नीलमेघ चतुर्वेदी: आटा से डाटा तक 100 दिनों का सहकारी रिपोर्ट कार्ड

Update: 2024-09-18 07:13 GMT

मोदी 3.0 के 100 दिन By नीलमेघ चतुर्वेदी : किसी भी सरकार के लिए 100 दिन की कार्यावधि कम समय है, किंतु लक्ष्य जब पहले ही तय हो तो रिपोर्ट कार्ड के लिए यह अवधि कम कम नहीं। मोदी सरकार ने तीसरे कार्यकाल के लक्ष्य पहले ही तय कर लिए थे। हर मंत्रालय ने अपने-अपने लक्ष्य जमीन पर उतारने का भरसक प्रयास किया है। सबसे युवा सहकारिता मंत्रालय ने भी आटा से लगाकर डाटा तक लक्ष्य संधान में सफलता प्राप्त की है। देश के प्रथम केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह के लिए यह दूसरी पारी है, जब उन्हें गृह के साथ सहकारिता मंत्रालय की बागडोर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सौंपी। अमित शाह सहकारिता के 'डॉक्टर' हैं और कहा जाता है कि प्राथमिक कृषि सहकारी साख संस्था से लगा जिला सहकारी केंद्रीय बैंक अहमदाबाद के अध्यक्ष रहने तक उन्होंने सहकारिता की 'नस-नस उलखी है।

6 जुलाई 2021 को मंत्रालय का कार्यभार संभालने और 8 मार्च 24 को प्रथम कार्यकाल के अंतिम कार्यक्रम नेशनल कोआपरेटिव डाटा बेस लोकार्पण को संबोधित करते हुए उन्होंने जिस आत्मविश्वास का परिचय दिया, वह देश के सामने है। प्रथम कार्यकाल की योजनाएँ तो झरने के पानी की तरह धरातल पर बहने लगी, किंतु दूसरी बार सहकारिता मंत्रालय आते ही फिर सौ दिनों के अर्जुन लक्ष्य ने सहकारिता आंदोलन को आर्गेनिक आटे से लगा डाटा और कम्प्युटरीकरण की तीव्र गति का अनुभव भी कराया। 6 जुलाई 2024 को 102वें विश्व सहकारिता दिवस समारोहण के लिए अमित शाह ने गृह राज्य गाँधीनगर में कार्यक्रम की स्वीकृति दी।

भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) और सहकारिता मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में भारतीय राष्ट्रीय कोआपरेटिव आर्गेनिक लिमिटेड का 'भारत" ब्रांड आटा जारी कर जहाँ सहकारिता को मूल्यअर्हित उत्पाद बेचने की सीख दी वहीं नैनो यूरिया और नैनो डीएपी पर 50 प्रतिशत राज सहायता की घोषणा पर गुजरात की पीठ भी थपथपाई। पहले कार्यकाल में जिन 54 सहकारी पहलों का मंगलाचरण किया था, अमित शाह ने उस पर लगातार निगरानी रखी, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार 'सेवत अंड कमठ की नाईं'।

केंद्रीय सहकारिता पंजीयक कार्यालय और राज्यों के सहकारिता पंजीयक कार्यालयों के कम्प्युटरीकरण का लक्ष्य प्राप्त किया। विश्व के सबसे बड़े अनाज भंडारण के सहकारिता के झंडे तले क्रियान्वयन की गति पर निगाह रखी। तीसरे कार्यकाल के सौ दिनों के भीतर अनेक पेक्स में 2000 हजार मेट्रिक टन क्षमता के विकेंद्रीकृत अनाज भंडारों के निर्माण कार्य योजनाएँ जमीन पर उतरने लगी।

दूसरे कार्यकाल में विश्व सहकारिता दिवस प्रसंग पर प्रथम विशाल कार्यक्रम में अमित शाह ने प्रत्येक जिले में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक गठन की घोषणा की थी। यह सहकारिता में विकेंद्रीकृत लोकतांत्रिक व्यवस्था के संदर्भ में बड़ी घोषणा थी। इस पर कार्यान्वयन प्रारंभ हो चुका है।

राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने मुंबई में हाल ही की समीक्षा बैठक में इसके संकेत दिए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक की एक जिला एक जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की नीति रही है। गत 24 सालों में इस नीति का उल्लंघन हो रहा था। राज्यों के पुनर्गठन के बाद अनेक जिले अन्य राज्यों में गए। नए जिले बने, किंतु जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों की संख्या उतनी ही रही। फलस्वरूप देश भर के अनेक जिलों में मध्यवर्ती सहकारी नेतृत्व पनप नहीं पा रहा था। नाबार्ड द्वारा इस संबंध में कार्य योजना बनाना एक तरह से सौ दिवस के रिपोर्ट कार्ड में सफलता बिंदु का एक भाग है। प्राथमिक कृषि सहकारी साख संस्थाएँ (पेक्स) अभी तक सीमित कारोबार के बीच ही उलझी थी, जैसे शहतूत के वृक्ष पर रेशम कीट। अब पेक्स बहुउद्देश्यीय स्वरूप में सामने है। यानी अब अनंत आकाश उनके सामने हैं। खाद-बीज के साथ अब गैस सिलेंडर, कृषि उपकरण, पेट्रोल-डीजल, सभी पेक्स की विशालकाय छत के नीचे उपलब्ध कराने की योजना जमीन पर उतर रही है। बड़ी संख्या में पेक्स ने प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र प्रारंभ कर दिए हैं।

बजट 2022-23 में सहकारी शकर मिलों को भूतलक्ष्यी प्रभाव से करारोपण में 10,000 करोड़ रुपए की राहत दी गई। शकर सहकारिताओं ने इस राहत का उपयोग शकर मिलों के विविधिकरण, इथेनॉल उत्पादन में किया। फलस्वरूप देश में जैव ईंधन उत्पादन बढ़ा। जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटी। आयात पर निर्भरता में कभी के चलते विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव घटा। साथ ही ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी आई। नेशनल सहकारी डाटा बेस तैयार होने से समय पर शुद्ध डाटा की जानकारियाँ मिलने लगी। आयोजना की तैयारी शुद्ध समंकों के आधार पर होने लगी है। सहकारिता में अब 'अनुमानिंत तर्कन्ते गेहूँ दलते तो आटा होतेÓ की स्थिति नहीं रही। एक क्लिक पर सभी जरूरी सूचनाएँ मिलने लगी है। इनका उपयोग प्रारंभ हो गया है। सौ दिनों की सहकारी उपलब्धियाँ धीरे-धीरे सामने आ रही है। जैसे-जैसे दिन बीतेंगे,उपलब्धियों का आकार भी बढ़ेगा, ऐसी अपेक्षा की जानी चाहिए।

नीलमेघ चतुर्वेदी - वरिष्ठ पत्रकार हैं

Tags:    

Similar News