कोरोना को हराकर अस्पताल से डिस्चार्ज हुए वरिष्ठ रंगकर्मी जितेंद्र मित्तल
वरिष्ठ रंगकर्मी जितेंद्र मित्तल की आठ अप्रैल से शुरू कोरोना से जंग बुधवार को समाप्त हुई। दिल्ली के अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद वह वापस अपने शहर आने के लिए उत्साहित दिखे। वह बोले, दिक्कतें हुईं, पर हमें न तब कोई शिकायत थी, न अब है। हम जानते थे, ये आपातकाल है।
लखनऊ: लखनऊ में तो हमारी जड़े हैं। हमें हमेशा लगता था यहां तो एक फोन पर हमारा सारा काम हो जाता है, हमें कभी कोई दिक्कत नहीं आएगी, पर ऐसा नहीं हुआ। तमाम प्रयासों के बाद भी हमें लखनऊ के किसी भी अस्पताल में भर्ती होने के लिए जगह नहीं मिली। हमें 90 हजार का एंबुलेंस कर लखनऊ से दिल्ली जाकर मैक्स अस्पताल में इलाज कराना पड़ा। 1,000 का आक्सीजन गैस कनेक्टर 8,000 में खरीदना पड़ा। दस गुना दाम पर दवाइयां लीं।
वरिष्ठ रंगकर्मी जितेंद्र मित्तल की आठ अप्रैल से शुरू कोरोना से जंग बुधवार को समाप्त हुई। दिल्ली के अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद वह वापस अपने शहर आने के लिए उत्साहित दिखे। वह बोले, दिक्कतें हुईं, पर हमें न तब कोई शिकायत थी, न अब है। हम जानते थे, ये आपातकाल है। जब कुदरत का कोप होता है तो वहां शिकायत की गुंजाइश नहीं होती। उन्होंने कहा कि शहरवासियों से कोई शिकायत नहीं है, बस आखिरी ख्वाहिश बची है कि लखनऊ में शेंचरी बुड्ढा का एक और हाउसफुल शो कर पाऊं।
जितेंद्र मित्तल को आठ अप्रैल को तेज जुकाम हुआ था। आंख और नाक से पानी आया। लूज मोशन की भी दिक्कत शुरू हुई। खांसी बढ़ी और सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी। कोरोना के लक्षण दिखते ही खुद को आइसोलेट किया। कोरोना टेस्ट की कोशिश होने लगी, पर वह भी नहीं हो पा रहा था। अंतत: 16 अप्रैल को चंदन अस्पताल में टेस्ट करवाया और रिपोर्ट पॉजिटिव आई। 17 अप्रैल को सरकारी टेस्ट में भी पॉजिटिव घोषित कर दिया गया। जितेंद्र मित्तल बताते हैं, हमारे पास फोन आया, पूछा गया कि सरकारी में अस्पताल में इलाज कराना चाहेंगे या प्राइवेट में। हमने कहा जहां बेहतर से हो जाए वहां करवा दीजिए।
उन्होंने कहा-हम थोड़ी देर में बात करते हैं। थोड़ी देर का इंतजार लंबा होता गया और फिर दोबारा किसी ने बात ही नहीं की। हमारा विश्वास तब डगमगा गया जब एम्स भोपाल के पूर्व निदेशक डॉ. संदीप कुमार, शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल रस्तोगी, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, पूर्व स्वास्थ्य सचिव भारत सरकार लव वर्मा जैसे काबिल लोग भी कोशिश करके हार गए और हमें लखनऊ के किसी भी अस्पताल में एडमिट नहीं करवा सके।
तभी परिवार वालों ने मैक्स अस्पताल में हेड ऑफ डिपार्टमेंट न्यूरोलॉजी भांजे डॉ. पुनीत अग्रवाल से बात की। सांस लेने में दिक्कत बढ़ती जा रही थी, समय चक्र रूकता हुआ सा लगा। 90 हजार रुपये में एंबुलेंस करके लखनऊ से दिल्ली लाया गया। मुझे धुंधला सा कुछ दिख रहा था, सामने छोटा बेटा खड़ा था, जो हमसे पहले पहुंच चुका था। दूसरा बेटा पुनीत हमारे साथ था। स्टे्चर पर लाद के आइसीयू में भर्ती कर दिया गया। उसके बाद किसी अपने से बात न होना, किसी अपने की शक्ल नहीं देखना। हमारे पास मोबाइल तो था, पर हम बोलने की स्थिति में ही नहीं थे। कुछ समझते थे, कुछ नहीं समझते थे। खाने के लिए जो मिलता था, आधा खा पाते, उससे ज्यादा छोड़ देते। जितेंद्र मित्तल शुगर, हाइपरटेंशन, हार्ट और अस्थमा के भी मरीज हैं। वह बताते हैं, पांच दिन तक तो कोई दवाई ही नहीं मिली। अस्पताल में अकसर कुछ अप्रिय होने पर मुंह लटकाएं डाक्टर और नर्स के चेहरे डराते। इन सब के बीच भांजा हमारा सबसे बड़ा सहारा था। भांजे का विश्वास था कि वह हमें ठीक करके रहेगा। भांजे का विश्वास और परिवार का साथ मुझे आखिरकार स्वस्थ कर ही गया।
29 अप्रैल को मेरी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई। सेकेंड रिपोर्ट पॉजिटिव आई, तनाव बढ़ गया। तीसरी रिपोर्ट के निगेटिव आने का इंतजार होने लगा। तीसरी निगेटिव रिपोर्ट खुशियां लेकर आई। हमें आइसीयू से हटाकर प्राइवेट वार्ड में रखा गया। मैंने धीरे-धीरे सोशल मीडिया के जरिए लोगों से जुड़ना शुरू किया। सोशल मीडिया पर सुबह की राम-राम के साथ दिन शुरू होने लगा। खुद पर किसी भी तरीके से नकारात्मकता को हावी नहीं होने दिया।
शहर के रंगकर्मि यों ने बढ़ाया मनोबल : जितेंद्र मित्तल स्वस्थ होने के बाद अस्पताल वालों के साथ ही शहर के रंगकर्मियों का आभार जताना नहीं भूले। वह बताते हैं, हफीज मियां रोज फोन करते थे, मेरे टूटे-फूटे शब्द ही निकलते थे। पता नहीं वह समझ पाते थे या नहीं, पर घंटों मोबाइल पर मेरे साथ बने रहते थे। डॉ. अनिल रस्तोगी, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ, मृदुला भारद्वाज समेत करीब सौ से ज्यादा रंगकॢमयों के नाम हैं, जो रोज फोन करते और हाल-चाल लेते।