स्मृति शेष : खल गया जाना, एक संवेदनशील अभिनेता और निर्देशक सतीश कौशिक का...
अतुल गंगवार
वेबडेस्क।
काश असल जि़न्दगी में भी इंटरवल होता...
फिर मिलते... पिक्चर तो अभी बाकी थी...
इतनी जल्दी या थी द एंड की स्लेट लगाने की।
प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक निर्माता सतीश कौशिक से मेरा पहला परिचय सिनेमा के पर्दे पर 1983 में हुआ था, जब मैंने उनकी फिल्म ‘जाने भी दो यारो’ देखी थी। इस फिल्म में सतीश कौशिक जी ने अपनी छोटी सी भूमिका में मुझे बहुत प्रभावित किया था। इसके संवाद लिखने में भी उनका योगदान था।इस फिल्म का मेरे ऊपर इतना प्रभाव पड़ा कि दिल्ली के शीला सिनेमा में मैने लगातार दो शो इस फिल्म को स्कूल से भागकर देखा और इसके बाद तो भाग कर फिल्में देखने का सिलसिला ही शुरू हो गया। वक्त के साथ जब सिनेमा को देखने और समझने की तमीज बढ़ी तो सतीश कौशिक जी को उनकी छोटी बड़ी भूमिकाओं के माध्यम से अभिनेता के रुप में ओर जानने का अवसर मिला।
अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा और भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी लाप फिल्म ‘रुप की रानी चोरों का राजा’ बनाई। इस फिल्म की असफलता को असर वह हंस कर बताते थे। लेकिन जब ये फिल्म लाप हुई थी, तो एक समय ऐसा भी था कि वो आत्महत्या तक करने की सोच रहे थे। फिर उन्होंने अपनी कमजोरी पर विजय पायी और आगे चलकर हिंदी सिनेमा को अनेक बेहतरीन फिल्में बतौर निर्देशक दीं।
हालांकि आज से लगभग दो तीन साल पहले उनको हरियाणा फिल्म पॉलिसी के लिए हुई एक मीटिंग में मिला था, लेकिन कायदे की मुलाकात अभी हाल ही में चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल के पोस्टर लॉंच कार्यक्रम में हुआ था। दो तारीख को होने वाली प्रैस कॉंफ्रेंस के लिए वो दिल्ली एक तारीख की रात को आ गये थे। मेरे मन में उनको लेकर कई बातें चल रहीं थी। बात व्यवहार में कैसे होंगे। हमें कितने नखरे उनके उठाने होंगे। इसको लेकर मुझे बहुत घबराहट हो रही थी। मित्र अमित आर्य जो उनसे लगातार संपर्क बनाए हुए थे। जो सतीश जी के साथ हरियाणा फिल्म पॉलिसी के बनने के दौरान शुरु से ही साथ थे, वह भी सतीश जी को लेने एयरपोर्ट आ गए थे। उनको देख कर मेरी चिंता थोड़ी कम हो गई थी।। खैर सतीश जी दिल्ली पहुंचे। मेरे साथ अमित जी, भारतीय चित्र साधना के मेरे सहयोगी अनुपम भटनागर जी थे। हमने उनका स्वागत किया। अमित जी ने कहा कि आप और सतीश जी कल के कार्यक्रम की रुपरेखा पर काम कर लीजिए। मैंने उन्हें भारतीय चित्र साधना के बारे में जानकारी दी। हमारा कार्य, हमारा उद्देश्य, हमारा लक्ष्य या है।
रील के सतीश जी और रीयल सतीश जी में कोई फर्क नहीं पाया। मस्तमौला, जीवन से भरपूर, भविष्य की कल्पनाओँ से भरपूर सतीश जी भारतीय चित्र साधना द्वारा पंचकूला, हरियाणा में आयोजित होने वाले पंचम चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल के आयोजन को लेकर बहुत उत्साहित थे। हरियाणा में फिल्मों को लेकर उनकी सोच हमेशा से सकारात्मक रही थी। वह चाहते थे कि हरियाणा में फिल्म संस्कृति का सकारात्मक विस्तार हो जिसके लिए वह लंबे समय से प्रयत्नशील थे। चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल का पंचम संस्करण पंचकूला,हरियाणा में होने जा रहा है, ये उनके लिए प्रसन्नता का विषय था और इसके सफल आयोजन के लिए वह इसमें कोई भी भूमिका निभाने के लिए तैयार थे। उनका कहना था मुझे जो भी जिमेवारी दी जायेगी उसको वह निभायेंगे। उन्होंने बताया कि अपनी पिछली फिल्म कागज़ के माध्यम से भारती कहानी ही कहने की कोशिश की थी और जिसे दर्शकों का बहुत प्यार मिला। उस फिल्म की सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने निर्णय लिया है कि वह अब सिर्फ भारतीय कहानियों पर ही फिल्मों का निर्माण किया करेंगे।
श्री सतीश कौशिक अपने सिनेमा के माध्यम से सदैव फिल्मों के चाहने वालों के बीच बने रहेंगे। आखिर कौन भूल सकता है मि. इंडिया के ‘कैलेंडर’ को, कौन भूल सकता है दीवाना मस्ताना के‘पप्पू पेजर’ को, जाने भी दो यारों में तरनेजा के सहयोगी ‘अशोक’ को, बड़े मियां छोटे मियां के ‘मंझले मियां’ को। ऐसी अनेकों कालजयी भूमिकाओं को उन्होंने अपने जीवंत अभिनय से हमेशा के लिए अमर कर दिया। सतीश जी को ‘राम लखन’ और ‘साजन चले ससुराल’ फिल्मों में अपने अभिनय के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। सतीश कौशिक एक संवेदनशील अभिनेता और निर्देशक थे। उनकी फिल्मों के विषय असर समाज से ही जुड़े हुए रहते थे। सतीश जी का असमय दुनिया से जाना उनके परिवार की व्यक्तिगत क्षति तो है ही, भारतीय सिनेमा की भी क्षति है। साथ ही हरियाणा के युवा जो सिनेमा के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं उनके लिए भी सतीश जी का जाना नुसानदेह है।
भारतीय चित्र साधना के लिए भी ये अपूर्णीय क्षति है। उनके मार्गदर्शन में चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल नई ऊंचाइयों को छूता। लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास है, सतीश जी के चाहने वाले उनके स्वप्न को साकार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। भारतीय चित्र साधना भी 23,24,25 फरवरी को पंचकूला में होने वाले पंचम चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल के माध्यम से उनकी सोच को साकार और विस्तार देने का काम करेंगा। उनके लाखों चाहने वालों की ओर से उनको भावभीनी-अश्रुपूर्ण श्रृद्धांजलि।
(लेखक फिल्म समीक्षक व भारतीय चित्र साधना के राष्ट्रीय सचिव है )