रेवड़ी कल्चर रुके तो होगा विकास

मनीष खेमका

Update: 2022-07-24 15:26 GMT

वेबडेस्क। करदाताओं की मेहनत की कमाई से मुफ़्त में वोट हासिल करना भी वास्तव में भ्रष्टाचार का एक प्रकार है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के अवसर पर उन राजनीतिक दलों पर निशाना साधा जो चुनावी घोषणाओं में जनता को मुफ़्त चीज़ों का वायदा कर वोट हासिल करने के अनैतिक प्रयास में जुटे हैं। उन्होंने कहा हमें यह रेवड़ी कल्चर देश की राजनीति से हटाना होगा अन्यथा यह आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक साबित होगा। रेवड़ी बाँटने वाले कभी विकास नहीं करा सकते। रेवड़ी सरकार रेल-रोड नेटवर्क, अस्पताल, स्कूल और गरीबों का घर नहीं बनवा सकती।

मनीष खेमका चेयरमैन, ग्लोबल टैक्सपेयर्स ट्रस्ट

प्रधानमंत्री मोदी के आह्वाहन के बाद राजनीतिक दलों के बीच मुफ़्तख़ोरी का यह ओलंपिक अब बंद होना चाहिए। हमें आम जनता की जायज़ मदद या उन्हें राजनीतिक रिश्वत के बीच के फ़र्क को समझना होगा। ताकि हमारे पैसों से और बिजली बने, न कि मुफ़्त बंटे। भारतीय राजनीति में मुफ़्तख़ोरी का यह चलन नया नहीं है। कमोवेश क़रीब सभी राजनीतिक दल इसमें शामिल रहे हैं। चुनाव आयोग की सख़्ती से पहले अनेक उम्मीदवार मतदाताओं को अपनी जेब से शराब, रिश्वत और मुफ़्त उपहार बाँटते थे। अब सख़्त चुनावी नियमों के कारण भ्रष्टाचार का यह प्रकार संवैधानिक रूप लेता जा रहा है। राजनीतिक दल अब ऐसे वायदे खुलेआम अपने घोषणा पत्र में करते हैं। फिर सरकार बनने पर सरकारी ख़ज़ाने से, करदाताओं की कमाई से यह मुफ़्त रेवड़ियां मतदाताओं में बाँटी जाती है। 

ग़ौरतलब है कि संविधान के मुताबिक़ भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य है। जहाँ सरकार को निश्चित ही अपने नागरिकों के लिए सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा के उपाय करने चाहिए। यह उपाय तर्कसंगत आधार पर हों तो अधिसंख्य नागरिकों को ग़रीबी के चक्रव्यूह से बाहर निकलने में मदद कर सकते हैं। उन्हें आत्मनिर्भर बना सकते हैं। वहीं सिर्फ़ राजनीतिक लाभ से प्रेरित व उपकृत करने की गरज से बाँटी गई मुफ़्त सुविधाएँ उन्हें नकारा भी बना सकती हैं। रेवड़ी बाँटने वाले राजनीतिक दल प्रायः ग़रीब हितैषी होने का मुखौटा लगाकर इन्हें जायज़ ठहराते हैं। जबकि अब इन लोक लुभावन योजनाओं के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं।

राज्यों की बिगड़ती आर्थिक सेहत - 

भारत के सबसे बड़े ऋणदाता स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की एक ताज़ा रिसर्च रिपोर्ट इकोरैप के मुताबिक़ राजनीतिक मुफ़्तख़ोरी के चक्कर में राज्यों की आर्थिक हालत बिगड़ रही है। रिपोर्ट ने आंकड़ों के माध्यम से यह उजागर किया है कि अनेक राज्य मुफ़्त की इन योजनाओं पर अपनी राजस्व प्राप्ति से भी ज़्यादा ख़र्च कर रहे हैं। तेलंगाना अपनी राजस्व प्राप्ति का 35 प्रतिशत इन योजनाओं पर ख़र्च कर रहा है। वहीं राजस्थान, छत्तीसगढ़, आँध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, केरल अपनी राजस्व प्राप्ति का 5 से 19 प्रतिशत इन लोकलुभावन योजनाओं पर ख़र्च कर रहे हैं। इस कारण वित्तीय वर्ष 2021-22 में बिहार का राजकोषीय घाटा 11.3 और असम का 8.5 प्रतिशत होने का अनुमान है। जबकि राजस्थान का 5.2 व केरल, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश का घाटा 4 प्रतिशत को पार करने की संभावना है। ये राज्य सिर्फ़ टैक्स से होने वाली कमाई का 63% हिस्सा इन मुफ़्त की योजनाओं पर ख़र्च कर रहे हैं। 

पंजाब सरकार ने हाल ही में हर परिवार को 300 यूनिट फ़्री बिजली समेत हर महिला को एक हज़ार रुपया भत्ता देने की घोषणा की थी। इन योजनाओं पर 17 हज़ार करोड़ रुपया ख़र्च होने का अनुमान है। इसके कारण चालू वित्त वर्ष 2022-23 में पंजाब का कर्ज़ तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक हो सकता है। रिज़र्व बैंक ने चेतावनी दी है न कि इससे स्थिति बिगड़ सकती है। आज सभी राज्यों पर कुल मिलाकर 70 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ है। यदि करों का अधिकांश हिस्सा मुफ़्त उपहारों पर ख़र्च होगा तब विकास की अपेक्षा हम कैसे कर सकते हैं? 

देश को देने वाले कम लेने वाले ज़्यादा :

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों कहा था कि भारत में सिर्फ़ डेढ़ करोड़ नागरिक ही आयकर अदा करते हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल मार्च में संसद में बताया कि वित्त वर्ष 2019-20 में भारत में कुल 8.22 करोड़ करदाता थे। हालाँकि इस संख्या में व्यक्तिगत व कम्पनियों समेत सभी प्रकार के करदाता शामिल हैं। इनमें कई करोड़ करदाता ऐसे हैं जिन्होंने सिर्फ़ रिटर्न ही फाइल किया। कोई आयकर नहीं दिया। वित्त वर्ष 2018-19 में 4.32 करोड़ों लोगों ने ज़ीरो टैक्स का रिटर्न दाख़िल किया था। भारत की वर्तमान जनसंख्या 138 करोड़ है। सभी आंकड़ों को जोड़ घटाकर देखें तो पिछले अनेक वर्षों से 1 से 1.5 प्रतिशत नागरिक ही भारत में आयकर अदा कर रहे हैं। माने 100 में सिर्फ़ 2 नागरिक ही आयकर अदा करते हैं। जबकि लाभ लेने वाले 98 हैं। इसके बावजूद भी मुफ़्त सुविधाओं की माँग करना क्या हास्यास्पद नहीं है?

वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार को प्रत्यक्ष करों से कुल 56.4 प्रतिशत राजस्व प्राप्त हुआ जिसमें व्यक्तिगत आयकर का हिस्सा 28.3 प्रतिशत था। जबकि कॉर्पोरेट टैक्स का 28.1 प्रतिशत। बाक़ी का राजस्व जीएसटी व एक्साइज़ जैसे अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त हुआ था। चीन में व्यक्तिगत आयकर से सिर्फ़ 8% राजस्व मिलता है। चीन जैसे देशों के विपरीत राजस्व के मामले में भारत की निर्भरता आयकर जैसे प्रत्यक्ष करों पर ज़्यादा है। यहाँ करदाताओं की संख्या कम होने के कारण उनके ऊपर करों का भार अधिक है।

2021-22 के बजट के मुताबिक़ केंद्र सरकार को कुल 27 लाख करोड़ रुपये का कर राजस्व प्राप्त हुआ था। इसे यदि 138 करोड़ जनता में बाँट दें तो प्रत्येक नागरिक के हिस्से में साल भर में 19565 रुपये आएंगे। माने महीने में सिर्फ़ 1630 रुपये। आप ख़ुद सोचिए क्या इतने पैसे में केंद्र सरकार व सेना-पुलिस के सभी कर्मचारियों को तनख़्वाह-पेंशन समेत रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, रेल-सड़क-पुल जैसी तमाम बुनियादी सुविधाओं का ख़र्च उठाया जा सकता है?इस साल भारत का टैक्स जीडीपी अनुपात 11.7 प्रतिशत था। विश्व बैंक के मुताबिक़ किसी भी देश के स्वस्थ विकास के लिए उसका टैक्स जीडीपी अनुपात 15 से अधिक होना चाहिए। यूरोपियन यूनियन के देशों में यह अनुपात 40 से भी अधिक है। अमेरिका जैसे विकसित देश में भी यह अनुपात क़रीब 25 का है। हम सभी विकसित देशों की बेहतरीन सुविधाओं को हसरत भरी निगाह से देखते हैं। अपने देश में यह उपलब्ध न होने पर सरकार को कोसते हैं। साथ ही सरकार से मुफ़्त उपहारों का मोह भी छोड़ नहीं पाते। यह दोनों बातें एक साथ कैसे संभव हैं?

बिल्ली के गले में घंटी - 

प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार संसद में मनरेगा योजना की आलोचना करते हुए कहा था कि आज़ादी के इतने सालों के बाद भी लोगों को रोज़गार के लिए गांवों में गड्ढे खोदने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इसके साथ ही साथ उन्होंने विपक्षी दलों पर तंज कसते हुए कहा था कि क्या आप मेरी राजनीतिक समझ को कम आंकते हैं? चिंता मत कीजिए मैं इस योजना को बंद नहीं करूँगा। मैं आपकी असफलताओं के इस स्मारक को गाजे बाजे के साथ ज़िंदा रखूंगा।

मोदी के इस कथन में उनकी साफ़ गोई के साथ साथ राजनीतिक मजबूरी भी साफ़ दिखाई देती है। मुफ़्तख़ोरी का मर्ज़ है ही ऐसा। जो भी दल देशहित में सही, इस पर लगाम लगाएगा उसे इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। स्वाभाविक रूप से इसके लिए किसी भी एक दल या नेता से बलिदान की अपेक्षा करना जायज़ नहीं होगा। इसके लिए राजनीति के खेल के नियम बदलने होंगे। जो सभी पर समान रूप से लागू हों। हमें प्रधानमंत्री मोदी की सराहना करनी होगी की राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद उन्होंने बिल्ली के गले में घंटी बाँधने का साहस दिखाया है। जहाँ भी संभव है वे मुफ़्तख़ोरी की रोकथाम कर रहे हैं। पहले संसद की कैंटीन में बेहद कम दरों पर मिलने वाले भोजन की ख़ूब चर्चा होती थी। व्यंग होता था। दिसंबर 2019 में इसकी सब्सिडी को पूरी तरह ख़त्म कर दिया गया जिससे अब प्रति वर्ष 17 करोड़ रुपये से ज़्यादा की बचत हो रही है।

साथ ही साथ देश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि व मुफ़्त राशन जैसी योजनाओं में अपात्रों को दी गई सहायता भी अब सरकार वापस वसूल रही है। उत्तर प्रदेश में इस साल अप्रैल में तीन लाख ऐसे किसानों को चिन्हित किया गया था जो अपात्र होने के बावजूद इस किसान सम्मान निधि का लाभ ले रहे थे। उससे अब यह पैसे वापस वसूले जा रहे हैं। देश के सभी राजनीतिक दलों को मुफ़्त सुविधाओं की तर्कसंगत सीमा तय करनी चाहिए। हमारे नेताओं को मुफ़्तख़ोरी और मदद में फ़र्क़ मालूम होना चाहिए।

भारत में मुफ़्त अनाज योजना पर इस साल 3 लाख 70 हज़ार करोड़ खर्च हो सकता है। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने आगाह किया है कि इससे सरकारी ख़ज़ाने की हालत ख़राब हो सकती है। देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति वी सुब्रमणियन भी कह चुके हैं कि करदाताओं से प्राप्त राजस्व को सब्सिडी पर ख़र्च नहीं किया जाना चाहिए। भारत का सबसे बड़ा कोयला घोटाला 1.86 लाख करोड़ का माना जाता है। 2G स्पेक्ट्रम घोटाला 1.76 करोड़, विजय माल्या 9000 करोड़, नीरव मोदी 11400 करोड़ और बोफ़ोर्स घोटाला सिर्फ़ 64 करोड़। सबसे मज़े की बात तो यह कि घोटाले की यह सारी रक़म अनुमान भर हैं। दावा हैं, वास्तविकता नहीं। जबकि राजनीतिक मुफ़्तख़ोरी की यह रक़म आने पाई के साथ लाभार्थी के खाते में ट्रांसफर होती है।

मोदी सरकार ने इस पर अंकुश लगाने की मुहिम शुरू की है। पात्र व्यक्ति को ही लाभ मिले, फ़र्ज़ी बंदरबांट न हो यह सुनिश्चित करने का ईमानदार प्रयास हो रहा है। फिर भी राजनीति के इस खेल में किसी एक दल से सारी नैतिकता की उम्मीद नहीं की जा सकती। सब साथ आएँ तभी बात बनेगी। वरना मुफ़्तख़ोरी ख़त्म करने वाले दल को ग़रीब विरोधी क़रार दिया जाएगा।

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