हिमाचल की दिवालिया स्टोरी: कांग्रेस की ‘खटाटक गारंटी’ ने हिमाचल का निकाला ‘फटाफट दिवाला’
कांग्रेस राज में हिमाचल की मिली देश के दूसरे सबसे अधिक प्रति व्यक्ति कर्ज वाले राज्य की उपाधि...
मधुकर चतुर्वेदी, नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का वादा करके चुनाव जीतने और सरकार बनाने वाली कांग्रेस सरकार के दौर में हिमाचल प्रदेश आज दिवालिया होने की कगार पर खड़ा है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और उनके मंत्रियों ने दो माह तक वेतन न लेने की घोषणा कर दी है।
एक ओर हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड और पंजाब को इंडस्ट्रियल स्मार्ट सिटी मिल रहे हैं तो दूसरी ओर जिस ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने के वादे के साथ कांग्रेस ने हिमाचल में सरकार बनायी, आज वह लागू होना तो दूर सरकारी कर्मचारियों को उनका मूल वेतन देना भी सरकार के लिए भारी पड़ रहा है। कांग्रेस की खटाटक गारंटी के दौर में हिमाचल प्रदेश आज इतने फटेहाल हो गया है कि उसे देश के दूसरे सबसे अधिक प्रति व्यक्ति कर्ज वाले राज्य की उपाधि भी मिल गई है।
दरअसल हिमाचल प्रदेश पर इस समय 87,000 करोड़ रू. का कर्ज है और अगले वित वर्ष से पहले ही यह आंकड़ा 1 लाख करोड़ रू. की सीमा को पार कर जाएगा। प्रदेश का सालाना बजट 58,444 करोड़ रू. का है। इसमें वेतन, पेंशन और कर्ज चुकाने में ही 42,000 करोड़ रू. से अधिक खर्च हो जाते हैं। वहीं वित्तीय वर्ष 2023-24 में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट 8058 करोड़ रुपये था। इस साल 1800 करोड़ रु. कम होकर रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट 6258 करोड़ रु. हो गई है। वर्ष 2025-26 में यह 3000 करोड़ रु. और कम होकर 3257 करोड़ रु. रह जाएगी।
हिमाचल प्रदेश में जारी आर्थिक संकट के बीच एक सच्चाई यह भी है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जो खटाखट गारंटी के लोक लुभावन वादे किए थे, उसमें से कई चुनावी वादे अभी तक पूरे नहीं किए हैं और जो किए हैं, वह भी आधे-अधूरे। अच्छा तो यह रहता कि खटाखट गारंटी देने से पहले कांग्रेस के नीति नियंता आर्थिक नियमों और राज्य की वित्तीय स्थिति की पड़ताल कर लेते।
सत्ता पाने के चक्कर में कांग्रेस ने चुनावों में खटाखट गारंटी तो दे दी लेकिन, आने वाले दिनों में कांग्रेस सरकार जनता को दी गारंटी को कैसे पूरा करेगी, इसकी उसके पास फिलहाल कोई योजना नहीं है। ऐसे में हिमाचल की जनता को इतना तो आभास हो चला है कि कांग्रेस के लोकलुभावन वादों ने उनको ना केवल गुमराह किया, बल्कि भविष्य के साथ खिलवाड़ भी किया है। मुख्यमंत्री सुक्खू को चाहिए कि वेतन त्यागने के संदेश को देने की बजाय हिमाचल जैसे सुंदर प्राकृति परिवेश वाले राज्य की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाएं।