हाथरस मामले की खुलने लगीं साजिश की परतें, इन तथ्यों पर खुफिया एजेंसियां अलर्ट
लखनऊ। एसटीएफ की जांच में हाथरस की घटना के बाद प्रदेश में जातीय दंगे कराने की साजिशों की परतें खुलने लगी हैं। घटना के बारे में फैलाई गई अफवाहों और उसे विस्तार देने के लिए आनन-फानन तैयार किए गए सोशल मीडिया प्लेटफार्म अब साजिशकर्ताओं की मंशा बयां कर रहे हैं। एसटीएफ की जांच में सामने आ रहे इन तथ्यों के आधार पर खुफिया एजेंसियां आगामी तीन नवंबर को प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव को लेकर सतर्क हो गई हैं।
जातीय दंगों की साजिश के तार प्रदेश के तीन जिलों हाथरस, मथुरा व अलीगढ़ से जुड़े हुए हैं। इस कारण शासन ने तीनों जिलों में पुलिस की तरफ से दर्ज किए गए मुकदमों की जांच में एसटीएफ को लगाया है। हाथरस में दर्ज दो मामलों में से एक चंदपा थाने में ही दर्ज है, जिसमें पुलिस ने बिना किसी को नामजद किए यह आरोप लगाया है कि हाथरस में जातिगत दंगे भड़काने और राज्य सरकार को बदनाम करने की साजिश रची गई थी।
मथुरा के मांट थाने में पुलिस की तरफ से दर्ज किए गए एक मुकदमे में पहले से गिरफ्तार चार लोगों को नामजद किया गया था। ये चारों आरोपी दिल्ली से हाथरस जा रहे थे। पुलिस के अनुसार ये सभी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और इसके सहयोगी संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के सदस्य हैं।
इसी तरह अलीगढ़ में एक वीडियो क्लिप के आधार पर दर्ज किए गए मुकदमे में श्योराज नाम के एक व्यक्ति पर विशेष जाति के लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का आरोप है।
सूत्रों के अनुसार एसटीएफ ने इलेक्ट्रानिक सर्विलांस के जरिए ऐसे कई नंबरों की पहचान कर ली है, जिसके जरिए सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाई जा रही थीं। पीड़िता की मौत के दूसरे ही दिन से 'जस्टिस फॉर हाथरस विक्टिम' नाम से बनाई गई वेबसाइट के बारे में भी काफी जानकारी जुटा ली गई है। इस वेबसाइट पर लगातार भ्रामक और भड़काऊ तथ्य परोसे जा रहे थे। इस मामले में पीएफआई कनेक्शन और विदेशों से फंडिंग के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। एसटीएफ इस मामले चिह्नित व्यक्तियों से पूछताछ करने वाली है। जेल में निरुद्ध आरोपियों को भी कस्टडी रिमांड पर लिया जा सकता है।