लखनऊ: विजयदशमी पर्व पर भारतीय क्षत्रिय समाज के शस्त्र पूजन समारोह में वक्ताओं ने बताई महिमा...
'इतिहास चुराए नहीं, हमने इतिहास बनाए हैं, लाखों शीश कटे रण में, तब क्षत्रिय कहलाए हैं'
लखनऊ। विजयदशमी का पर्व हमें असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म, अन्याय पर न्याय और अंधकार पर प्रकाश की विजय के शाश्वत संदेश का बोध कराता है। मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभू श्रीराम का व्यक्तित्व कर्म पथ पर बगैर डिगे चलने की प्रेरणा देता है। भारतीय मनीषा हमें शास्त्र और शस्त्र दोनों में ही सिद्धहस्त होने की प्रेरणा देती है। हमें पुनः अपनी उसी परम्परा की ओर लौटते हुए राम रक्षा, समाज रक्षा और आत्मरक्षा का दायित्व स्वीकार करना होगा।
उक्त उद्गार राज्यसभा सदस्य डॉ.दिनेश शर्मा ने शनिवार को कहीं। वह गोमतीनगर स्थित सीएमएस सभागार में भारतीय क्षत्रिय समाज के शस्त्र पूजन समारोह में बोल रहे थे।
शस्त्र पूजन से पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ मनकामेश्वर मंदिर की महंत पूज्य देव्या गिरी, लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य सेवादार विवेक तागड़ी, राज्यसभा सदस्य डॉ. दिनेश शर्मा, एमएलसी डॉ. महेंद्र सिंह, सरोजनी नगर के विधायक डॉ.राजेश्वर सिंह, भाजपा नेता प्रदीप सिंह बब्बू, शिक्षाविद एसकेडी सिंह, भारतीय क्षत्रिय समाज के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ.अनिल सिंह गहलोत और महामंत्री पंकज सिंह भदौरिया ने कार्यक्रम का शुभारंभ दीप जलाकर किया।
पूर्व मंत्री एवं एमएलसी डॉ.महेंद्र सिंह ने कहा कि दशहरा पर शस्त्र पूजन की परंपरा हमें शक्तिशाली बनाए रखने के लिए प्रारम्भ की गई थी। हमारे पूर्वज अपनी अगली पीढ़ी को विद्वान के साथ ही शक्तिशाली भी बनाए रखना चाहते थे, यह उसी का आधुनिक स्वरूप है। विधायक डॉ.राजेश्वर सिंह ने कहा, इतिहास चुराए नहीं, हमने इतिहास बनाए हैं, लाखों शीश कटे रण में, तब क्षत्रिय कहलाए हैं।
धर्म, संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा के लिए क्षत्रिय समाज ने सदैव बलिदान दिया है, क्षत्रिय समाज ने अपने लहू से देश की मिट्टी को सींचा है, शस्त्र पूजन कार्यक्रम हमें मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है। मां आदिशक्ति ने महिषासुर के वध के उपरांत देवताओं ने उनके शस्त्रों का पूजन किया था। प्रभु श्रीराम ने दशानन रावण से युद्ध से पहले शस्त्रों का पूजन किया था। महाभारत युद्ध से पूर्व श्री कृष्ण के आग्रह पर अर्जुन ने भी शस्त्र पूजन किया था।
डॉ.अनिल सिंह गहलोत ने कहा कि क्षत्रिय का साहस उसकी पहचान है, मौत भी दरवाज़े पर खड़ी हो, तो मुस्कान है। कवि श्याम नारायण ने कहा गया है- मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर काशी, तीर्थराज चित्तौड़ देखने को मेरी आंखें प्यासी। शस्त्र शोक एवं भय के नाशक, शांति के पोषक एवं अस्तित्व की रक्षा के आवश्यक तत्व हैं। इस दौरान संगठन के राष्ट्रीय संयोजक छेदी सिंह, प्रदेश अध्यक्ष पंकज सिंह भदौरिया, पूर्व डीआईजी जितेंद्र कुमार शाही, नयनतारा, चेयरपर्सन पीसीडीएफ शिखा तोमर, युवा उद्यमी मांडवी सिंह समेत सैकड़ों की संख्या में क्षत्रिय समाज के बंधु-भगिनी मौजूद रहे।