के विमर्श को अपनी स्वीकृति यह कह कर दी है कि 'एक हैं तो सुरक्षित हैं । दक्षिण छोटा नागपुर और राँची में घुसपैठ बढ़ी है और भाजपा इनके लिए स्वाभाविक रूप से दुश्मन नंबर वन है। भाजपा ने यह चूक अवश्य की कि बाबूलाल मरांडी जैसे महाराष्ट्र का जनादेश यह अवसरवादी नेता और झारखंड घोषणा करता स्पष्ट दिखाई दे रहा मुक्ति मोर्चा के आधारहीन नेताओं है कि प्रदेश की सनातन और को अपने दल में स्थान ही नहीं सज्जन शक्ति ने एक स्वर में दिया बल्कि सिर पर बैठाया राष्ट्रीय हितों को अधिमान दिया है।

बाबूलाल मरांडी ने भाजपा से फिर यही स्वर झारखंड जैसे छोटे निकलने के बाद चर्च के इशारे पर से राज्य में क्यों नहीं सुनाई दिए? और उनके सहयोग की राजनीति एक विश्लेषण स्थापित करने का की, यह छिपा हुआ तथ्य नहीं प्रयास आज मीडिया के एक बड़े अटलजी और आडवाणी जी का वर्ग में हुआ है कि घुसपैठ कोई सार्वजनिक श्राद्ध कर्म किया। विषय ही नहीं था। भाजपा आज वह राज्य में बड़े नेता हैं। अनुसूचित जन जाति वर्ग का विश्वास जीतने में असफल हुई। यह निष्कर्ष दोषपूर्ण है। झारखंड में घुसपैठ अब सिर्फ विषय नहीं एक बड़ी खतरनाक समस्या बन चुकी है। रोहिंग्या और बांग्लादेश से आये मुसलमानों ने पूरे राज्य में जनसंख्या का संतुलन पूरी तरह से बिगाड़ दिया है।

न केवल संथाल परगना बल्कि कोल्हान क्षेत्र, इतना ही नहीं करिया मुंडा और रघुवर दास जैसे नेता राज्य की राजनीति से दूर किए गए और भाजपा अनुसूचित जन जाति क्षेत्र में अपना नेतृत्व इसके चलते खड़ा नहीं कर पाई। जिसका यह परिणाम है। इसलिए घुसपैठ यह विषय नहीं है। भाजपा नेतृत्व इसे समझाने की ताकत ही जमीन पर नहीं जुटा पाया। परिणाम यहाँ चुनाव जातियों में बंट गया और हेमंत सोरेन यह समझाने में सफल हुए कि दिल्ली अनुसूचित जन जाति वर्ग के खिलाफ है। और निश्चित ही केंद्र सरकार के निर्णय परिणाम तो नहीं दे पाये पर बदले की राजनीति में स्थापित हुए। यही गलती भाजपा ने पश्चिम बंगाल में की थी। उत्तर प्रदेश में लोकसभा के समय हुई| महाराष्ट्र में भी हुई थी। ममता बनर्जी को सहानुभूति मिली। अखिलेश को मिली । शरद पवार और उद्धव ठाकरे को मिली। और भाजपा लोकसभा में बहुमत से दूर हो गई। विमर्श यह स्थापित करने का षड्यंत्र हुआ कि राम मंदिर आंदोलन का कोई परिणाम नहीं । जबकि सच यह नहीं था। नेतृत्व स्वयं पर विश्वास करना भूल गया था।

प्रतिशोध की राजनीति और मूल विषय से भटकने के साथ साथ नेतृत्व आत्ममुग्धता का शिकार हुआ और जीती बाजी हार गया। लेकिन हरियाणा ने उसे फिर दिशा दी । और यही महाराष्ट्र में हुआ। महाराष्ट्र के परिणाम ने देश की राजनीति को एक दिशा दे दी है। कारण, देश के पश्चिम में जिस प्रकार उद्धव ठाकरे कांग्रेस के इशारे पर देशद्रोही ताकतों के आगे झुक गए थे। प्रदेश की जनता ने इसका सामूहिक स्वर में उत्तर दिया है। तात्पर्य यह न निकाला जाए कि सरकार शानदार काम कर रही है। समस्या वहाँ भी है, पर देश का सनातन स्वर जागा या कहें जगाने का सफल प्रयास हुआ। अब सुशासन देना भाजपा का दायित्व है। कारण भाजपा का वोटर हिन्दू वोटर है। वह मुस्लिम समुदाय की तरह वोट नहीं करता । वह राम मंदिर चाहता है। वह आतंक पर नकेल भी चाहता है। पर साथ में सुशासन भी। पुनश्चः जम्मू कश्मीर में धारा 370 को हटाया इसके लिए प्रदेश का समर्थन है। पर राज्यपाल शासन अगर सुशासन देने के वादे पर खरा नहीं उतर पाया तो परिणाम अपेक्षित नहीं आयेंगे। भाजपा नेतृत्व को चाहिये कि वह एकजुटता का संदेश भी दे, विश्वास भी रखे और बेहतर सरकार चलाये। देश हो या प्रदेश, जनता उसे चाहती है यह तय है। बस नेतृत्व दिशा न भटके।

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