56 Bhog Thali: जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को अर्पित करते हैं 56 भोग की थाली, पौराणिक काल से है संबंध

जन्माष्टमी के दिन विधि विधान के साथ पूजा करने के नियम होते हैं तो कई चीजों का भोग इस दिन लगाया जाता हैं। इसमें 56 भोग थाली का महत्व होता है।

Update: 2024-08-25 14:58 GMT

56 Bhog Thali on Janmashtami 2024: देशधार में जन्माष्टमी का त्यौहार 26 अगस्त को मनाया जाने वाला है इस दिन भगवान श्री कृष्णा का जन्म हुआ था इसके उपलक्ष्य पर धूमधाम से भक्त इस भव्य दिन को मानते हैं। जन्माष्टमी के दिन विधि विधान के साथ पूजा करने के नियम होते हैं तो कई चीजों का भोग इस दिन लगाया जाता हैं। इसमें 56 भोग थाली का महत्व होता है। इसका महत्व पौराणिक काल में एक कथा से प्रचलित हैं।

स्थानीय व्यंजनों के अनुसार लगाया जाता हैं भोग 

जन्माष्टमी के मौके पर भोग में लगाई जाने वाली थाली में बदलते दौर के साथ इस थाली को स्थानीय व्यंजनों के हिसाब से तैयार किया जाने लगा है, जो भारतीय भोजन के प्रति लोगों के अगाध प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है। इतना ही नहीं सदियां बीत गई लेकिन 56 भोग की थाली का भोग लगाना आज भी जारी है।

जानिए थाली में कौन से भोग होते है शामिल

56 भोग की थाली तैयार की जाती है, जिसमें मीठे, नमकीन और खट्टे से लेकर तीखे, कसैले और कड़वे व्यंजन भी शामिल होते हैं जिसमें पंजीरी, मोहनभोग, शक्करपारा, आलूबुखारा, पापड़, शहद, शिकंजी, माखन-मिश्री मूंग दाल हलवा, मठरी, किशमिश, खिचड़ी, सफेद-मक्खन, चना,खीर, घेवर, चटनी, पकोड़े, बैंगन की सब्जी , ताजा क्रीम, मीठे चावल, रसगुल्ला, पेड़ा , मुरब्बा, साग, दूधी की सब्जी, कचौरी, भुजिया, जलेबी, काजू-बादाम बर्फी, आम, दही, पूड़ी, रोटी, सुपारी, रबड़ी, पिस्ता बर्फी, केला, चावल, टिक्की, नारियल पानी, सौंफ, जीरा-लड्डू, पंचामृत, अंगूर , कढ़ी, दलिया, बादाम का दूध, पान, मालपुआ, गोघृत, सेब, चीला , देसी घी, छाछ, मेवा शामिल होते हैं।

यह पौराणिक कथा है प्रचलित

आपको बताते चलें कि, गोवर्धन की पूजा से देवताओं के राजा इंद्र बहुत क्रोधित हो उठे और ब्रज में भारी वर्षा करके अपना प्रकोप दिखाने लगे। ऐसे में, ब्रजवासी भयभीत होकर नंद बाबा के घर पहुंचे और श्रीकृष्ण ने बाएं हाथ की उंगली से पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया, जिसकी शरण में ब्रजवासियों को सुरक्षा मिली।

कथा के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण 7 दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए गोवर्धन पर्वत को उठाए रहे, ऐसे में आठवें दिन जाकर वर्षा रुकी और ब्रजवासी बाहर आए। गोवर्धन पर्वत ने न सिर्फ ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने का काम किया बल्कि इस बीच ब्रजवासियों को बाल कृष्ण की अद्भुत लीला का दर्शन भी हो गया।

ऐसे में, सभी को मालूम था कि सात दिनों से कृष्ण ने कुछ भी नहीं खाया है। तब सभी मां यशोदा से पूछने लगे कि आप अपने लल्ला को कैसे खाना खिलाती हैं, तो इसपर सभी को मालूम चला कि माता यशोदा अपने कान्हा को दिन में आठ बार खाना खिलाती हैं।ऐसे में, बृजवासी अपने-अपने घरों से सात दिनों के हिसाब से हर दिन के लिए 8 व्यंजन तैयार करके लेकर आए, जो कृष्ण को पसंद थे। इसी तरह छप्पन भोग की शुरुआत हुई।

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