मुतवल्ली कोटे से वसीम रिजवी शिया वक्फ बोर्ड के बने सदस्य
अब वसीम रिजवी का अगला कदम शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन पद की ओर है। करीब दस महीने से शिथिल पड़े उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पुर्नगठन की कवायद शुरू हो गई है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की राजनीति में माहिर हो चुके वसीम रिजवी एक बार फिर मुतवल्ली कोटे से बोर्ड के सदस्य चुने गए हैं। उनके साथ ही उनके कोटे के सैय्यद फैजी ने भी बाजी मारी है। अब वसीम रिजवी का अगला कदम शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन पद की ओर है।
करीब दस महीने से शिथिल पड़े उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पुर्नगठन की कवायद शुरू हो गई है। मुतवल्ली कोटे से शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य के लिए मंगलवार को चुनाव में वसीम रिजवी ने आसान जीत दर्ज की है। उनके साथ ही उनके ही गुट के सैय्यद फैजी भी मुतवल्ली कोटे से सदस्य चुने गए हैं।
इनके अलावा सांसद कोटे से रामपुर से कांग्रेस की पूर्व सांसद बेगम नूरबानो निॢवरोध निर्वाचित हुईं। इस बार वसीम रिजवी ने जिस तरह से सदस्य के चुनाव में एकतरफा जीत दर्ज की है, उससे साफ जाहिर होता है कि अब तो चेयरमैन पद पर उनकी दावेदारी काफी मजबूत हो गई है।
शिया वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी नसीर हसन ने बताया कि मुतवल्ली कोटे से सदस्य पद के लिए 17 अप्रैल को सात लोगों ने नामांकन दाखिल किया था। इनमें से एक ने नाम वापस लिया था। दो सदस्यों के चुनाव के लिए मंगलवार को हुए मतदान में कुल 29 वोट पड़े जिनमें से दो वोट अवैध हो गए।
शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य के लिए प्रथम वरीयता में 27 में 21 वोट वसीम रिजवी को और 6 वोट फैजाबाद के अशफाक हुसैन उर्फ जिया को मिले। दूसरी वरीयता में 21 वोट सैय्यद फैजी को मिले और 6 वोट उन्नाव के सैय्यद मुशर्रफ हुसैन रिजवी को मिले। वसीम रिजवी और सैय्यद फैजी ने जीत दर्ज की।
शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य पद के लिए संसदीय कोटे से कांग्रेस नेता एवं रामपुर से पूर्व सांसद बेगम नूरबानो ने अकेले ही नामांकन किया था। इसमें वह निॢवरोध चुनी गईं। अभी संसदीय कोटे से एक और सदस्य चुना जाना है। विधानमंडल के भी दो सदस्य का चुनाव होना है। अब बोर्ड का पुर्नगठन करने के लिए प्रदेश सरकार को बाकी सदस्यों के नाम मनोनीत करने होंगे।
11 सदस्यीय शिया वक्फ बोर्ड :
उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड में अध्यक्ष सहित कुल 11 सदस्य होते हैं। पहले चरण में बोर्ड में बतौर सदस्य के तौर पर चुनाव होता है। इसमें वक्फ संपत्ति की देखरेख करने वाले मुतवल्ली कोटे से दो सदस्य चुने जाते हैं। चुनाव में वही मुतवल्ली वोट दे सकते हैं, जिनके वक्फ की सालाना कमाई एक लाख रुपये से अधिक हो।
मुतव्वली कोटे से वसीम रिजवी और सैय्यद फैजी सदस्य चुने गए हैं। शिया वक्फ बोर्ड में दो सदस्य वकील कोटे से आते हैं, जिनमें अवध बार एसोसिएशन से चुनकर जाते हैं। बार काउंसिल में भी शिया समुदाय से कोई सदस्य नहीं हैं। इस कोटे में दो पदों पर वरिष्ठ अधिवक्ता को नामित किया जाएगा।
शिया वक्फ बोर्ड के लिए तीन सदस्यों को प्रदेश सरकार मनोनीत करती है, जिसमें एक पूर्व पीसीएस अधिकारी, एक इस्लामिक स्कॉलर और एक सामाजिक कार्यकर्ता होता है। दो संसदीय कोटे से मौजूदा सांसद या पूर्व सांसद सदस्य चुनकर आते हैं, जिनमें से अभी नूरबानों चुनकर आई हैं। एक सदस्य के नाम को मनोनीत किया जाएगा। ऐसे ही दो सदस्य यूपी के विधानमंडल कोटे से चुनकर आते हैं, जिनमें मौजूदा विधायक/एमलसी या पूर्व सदस्य हो।
मौजूदा समय में शिया समुदाय के दो एमएलसी हैं राज्य मंत्री मोहसिन रजा व एमएलसी बुक्कल नवाब। मोहसिन रजा राज्य मंत्री के पद पर हैं इसलिए वह बोर्ड के सदस्य नहीं बन सकते, ऐसी सूरत में बुक्कल नवाब को ही बोर्ड का सदस्य नामित किया जाएगा। वक्फ बोर्ड में सारे सदस्यों का शिया होना जरूरी है।
ऐसे में अगर संसद या विधायक मौजूदा समय में शिया समुदाय से नहीं है तो उनकी जगह दूसरे सदस्यों को सरकार मनोनीत कर सकती है। इसके बाद यही 11 सदस्य मिलकर शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का चुनाव करेंगे।
वसीम रिजवी के रास्ते में कई पेंच :
सैय्यद वसीम रिजवी के सदस्य चुने जाने के बाद एक बार फिर बोर्ड का चेयरमैन बनने की राह खुल गयी है। इनकी इस राह में अभी कई पेंच हैं। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे और प्रदेश सरकार के कई जिम्मेदार नहीं चाहते कि वक्फ सम्पत्तियों के घोटाले में सीबीआई जांच का सामना कर रहे वसीम रिजवी के हाथ में फिर शिया वक्फ बोर्ड की कमान जाए। बोर्ड के पुर्नगठन में वसीम रिजवी का विरोधी खेमा भी पूरी तरह सक्रिय है। वहीं, वसीम रिजवी भी चेयरमैन बनने के लिए अपनी पूरी गोटियां बिछाने में जुटे हुए हैं।
शिया वक्फ बोर्ड की काफी संपत्तियां :
उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड की आठ हजार से ज्यादा संपत्तियां हैं, जिसकी देख-रेख मुतवल्ली (ट्रस्टी) के माध्यम से की जाती है। इन वक्फ संपत्तियों की कीमत तकरीबन 75 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक की है। इसी कारण शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के पद को लेकर हमेशा से जबरदस्त मुकाबला होता रहा है।