Hardoi News: शाहाबाद में युवक की पिटाई से मौत, सभासद सहित 6 पर पिटाई की तोहमत...

शाहाबाद में शुक्रवार को एक युवक को पीट पीट मार डालने की बात सामने आई। युवक के घर वालों ने अपने वार्ड के सभासद सहित पांच पर उंगली उठाते हुए शाहाबाद पुलिस को तहरीर दी थी।

Update: 2024-08-31 15:45 GMT

बृजेश कबीर हरदोई। शाहाबाद में शुक्रवार को एक युवक को पीट पीट मार डालने की बात सामने आई। युवक के घर वालों ने अपने वार्ड के सभासद सहित पांच पर उंगली उठाते हुए शाहाबाद पुलिस को तहरीर दी थी। तीन दिन पीछे रास्ते के विवाद में पुलिस ने शांतिभंग में चालान किया था उसका और अब एडिशनल (वेस्ट) मार्तंड प्रकाश उसे ’मानसिक डिस्टर्ब’ बता रहे हैं। हालांकि, उन्होंने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के परीक्षण पश्चात की परिस्थिति देखने को कहा। हालांकि, समुचित हेल्थ सर्टिफिकेट के बिना युवक को विक्षिप्त बता पुलिस ने खुद की किरकिरी करा ली है। विक्षिप्त के चालान से पहले प्रोबेशन अधिकारी की मंजूरी चाहिए होती है। मंजूरी मिल भी जाए तो विक्षिप्त को हवालात या कारागार में नहीं रखा जा सकता।

क्या है पूरा मामला 

घटनाक्रम एक नज़र में देख लेते हैं,सुलेमानी मोहल्ले के आरिफ वल्द शाहिद ने शाहाबाद पुलिस को तहरीर दे तोहमत लगाई, उसका भाई उस्मान आम रास्ते से गुजर रहा था। सभासद और 05 अन्य ने रोका टोका। उस्मान ने मुखालफत की तो सभी में लाठियों और सरियों से हमला कर दिया। लहूलुहान उस्मान को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ले गए, वहां उसे मृत बता दिया गया। तीन दिन पहले सभासद और उस्मान के बीच रास्ते का मुबाहिसा हुआ था। शाहाबाद पुलिस में उस्मान का शांतिभंग में चालान किया था। अब, अपर पुलिस अधीक्षक पूर्वी मार्तंड प्रकाश सिंह ने युवक को ’मानसिक डिस्टर्ब’ बताया है।

एक्ट में कही बात 

वरिष्ठ अधिवक्ता आनन्द त्रिवेदी कहते हैं, बच्चे, किशोर और विक्षिप्त नेशनल हेल्थ एक्ट के तहत विशेष संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। कोई परिस्थिति बनती है तो कार्यवाही के लिए जिला प्रोबेशन अधिकारी की अनुमति आवश्यक है। बताते हैं, पहले मानसिक बीमार और मानसिक अशक्त गैर-अपराधी को कारागार में रखा जाता था। उच्चतम न्यायालय ने (फौजदारी याचिका सं. 237/1989) शीला बरसे बनाम भारत सरकार एवं अन्य में अपने निर्देशों द्वारा इस प्रथा को अवमानित किया। .

क्या रहा फैसला 

आदेश सुनाया, गैर-अपराधी मानसिक बीमार व्यक्तियों को कारागारों में कैद करना अवैध और असंवैधानिक है। कहा, अबसे केवल न्यायिक दंडाधिकारी ही मानसिक बीमार को अभिरक्षा में भेज सकेंगे, कोई कार्यपालक दंडाधिकारी नहीं। न्यायिक दंडाधिकारी को ऐसा करने के लिए पहले किसी मनोचिकित्सक से सलाह लेनी पड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरणों के अभिलेखों को सभी हाईकोर्ट को इस अनुरोध के साथ स्थानांतरित कर दिया कि वह अभिलेखों को जनहित याचिका के रूप में दर्ज करेंगे, जिसमें उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति को याचिकाकर्ता मानेंगे, जिससे उच्च न्यायालय को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों और आदेशों और उच्च न्यायालय से पारित आदेशों के मामलों में अनुवीक्षण और अनुपालन में सहायता होगी।

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