कांग्रेस चिंतन शिविर की चिंता और पांचजन्य का अमृत महोत्सव महामंथन
फिरोज बख्त अहमद
पिछले दिनों भारत में दो अति विशेष कार्यक्रम हुए, जिनमें एक तो था कांग्रेस का "नव संकल्प शिविर" और दूसरा था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पत्रिकाओं, "ऑर्गनाईजर" और "पांचजन्य" का अमृत महोत्सव महामंथन, अर्थात 75 वर्ष की कर्मठ कामयाबी, क्योंकि आज ये दोनों पत्रिकाएं, "इंडिया टूड़े", "द वीक" और "फ्रंटलाइन" को टक्कर दे रही हें! एक ओर तो भाजपा के मुख्यमंत्री, यानि, योगी आदित्यनाथ, पुष्कर सिंह धामी, जयराम ठाकुर, मनोहर लाल खट्टर, भूपेन्द्र पटेल, एन बीरेन सिंह, हिमन्त बिसवा सर्मा और प्रमोद सावंत ने अपनी पत्रिकाओं के संघर्ष व अंत में गौरवान्वित होने का गुणगान किया तो दूसरी ओर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं, जैसे सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के कुछ फुंके हुए कारतूस, जैसे पी ए चिदम्बरम, मनीष तिवारी, अजय माकन, कपिल सिब्बल, गहलोत, सचिन पायलट आदि ने इस बात की ओर ध्यानाकर्षण किया कि आखिर कांग्रेस एक संसद में एक समय 400 से ऊपर सीटें लाई थी तो आजउस से दस गुणा कम अर्थात मात्र 53 क्यों हैं, राज्य सभा में मात्र 29 क्यों हैं, 4038 असेंबली सीटों में केवल 691 क्यों हैं और अपने बूते पर जेवल 2 राज्यों और दूसरों की दया पर 2 अन्य राज्यों में ही क्यों सिमट कर रह गई है?
"पांचजन्य" के संपादक, हितेश शंकर ने बताया कि पत्रिका ने भारतवासियों ने मन-मस्तिष्क में संसकारवाद और राष्ट्रवाद की भावना जगाई और अंग्रेजों और उनके चाटुकारों द्वारा भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नष्ट करने के प्रयासों को विफल करने के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय, शांति निकेतन, गुजरात विद्यापीठ, एमडीटी हिंदू कॉलेज तिरुनेलवेल्ली, कर्वे शिक्षण संस्था व डेक्कन एज्यूकेशन सोसाइटी तथा गुरुकुल कांगड़ी जैसे संस्थान उठ खड़े हुए और छात्र-युवाओं में देशभक्ति का ज्वार जगाने लगे। प्रफुल्लचंद्र राय और जगदीश चंद्र बसु जैसे वैज्ञानिकों ने जहां अपनी प्रतिभा को भारत के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया, वहीं नंदलाल बोस, अवनींद्रनाथ ठाकुर और दादा साहब फाल्के जैसे कलाकार तथा माखनलाल चतुर्वेदी सहित प्राय: सभी राष्ट्रीय नेता पत्रकारिता के माध्यम से जनजागरण में जुटे
कांग्रेस के "नव संकल्प शिविर" के बाद मीडिया में कुछ इस प्रकार से प्रदर्शित किए जाने की कोशिश की गई कि जैसे कांग्रेस के तोते में किसी ने नई जान फूँक दी हो। यदि ऐसा हो जाए तो वास्तव में अच्छा हो क्योंकि किसी भी देश के राजनीतिक स्वास्थ्य के लिए एक सजग और मजबूत विपक्ष की आवश्यकता होती है। नाम न ज़हीर करने की शर्त व्पर एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने तो यहाँ तक कह डाला कि जब तक माँ-बेटे की कांग्रेस पर बपौती रहेगी, यह पार्टी कभी नहीं पनपेगी। खेद की बात है कि एक कांग्रेसी नेता को ऐसा कहना पड़ा। हो सकता है कि उन्होंने पार्टी की अंदरूनी स्वतन्त्रता को लेकर ऐसा प्रतीत किया हो और कुछ ऐसा पतन देखा हो कि जिस के कारण ऐसे शब्द उनके मुख से निकले। उन्होंने ग़ुलामी के माहौल पर भी अफसोस ज़हीर किया कि परिवारवाद व वंशवाद के कारण कांग्रेस लगभग समाप्ति की ओर है। कांग्रेस पार्टी में अब ये समझ बन रही है कि ये "करो या मरो" की स्थिति है। जब गांधी, मौलाना आज़ाद, पंडित नेहरू, सरदार पटेल आदि ऐसे स्वतन्त्रता सैननियों का रास्ता छोड़ देगी तो यही दुर्दशा होगी कांग्रेस की।
"पांचजन्य" और "ऑर्गनाईजर" के महामंथन के दौरान अपने सटीक स्टाइल में सीएम योगी ने कहा कि "पाञ्चजन्य" और "ऑर्गनाईजर" से उनका जुड़ाव विद्यार्थी जीवन से ही रहा है। पाञ्चजन्य" और "ऑर्गनाईजर" के संपादकों, हितेश शंकर और प्रफ़्फ़ुल केतकर की प्रशंसा करते हुए उनहोंने बताया कि भारत की सभ्यता व संस्कृति पर जो लोग छद्म रूप से हमला कर रहे हैं, उनके खिलाफ सचेत होने का और भारत की आवाज को मजबूत करने का कार्य सदैव "पाञ्चजन्य" और "ऑर्गनाईजर" ने किया है। "पाञ्चजन्य" और "ऑर्गनाईजर" हमेशा से इसको सकारात्मक ऊर्जा देता रहा है। उन्होंने कहा कि पांच वर्ष पहले के और आज उत्तर प्रदेश में बहुत बदलाव आ चुका है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकार ने चार दर्जन से भी अधिक योजनाओं को धरातल पर उतारा है। इनमें से उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। एक अच्छी बात यह भी है कि सुशासन की दौड़ में भाजपाई मुख्यमंत्रियों में आजकल होड लगी हुई है कि कौन आगे है।
इस दौरान सीएम सावंत ने कहा, "विकास कार्यों की वजह से गोवा में फिर से बीजेपी की सरकार बनी है। गोवा में सड़क, बिजली, पानी और पर्यटन आदि क्षेत्र में जो विकास कार्य हुए हैं, उसी की वजह से विधानसभा चुनाव में हमें जीत मिली है। हमें उम्मीद थी कि 22 सीटों में जीतेंगे, लेकिन 20 में ही जीत मिल सकी। सीएम ने कहा कि डबल इंजन की सरकार की वजह से राज्य के विकास को गति मिली है। बेहतर व्यवस्था की वजह से ही देश, विदेश के लोग गोवा आना चाहते हैं और आते हैं।" यूनिफॉर्म सिवित कोड को लेकर सीएम ने कहा कि गोवा में स्वतंत्रता के बाद से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि बाकी राज्यों को भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना चाहिए। टीएमसी के गोवा में फेल होने के सवाल पर सीएम ने कहा, "हम अपना काम करते रहेंगे और वो फेल होते रहेंगे। गोवा के लोग जानते हैं कि कौन हमारे लिए काम कर रहा है और कौन अपने लिए आया है। साथ ही उन्होंने बताया कि गोवा में जितना बीते 50 साल में काम नहीं हुआ, उतना पिछले 8 साल में हुआ है।"
कांग्रेस के "नव संकल्प शिविर" पर और लंदन में हुई एक कॉन्फ्रेंस "आइडिया फॉर इंडिया" में राहुल गांधी ने जो बातें कहीं, बहस उन पर शुरू हुई है, जिन पर चिंतन शिविर के बाद चिंता जताते हुए एक वरिष्ठ पूर्व कांग्रेसी नेता और मंत्री ने रोष जताया कि राहुल गांधी ने लंदन जाकर भारत को बदनाम करने के बारे में जो आरोप लगाए हैं, वे उन्हीं पर बूमरेंग हो गए हैं। उनका यह रवैया नया नहीं है, वे और मणि शंकर अईय्यर द्वारा ऐसा विदेशों और यहाँ तक कि पाकिस्तान तक में ऐसा किया जाता रहा है, लेकिन सवाल यह है कि उन्हें विदेशों में जाकर क्या यह सब बोलना चाहिए! क्या यह कहना उचित है, "देश में धुव्रीकरण बढ़ता जा रहा है, बेरोज़गारी अपने चरम पर है, महंगाई बढ़ती जा रही है? बीजेपी ने देश में हर तरफ़ केरोसीन छिड़क दिया है बस एक चिंगारी से हम सब एक बड़ी समस्या के बीच होंगे।"
भारत में रहते हुए वे सरकार की निंदा करें, यह बात तो समझ में आती है, क्योंकि वे ऐसा न करें तो विपक्ष का धंधा ही बंद हो जाएगा। भारत का विपक्ष इतना टटपूंजिया हो गया है कि उसके पास निंदा के अलावा कोई धंधा ही नहीं बचा है। उसके पास न कोई विचारधारा है, न सिद्धांत है, न नीति है, न कार्यक्रम है, न जन-आंदोलन के कोई मुद्दे हैं। उसके पास कोई दिखावटी नेता भी नहीं हैं। जो नेता हैं, वे कालिदास और भवभूति के विदूषकों को भी मात करते हैं। उनकी बातें सुनकर लोग हंसने के अलावा क्या कर सकते हैं? जैसे राहुल गांधी का यह कहना कि भारत-चीन सीमा का विवाद रूस-यूक्रेन युद्ध का रूप भी ले सकता है। ऐसा मजाकिया बयान जो दे दे, उसे कुछ खुशामदी लोग फिर से कांग्रेस-जैसी महान पार्टी का अध्यक्ष बनवा देना चाहते हैं।
एक अन्य अत्यंत वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने तो यहां तक कह डाला कि भाजपा अपने भाग्य को सराहे कि उसे राहुल-जैसा विरोधी नेता मिल गया है, जिससे उसको कभी कोई खतरा हो ही नहीं सकता। भाजपा को अगर कभी कोई खतरा हुआ तो वह खुद से ही होगा। भाजपा को चाहिए कि वह राहुल को धन्यवाद दे और उनकी पीठ थपथपाए! राहुल गांधी के बयान को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चा हो रही है। कुछ ने तो उन्हें "जयचंद" तक कह दिया। ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान के ख़िलाफ़ जयचंद ने मोहम्मद ग़ौरी का साथ दिया था।
(लेखक : फिरोज बख्त अहमद, पूर्व कुलाधिपति व भारत रत्न मौलाना आज़ाद के पौत्र हैं)