हिन्दू धर्म में रितुकाल संस्कार है 'नारी का रजोधर्म'
-लेखक नितिन श्रीधर की पुस्तक (मेंस्ट्रुएशन एक्राॅस क्ल्चरल) का विमोचन
आगरा। केरल के शबरीमला मंदिर की आड़ में हिन्दू धर्म को विकृत करने की कई बार कोशिश हुई है। जबकि हिन्दू धर्म में महिलाओं के रजोधर्म को कभी भी हीन दृष्टि से नहीं देखा गया है। न केवल शबरीमला बल्कि समय-समय पर महिलाओं की आड़ में हिन्दू धर्म को बदमान करने के प्रयास होते रहे हैं। सत्य तो यह है कि महिलाओं में रजोधर्म शर्मिन्दगी नहीं बल्कि, उत्सव का विषय है। यह कहना है जाने-माने साहित्यकार नितिन श्रीधर का।
दक्षिण में आयोजित होता है रितुकाल संस्कार
रविवार को विवि के खंदारी कैंपस में मैसूर के लेखक नितिन श्रीधर की पुस्तक (मेंस्ट्रुएशन एक्राॅस क्ल्चरल) का नगर के प्रबुद्धों ने विमोचन किया और पुस्तक पर चर्चा की। इंडिक एकेडमी आगरा द्वारा आगरा ऑब्स एंड गायनी सोसायटी के सहयोग आयोजित कार्यक्रम में पुस्तक पर चर्चा करते हुए नितिन श्रीधर ने बताया कि कर्नाटक, तमिलनाडु, उड़ीसा आदि भारत के अनेक प्रांतों में महिलाओं में पहलीबार रजोधर्म प्रारंभ पर उत्सव (रितुकाल संस्कार) मनाया जाता है।
आत्मशुद्धि की क्रिया है रजोधर्म
रजोधर्म महिलाओं के तिरस्कार की कोई क्रिया नहीं बल्कि, उनकी आत्मशुद्धि का एक साधन है। उन्होंने कहा कि रजोधर्म के दौरान अधिकतर महिलाओं को दर्द का अनुभव होता है, जबकि आयुर्वेद के अनुसार रजोधर्म के दौरान दर्द नहीं होना चाहिए। आधुनिक खान-पान के असर कारण महिलाओं के गिरते स्वास्थ्य पर चिकित्सकों को चर्चा और इस समस्या के निराकरण के लिए आगे आना चाहिए।
हिन्दु धर्म में उत्सव का विषय है
नितिन श्रीधर ने कहा कि हिन्दु धर्म में रजोधर्म कोई अपराध नहीं बल्कि वो खास अवस्था है जब एक युवती मां बनने के लिए परिपक्वता की ओर बढ़ती है। लेकिन हजारो वर्ष गुलामी (मुगल व ईसाई) की जंजीरों ने भारत के इस उत्सव को भी अपराध बोध में बदल दिया। यह भारत पर राज करने वाली अन्य संस्कृतियों के मिश्रण का नतीजा था। उन्होंने जानकारी दी कि ईसाई धर्म में एडम और ईव की मान्यता इसे सजा या पाप की मान्यता देती है। जबकि हिन्दु धर्म में यह उत्सव का विषय है। कामाख्या देवी मंदिर में प्रतिवर्ष 4 दिन का पर्व मनाया जाता है। इन दिनों मंदिर के पट बंद रहते हैं और देवी के आराम का समय होता है।
सबरीमला विवाद को बेवजह रजोधर्म से जोड़ा जा रहा
सबरीमला विवाद पर बोलते हुए नितिन श्रीधर ने कहा कि सबरीमला विवाद को बेवजह रजोधर्म से जोड़ा जा रहा है। सबरीमला मंदिर में भगवान नैष्टिका ब्रह्माचर्या (तपस्या) की स्थिति में हैं। जहां 15-50 वर्ष की महिलाओं (गर्भधारण कर सकने वाली) के प्रवेश पर रोक है, जो रजोधर्म के कारण बल्कि भगवान की ब्रह्मचर्या स्थिति में होने के कारण है। हमारे मन की तीन स्थतियां होती हैं। सात्विक, राजसी, तामसी। हिन्दू धर्म में रजोधर्म को उत्सव का विषय माना है। लेकिन इस समय मन की स्थिति राजसी होती है। जबकि मंदिरों में प्रवेश के दौरान हमारे मन की स्थिति सात्विक होनी चाहिए। इसी कारण रजोधर्म के दौरान सभी मंदिरों में महिलाएं प्रवेश नहीं करती। लेकिन सबरीमला मंदिर का विवाद रजोधर्म नहीं बल्कि ब्रह्मचर्या की स्थित से जुड़ा है।
रजोधर्म पर खुलकर बात नहीं करती महिलाएं
डॉ. सरोज सिंह ने कहा रजोधर्म विषय पर पुस्तक का आना स्त्री रोग विशेषज्ञों के लिए खुशी की बात है। क्योंकि आज भी ज्यादातर महिलाएं इस विषय पर खुलकर बात नहीं करती। इसे पाप समझा जाता है। इसलिए अपनी समस्या को छुपाने से समस्या बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि इसे अपराध न समझा जाए, इसमें यह पुस्तक काफी सहयोगी होगी।
इनकी रही उपस्थिति
कार्यक्रम में एसएन मेडिकल कॉलेज स्त्री एवं प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष डॉ. सरोज सिंह, इंडिक एकेडमी आगरा के चैप्टर कॉर्डिनेटर विकास सारस्वत, सेवा भारती के क्षेत्रीय समन्वयक सतीश अग्रवाल, केंहिंसं की कुलसचिव डॉ. बीमा शर्मा, डॉ. सुषमा सिंह, अमित जैसवाल, ठाकुर सिंह, संजीव शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता विपुल बसंल, सुमित भाटिया, भारत सारस्वत, विपुल बंसल, वीके सारस्वत आदि उपस्थित रहे। संचालन डॉ. रत्ना पांडे ने किया।