आतंकियों से मुक्ति चाहती है पाकिस्तान की जनता - इमरान को स्वीकारा, हाफिज को नकारा
इमरान खान अपनी चुनावी रैलियों में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए दिखे।
भारत के पड़ौसी देश पाकिस्तान में नई सरकार बनाने की कवायद प्रारंभ हो गई है। चुनाव परिणामों ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के मुखिया इमरान खान को सबसे ज्यादा सीटें देकर मजबूत बनाया है। इमरान खान के चुनाव प्रचार का अध्ययन किया जाए तो यही दिखाई देता है कि उनका पूरा चुनाव प्रचार भारत के मजबूत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ही केन्द्रित रहा। इमरान खान अपनी चुनावी रैलियों में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए दिखे। पाकिस्तान में हुए चुनाव परिणामों की सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही जा सकती है कि वहां की जनता ने आतंकियों को पूरी तरह से ठुकरा दिया है। इसका मतलब भी साफ है कि पाकिस्तान की जनता अब आतंकवाद से मुक्ति चाहती है।
पाकिस्तान के चुनाव परिणाम ने दिखा दिया है कि आम चुनावों में क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान की लहर चली। इस लहर में पाकिस्तान के कई दिग्गज परास्त हो गए। यहां तक कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज की ओर से प्रधानमंत्री पद का सपना देखने वाले नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ चुनाव हार गए हैं। वहीं, इस चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदार पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सह-अध्यक्ष बिलावल भुट्टो भी चुनाव हार चुके हैं। दिग्गजों के हारने के बाद यह साबित हो गया है कि जनता ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के सामने नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सहित हाफिज सईद की पार्टी अल्लाह-हो-अकबर को पूरी तरह से धराशाई कर दिया है। हालांकि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जहां नवाज शरीफ को भ्रष्टाचारी नेता के रुप में प्रचारित किया गया, वहीं भारत विरोधी स्वरों का भी बोलबाला रहा। यह सही है कि पाकिस्तान में ज्यादातर सेना ने अपनी मनमानी की है। वहां सेना ने कई बार जबरदस्ती सत्ता को अपने हाथ में लिया है। इसे लोकतंत्र का गला घोंटने की संज्ञा दी जाए तो भी ठीक ही होगा।
पाकिस्तान में अगर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के मुखिया इमरान खान प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होते हैं, तो यह भारत के लिए काफी मुश्किल खड़ी कर सकता है, क्योंकि इमरान खान के बारे में हमेशा यही कहा जाता है कि वे पाकिस्तान की सेना के साथ मिलकर अपनी रणनीति बनाते हैं। यह हम जानते हैं कि पाकिस्तान की सेना भारत के विरोध में आतंकियों जैसे कदम उठाती रही है, यहां तक कि भारतीय सीमा में आतंकियों की घुसपैठ कराने में पूरा सहयोग करती है। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि इमरान खान पाकिस्तान की सेना के साथ ही अपनी सरकार चलाते हुए दिखाई देंगे। वैसे इमरान खान का यह कदम राजनीतिक मायनों में बहुत ही महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, क्योंकि अभी तक पाकिस्तान में यही देखने में आया है कि वहां की सरकार को सबसे ज्यादा खतरा सेना से ही होता है। सेना ने पाकिस्तान में कई बार तख्तापलट जैसे कार्य करके खुद ही सत्ता का संचालन किया है। अब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनेंगे तो यह तय है कि इमरान को तख्तापलट जैसी स्थितियों का सामना नहीं करना होगा।
पाकिस्तान में इमरान खान को लेकर एक बात जगजाहिर है कि उनके संबंध सेना और आतंकियों के सरगनाओं से काफी मधुर हैं। यही सरकार के लिए परेशानी का कारण बनते हैं। यह इमरान खान की रणनीति का ही हिस्सा है कि उन्होंने एक तीर से कई निशानों को पहले ही साध लिया है। आतंकियों पर पाकिस्तान की ओर से की गई सैन्य कार्यवाहियों पर इमरान खान ने कई बार सवालिया निशान लगाए हैं। यह एक प्रकार से आतंकियों के पक्ष में उठाई गई आवाज को ही रेखांकित करता है। इसलिए कहा यह भी जा रहा है कि इन मुख्य चुनावों में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ को सेना और आतंकियों का भी समर्थन मिला है। इमरान खान की यही बात इस बात को बल दे रही है कि वह भारत के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकते हैं।
यह बात सच है कि पाकिस्तान आतंकी देश है। पाकिस्तान सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त करने वाले वैश्विक आतंकियों के इरादों के चलते पूरे देश की बदनामी हुई। देश की बदनामी का मतलब वहां की जनता की बदनामी ही कही जाएगी। अब संभवत: पाकिस्तान की जनता ने इस बदनामी के दायरे से निकलने का मन बनाया है, आतंकी संगठनों के उम्मीदवारों को हरा दिया है। चुनावों में वैश्विक आतंकी हाफिज सईद ने जबरदस्ती चुनावों में भाग लिया, जबरदस्ती इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने हाफिज सईद के राजनीतिक मंसूबों को फलीभूत करने वाले इस कदम को रोक लगाकर उनकी पार्टी को मान्यता देने से साफ मना कर दिया। इसके बाद हाफिज सईद ने दूसरी पार्टी बनाकर 265 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। पाकिस्तान चुनाव के परिणामों ने एक प्रकार से हाफिज सईद को गहरा झटका दिया है।
पाकिस्तान के चुनाव परिणामों ने जिस प्रकार से परिणाम दिए हैं, वह हालांकि संदेहों को जन्म दे रहे हैं। चुनाव को संदेहास्पद मानने की आवाजें बाहर ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान में भी उठने लगी हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और नवाज शरीफ की पीएमएल एन ने तो चुनाव के परिणामों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि ऐसे डरावने चुनाव हमने कभी नहीं देखे। इसी प्रकार अमेरिका ने भी पाकिस्तान के चुनाव परिणाम पर संदेह व्यक्त किया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ को सबसे बड़ी पार्टी के रुप में स्थापित करना पाकिस्तानी राजनीतिक जगत में किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यह सही है कि पाकिस्तान में चुनाव प्रक्रिया के दौरान बड़े स्तर पर हिंसा हुई।
पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कुल 342 सदस्य होते हैं, जिनमें से 272 को सीधे तौर पर चुना जाता है जबकि शेष 60 सीटें महिलाओं और 10 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं। आम चुनावों में पांच प्रतिशत से ज्यादा वोट पाने वाली पार्टियां इन आरक्षित सीटों पर समानुपातिक प्रतिनिधित्व के हिसाब से अपने प्रतिनिधि भेज सकती हैं। कोई पार्टी तभी अकेले दम पर सरकार बना सकती है जब उसे 137 सीटें हासिल हो जाए। लेकिन इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है, परंतु उसको पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका। इसलिए सरकार बनाने के जादुई आंकड़े के लिए कुछ सदस्यों का समर्थन बहुत ही आवश्यक है। लेकिन यह लगभग तय सा दिखाई देने लगा है कि इमरान खान ही पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बनेंगे।