हनुमान जयंती पर विशेष: 'जोड़ गणेश' की माया, जो मांगा सो पाया, हनुमान जी से बल और गणेश जी से बुद्धि का आशीर्वाद लेने देश भर से आते हैं युवा

अनुराग उपाध्याय, ओंकारेश्वर: नाम है जोड़ गणेश, लेकिन यहां गणेश जी का जोड़ है हनुमान जी के साथ। इसका सीधा सा अर्थ है 'बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार' का अनोखा संगम। सामान्य तौर पर गणेश जी और हनुमान जी एक मंदिर में तो मिलते हैं लेकिन एक साथ नहीं। परन्तु, जोड़ गणेश मंदिर में पहले हनुमान जी और उनके साथ ही गणेश जी विराजमान हैं। इसीलिए यहां के बारे में कहते हैं, 'जोड़ गणेश की माया, जो मांगा सो पाया। '
अगर आप बजरंगबली के उपासक हैं तो आप पाएंगे कि वे मंदिरों में अकेले या प्रभु श्री राम के साथ ही नजर आते हैं। ऐसे ही गणेश जी, शिव परिवार या अकेले मंदिरों में विराजमान होते हैं। लेकिन जिस जोड़ की यहां चर्चा है, वह विश्व में अनोखा है। ये जोड़ हनुमान जी और गणेश जी का है। ये मंदिर युवाओं में अति लोकप्रिय है। जैसे ही ओमकार पर्वत के पास से ओंकारेश्वर में प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले 'जोड़ गणेश मंदिर ही मिलता है। जोड़ गणपति आश्रम इसी मंदिर के कारण लोकप्रिय है। यहां साधु-संत और मलंगों का डेरा है। आश्रम में सबसे ज्यादा वे युवा नजर आते हैं जो जीवन में बल बुद्धि और विद्या चाहते हैं। इंदौर के स्वरूप सिंह आईआईटी पासआउट हैं, वे मानते हैं उनके विचलित मन को हनुमान जी और गणेश जी के जोड़ ने आशीर्वाद दिया और उन्हीं की कृपा से वे आगे बढ़ सके हैं, ऐसी कई सत्य कथाएं जोड़ गणेश से आशीर्वाद लेते हुए मिल जाती हैं।
ऐसे स्थापित हुआ मंदिर
नर्मदा किनारे जब ओंकारेश्वर में बसाहट हुई तो कुछ विशेष बनावट के कारण यहां वास्तुदोष माना गया। जिसे ठीक करने के लिए ओंकारेश्वर में प्रवेश के हर मार्ग के दोनों पर हनुमान जी और गणेश जी की आमने-सामने स्थापना की गई। लेकिन ओंकारेश्वर के मुख्य मार्ग पर उस समय स्थान कम होने के कारण हनुमान जी और गणेश जी की प्राचीन प्रतिमा को एक साथ, एक स्थान पर रख दिया गया। बताते हैं ये दोनों तब से यहीं विराजित हैं। बल, विद्या, बुद्धि के इन दोनों देवता तब से न तो यहां से हटे हैं और न कोई उन्हें हटा पाया। धीरे-धीरे इनकी ख्याति जोड़ गणेश के रूप में हुई। अब बल, बुद्धि और विद्या की चाहत में देश भर से युवा यहां आते हैं।
यह है किवदंती :
किवदंती है कि लाखों वर्ष पूर्व राजा मांधाता ने इसी ओंकारेश्वर में शिव तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए तब राजा मांधाता ने शिव से वरदान मांगा कि वे यहीं निवास करें। तब से इस पर्वत को मांधाता पर्वत या ओंकार पर्वत के रूप में जाना जाने लगा। इक्ष्वाकु वंश के राजा मांधाता को भगवान राम का पूर्वज माना जाता है। ऐसे में यह जहां शिव और राम का नाम जुड़ा हो वहां हनुमान जी और गणेश जी स्वाभाविक रूप से विराजमान होते हैं।
जो यहां आता है, खाली हाथ नहीं जाता
"हनुमान जी और गणेश जी दोनों शिव को अति प्रिय हैं। एक पुत्र हैं तो दूसरे भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार। इस जोड़ की शरण में जो आया उससे इन दोनों के साथ शिव भी प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए जो यहां आता है कभी खाली हाथ नहीं जाता। ये दोनों ही बल, विद्या बुद्धि के साथ अष्ट सिद्धियों और नव निधियों के दाता हैं। इनका एक साथ होना ही सोने पर सुहागा है। हनुमान जी और गणेश जी का जोड़ सात्विक आराधना का प्रमुख केंद्र हैं। बड़ी संख्या में युवा आते हैं। आराधना करते हैं और असीम ऊर्जा प्राप्त कर मनोवांछित फल की प्राप्ति करते हैं। ये स्थान तो ज्ञान और बुद्धि अर्जन का बड़ा स्त्रोत है।" -मंगल दास जी त्यागी, प्रमुख संत, 'जोड़ गणेश' आश्रम