नहीं रहे लखनऊ के पूर्व महापौर डॉ. दाऊजी गुप्ता, समाजसेवियों और राजनेताओं में शोक की लहर
लंदन में रह रहे उन्हें पुत्र डॉ.पद्मेश गुप्ता ने बताया कि 17 अप्रैल को वह कोरोना पॉजिटव हो गए थे। 30 अप्रैल को उनकी हालत बिगड़ी और शुगर लेवल बढ़ गया था। रविवार को उन्हें केजीएमयू ले जाया गया जहां करीब पौने तीन बजे उनका निधन हो गया। उनके निधन से समाजसेवियों और राजनेताओं में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
लखनऊ: तीन बार लखनऊ के महापौर रहे और एक बार एमएलसी रहे स्वतंत्रता सेनानी, लोकतंत्र सेनानी एवं कांग्रेस के विरिष्ठ नेता डॉ. दाऊजी गुप्ता का रविवार को निधन हो गया। 26 नवंबर 1940 में पैदा हुए डॉ. गुप्ता ने कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज तीन अप्रैल को लगवाई थी।
लंदन में रह रहे उन्हें पुत्र डॉ.पद्मेश गुप्ता ने बताया कि 17 अप्रैल को वह कोरोना पॉजिटव हो गए थे। 30 अप्रैल को उनकी हालत बिगड़ी और शुगर लेवल बढ़ गया था। रविवार को उन्हें केजीएमयू ले जाया गया जहां करीब पौने तीन बजे उनका निधन हो गया। उनके निधन से समाजसेवियों और राजनेताओं में शोक की लहर दौड़ पड़ी।
इमरजेंसी में लखनऊ जेल में बिताए 11 महीने :
25 जून 1975 को इमरजेंसी लगने के साथ डॉ. दाऊजी गुप्ता को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया जब वह अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जा रहे थे। कांग्रेस संगठन में होने के बावजूद उनकी गिरफ्तारी को लेकर लोग अचंभित थे। सुबह रत्नेश व वर्तिका को लामार्टीनियर कॉलेज छोड़ने जा रहे थे नाका हिंडोला में उन्हें पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। बच्चों की परीक्षा थी, छूट जाने की बात करने के बावजूद पुलिस ने उन्हें नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने भाई देवेश को बुलाया और बच्चों को स्कूल छोड़वया। उन्होंने भाई से कहा कि घर पर बता देना मैं गिरफ्तार हो गया हूं।
नाका हिंडोला से उन्हें कैंट थाने ले जाया गया जहां पहले से ही गिरफ्तार पूर्व सांसद शकुंतला नायर, एमएलसी मंगल देव, जगन्नाथ शास्त्री और कालीचरण यादव मौजूद थे। उनके साथ उन्हें लखनऊ की जिला कारागार मेें ले जाया गया। उनके ऊपर विधान भवन को क्षति करने और लोगों को भड़काने का आरोप लगा था। 200 अन्य लोकतंत्र सेनानियों के साथ वह जेल में बंद रहे। जेल में जाते ही उनके डीआरडीए के साथ मीसा का आरोप लगा दिया गया। करीब 11 महीने जेल की सलाखों के पीछे गुजारने के दौरान साहित्यिक राजनीतिक और आध्यात्मिक चर्चाओं के लिए उन्हें लोग याद करते रहे।
अरबी भाषा सीखने के साथ लिख डाली किताब :
जेल में बंद होने के दौरान जेल में रहे जमात-ए-इस्लामिक के गफार नदवी से अरबी भाषा सीखी। करीब हिंदी अंग्रेजी समेत नौ भाषाओं को लिखने पढ़ने के साथ 13 भाषाएं समझते थे। आपात स्थिति 75 कारावास की कविताएं और कारागार की कृतियां दो पुस्तकों को भी जेल में लिख डाला। समाजवादी, कम्युनिस्ट, आरएसएस जैसे संगठनों के लाेग भी बंद थे, लेकिन वह कांग्रेस से जुड़े कार्यकर्ताओं के साथ ही जेल में रहे।
जेलर का कर दिया घेराव :
एक दिन व्यवस्था को लेकर राम आशीष राय और शिव कैलाश भदौरिया सहित कई बंदियों ने जेलर को उन्हीं के कमरे में घेर लिया। उनके साथ दाऊजी गुप्ता भी पहुंचे। जेलर साहब ऊपर का आदेश बताते हुए असहज भाव में खड़े नजर आए। तभी दाऊजी गुप्ता ने हंगामा शुरू कर दिया। दूसरे दिन से व्यवस्था में सुधार आ गया।
एक कक्षा आगे कर दिए गए थे दाऊजी :
आजाद भारत में प्रदेश की नवनियुक्त राज्यपाल सरोजनी नायडू लखनऊ मेल से सुबह सात बजे दिल्ली से राजधानी लखनऊ पहुंची थीं। स्टेशन पर उन्हें लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। सरोजनी रेलवे स्टेशन से सीधे राजभवन पहुंचीं। यहां उन्होंने सुबह ठीक आठ बजे आजाद भारत का पहला झंडारोहण किया। सड़कों पर लोगों का हुजूम था। हजरतगंज की सड़कों पर हजारों की भीड़ जमा थी। ढोल-नगाड़े के साथ जगह जगह जश्न मनाया जा रहा था। मिठाई की दुकान हो या दूध की दुकान हर तरफ आजादी का जश्न छाया था। मुफ्त में मिठाई व दूध बांटा जा रहा था। सुबह अखबार देख लोग उसे पढ़ने के लिए बेताब हो रहे थे। सभी को जानना था कि अंग्रेजों के साथ कांग्रेस का क्या समझौता हुआ।
एक डर भी था दिलों में कि कहीं फिर से अंग्रेजों का कोई नया खेल न शुरू हो जाए। झंडा ऊंचा रहे हमारा विजयी विश्व तिरंगा प्यारा...के साथ मैं निकल पड़ा। हालांकि एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि से ही घरों में उल्लास का माहौल था। मैं तो गणेशगंज में रहता था। मुहल्ले के लोगों के साथ प्रभातफेरी की तैयारी कर रहा था। 15 अगस्त की भोर के चार बजे थे। सभी अपने-अपने घरों से प्रभात फेरी के लिए निकल रहे थे।
सूर्योदय के साथ सड़क पर ऐसी चहल-पहल शुरू हुई कि निकलने की जगह तक नहीं बची। एक दूसरे को गले लगा कर बधाई देने का क्रम भी चलता था। गणेशगंज के रहने वाले डॉ. दाऊजी गुप्ता उस समय कक्षा पांच में पढ़ते थे। दोपहर हुई तो पता चला कि सभी को एक कक्षा आगे कर दिया गया था। दाऊजी गुप्ता भी एक कक्षा आगे कर दिए गए। स्वतंत्रता दिवस पर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था।