उप्र में सीएम योगी ने पीएसी के 900 जवानों को दी बड़ी राहत, तत्काल पदोन्नति का आदेश
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीएसी के सैकड़ों जवानों को पदावनत किए जाने के मामले में कड़ी नाराजगी जताई है। उन्होंने प्रकरण को गम्भीरता से लेते हुए पुलिस महानिदेशक हितेश चंद्र अवस्थी को निर्देश दिए हैं कि वे समस्त कार्मिकों की नियमानुसार पदोन्नति सुनिश्चित कराएं।
मुख्यमंत्री ने शनिवार को कहा कि शासन के संज्ञान में लाए बगैर ऐसी कार्यवाही से पुलिस बल के मनोबल पर प्रभाव पड़ता है। जवानों का मनोबल गिराने वाला कोई निर्णय बर्दाश्त नहीं होगा। इसके साथ ही उन्होंने शासन के संज्ञान में प्रकरण को लाए बगैर ऐसा निर्णय जिन अधिकारियों द्वारा किया गया, उनका उत्तरदायित्व निर्धारित कर शासन को रिपोर्ट भी उपलब्ध कराने को कहा है।
मुख्यमंत्री ने ये आदेश पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ाने के मद्देनजर दिया है। दरअसल, उप्र पुलिस के लगभग 900 जवानों को पदोन्नति मिली थी। जब ये वापस पीएसी में भेजे गए तो इन्हें पदावनत कर दिया गया। इस निर्णय को इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी चुनौती दी जा चुकी है। हाई कोर्ट ने गुरुवार को मुख्य आरक्षी से आरक्षी के पद पर रिवर्ट (पदावनत) किए गये सैकड़ों मुख्य आरक्षियों की याचिका पर 28 सितम्बर को सुनवाई करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता ने मुख्य आरक्षी पारस नाथ पाण्डेय समेत सैकड़ों मुख्य आरक्षियों की याचिका पर दिया है। याचिका में 9 सितम्बर 2020 व 10 सितम्बर 2020 को पारित डीआईजी स्थापना, पुलिस मुख्यालय, उप्र व अपर पुलिस महानिदेशक, पुलिस मुख्यालय उप्र के आदेशों को चुनौती दी गयी है। इन आदेशों द्वारा प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात 890 मुख्य आरक्षियों को पदावनत कर आरक्षी बना दिया गया है और उन्हें पीएसी में स्थानांतरित कर दिया गया है।
प्रदेश सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने इस केस में कोर्ट से तीन दिन का समय मांगा तथा कहा कि हम शासन से इस मामले में आवश्यक जानकारी भी हासिल कर लेंगे। मुख्य आरक्षियों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम ने कोर्ट से पदावनत आदेश पर रोक लगाने की मांग की। कोर्ट ने इस मामले में सोमवार को सुनवाई करने को कहा है।
याचिकाओं में मुख्य रूप से कहा गया है कि इतने वृहद स्तर पर मुख्य आरक्षियों को पदावनत बगैर उन्हें सुनवाई का अवसर दिए करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्त के विपरीत है। यह भी कहा गया कि याचियों को 20 वर्ष बाद सिविल पुलिस से पीएसी में वापस भेजना शासनादेशों के विरुद्ध है।