धरती की नभ से दूरी कितनी, अभी रहा मैं नाप
-पाठकों के हाथों में पहुंची कवियत्री अलका अग्रवाल की काव्यकृति ‘बोलते चित्र’
आगरा। ऐसे बहुत ही थोडे़ लोग होंगे जिन्हें चित्र और प्राकृतिक दृश्य प्यारे न लगते हों, फिर चलते और बोलते चित्रों का क्या कहना। कुछ ऐसे भी चित्र होते हैं, जिन्हें देखने की बजाय सुनकर अपने भीतर महसूस किया जाए। जो नए हों, कुछ आकर्षक हों, उत्तेजक भी और स्फूर्तिदायक भी। कुछ ऐसे ही काव्यमय प्राकृतिक चित्रों के समेटती जाती-मानी कवयित्री अलका अग्रवाल की पुस्तक 'बोलते चित्र' का शुक्रवार को नगर के प्रबुद्धों व साहित्यकारों ने विमोचन किया।
पुस्तकें समाज का दर्पण होती हैं और पुस्तकों से अच्छा कोई मित्र नहीं। सोशल मीडिया के दौर में पुस्तकें प्रासंगिक बनी रहें और नई पीढ़ी का पुस्तकें पढ़ने में रूचि बनी रहे, इस पर उपस्थित विद्धानों न चर्चा की। पुस्तक की समीक्षा वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. मधु भारद्वाज ने प्रस्तुत की। अलका अग्रवाल की पुस्तक में 'अपना निर्माता' शीर्षक से कविता 'वृत्ताकार इस दुनियां में, सींचता निज हिस्से के चाप। धरती की नभ से दूरी कितनी, अभी रहा मैं नाप' उपस्थित अतिथियों के मन भा गई। पुस्तक में लिखी एक और कविता 'धरती बोली चीर के सीनां, कबसे मेरी गोद भरी ना। बीज नहीं अब पोषित होता, न ही जल अब शोषित होता, मानव निसदिन करे प्रहार, कोख करे मेरी आहाकार' को भी प्रशंसा मिली।
पुस्तक का विमोचन उप्र राज्य महिला आयोग की सदस्या डाॅ. निर्मला दीक्षित, साहित्यकार त्रिमोहन तरल, अशोक रावत, शांति नागर, वीरेंद्र त्रिपाठी, संस्कार भारती के अ.भा. साहित्य प्रमुख राजबहादुर राज, पुस्तक के प्रकाशक मनमोहन शर्मा आदि ने किया। विमोचन समारोह में संघ के विभाग प्रचार प्रमुख मनमोहन निरंकारी, कवियत्री नूतन अग्रवाल, जय प्रकाश नारायण, डाॅ. आराधना भास्कर, निहाल चंद शिवहरे, साकेत सुमन चतुर्वेदी, शैलबाला अग्रवाल, संगीता अग्रवाल, सर्वज्ञ शेखर, पूनम भार्गव, भरतदीप माथुर, डॉ रमा वर्मा, डॉ सुषमा सिंह, डाॅ. नीतू चौधरी आदि साहित्य से जुड़े गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। संचालन डॉ अनिल उपाध्याय ने किया।