अंतर्राष्ट्रीय ध्यान दिवस: योग और ध्यान का विकास, वेदों से वैश्विक मंच तक....
श्रीमती बिमला कुमारी: योग प्राचीनतम परंपरा है। प्राचीनतम आर्ष ग्रन्थों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि भगवान ने सृष्टि के आरंभ में इस परंपरा को प्रारंभ किया था। योग का उद्भव सभ्यता के विकास के साथ ही माना जाता है। प्राचीनतम धर्म के उद्भव से पूर्व ही योग की उत्पत्ति हो चुकी थी। योग में शिव को "आदियोगी" माना जाता है। यह भारतीय ऋषि मुनियों एवं योगियों द्वारा प्रतिवादित आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
योग के विभिन्न तत्वों में ध्यान आत्म तत्व के ज्ञान एवं जीवन के चरम लक्ष्य (समाधि) की प्राप्ति की सीढ़ी का अंतिम पायदान है। यह आत्मिक शांति प्रदान करने के साथ-साथ तन और मन का लयात्मक संबंध और चित्त की शुद्धि करता है। योग परंपरा के इतिहास में एक और स्वर्णिम क्षण तब आया जब हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने मित्र देशों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर 21 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय ध्यान दिवस के रूप में मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष प्रस्ताव पारित किया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकारते हुए 21 दिसंबर को 'विश्व ध्यान दिवस' घोषित किया। भारत के साथ लिंकटेस्टिन श्रीलंका , नेपाल, मेक्सिको और अंगोरा आदि देशों के मुख्य सदस्य थे जिन्होंने 193 सदस्य संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व ध्यान दिवस के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया था।
भारत हमेशा से ही 'वसुधैव कुटुंबकम' की नीति का समर्थक रहा है। 21 जून और 21 दिसंबर यह दोनों दिन आध्यात्मिक और भौगोलिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। 21 दिसंबर को ही योग दिवस मनाने का भी आध्यात्मिक एवं भौगोलिक कारण यही है। 21 दिसंबर को सूर्य उत्तरायण की ओर प्रवेश करता है यह समय शीतकालीन संक्रांति का होता है।
शास्त्रों के अनुसार यह दिन देवताओं को समर्पित होता है। महाभारत के युद्ध के बाद भीष्म पितामह ने भी सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राण त्यागे थे। 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है क्योंकि भौगोलिक दृष्टि से 21 जून उत्तरी गोलार्ध का सबसे लंबा दिन होता है जिसे ग्रीष्म संक्रांति कहते है।
ग्रीष्म संक्रांति के बाद सूर्य दक्षिणायन में प्रवेश कर जाता है जिसे योग और आध्यात्मिक के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। वेद उपनिषदों में भी उत्तरायण मार्ग और दक्षिणायन मार्ग का उल्लेख मिलता है। ईशावास्य उपनिषद जो शुक्ल यजुर्वेद से संबंधित है उसके 18वें मंत्र में भी अग्नि के अधिष्ठाता देव से सुपथा मार्ग यानी उत्तरायण मार्ग से जाने की प्रार्थना की गई है।
योग में ध्यान के सबसे पुराने लिखित अभिलेख वेदों के लगभग 1500 ईसा पूर्व के हैं। उपनिषद, जैन धर्म ,बौद्ध धर्म के चिंतन में ध्यान एक प्रमुख भूमिका निभाता है। आत्म और ब्रह्म को समझने के लिए ध्यान एक विद्या है।
आदिकाल से ही हमारे ऋषि मुनियों ने योग में बताई गई ध्यान की विधियों से ईश्वर प्राप्ति की है। चार वेदों में से सामवेद में गायन यानी नाद संगीत का सहारा लिया है। ध्यान में जाने के लिए हमारे देवी -देवताओं ऋषि मुनियों, साधु संतों ने नाद संगीत का सहारा लिया है।
नारद जी ने भगवान विष्णु से प्रश्न किया कि भक्तजन आपको प्राप्त करने के लिए कौन सा तरीका अपनाएं तो उत्तर मिला,
नाहम वसामि वैकुण्ठे योगी नाम हृदय न च
माम् भक्तः मंत्र यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारदः (पद्म पुराण 3.14/२४)
अर्थात ना तो मैं स्वर्ग में रहता हूं और ना योगी के हृदय में , मैं तो वहां निवास करता हूं जहां भक्तगण संकीर्तन करते है। मन पर नियंत्रण द्वारा भौतिक शरीर एवं चेतन में पूर्ण संतुलन यही संपूर्ण स्वास्थ्य है और यही आध्यात्मिकता भी है। प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने का एक मुख्य आयाम है - ध्यान। ध्यान के माध्यम से अपने विचारों का शुद्धिकरण कर उच्च मानसिक क्षमता वाले दिव्य सकारात्मक चिंतन में निश्चित ही अभिवृद्धि संभव होती है।
महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र के विभूति पद के दूसरे सूत्र में ध्यान को परिभाषित करते हुए लिखा है -
तत्र प्रति एक तानतः ध्यानम।
जिस स्थान में धरना हुई है उसे स्थान में चित का एक समान बना रहना ध्यान है।।ध्यान ईश्वर साक्षात्कार का विज्ञान है। विश्व का सबसे व्यावहारिक विज्ञान है। ईश्वर को अपने अंतःकरण में खोज कर उन्हें हर तरफ हर परिस्थिति में अनुभव करना ध्यान है। ध्यान अस्थिरता से स्थिरता की ओर बाहर से अंदर की ओर स्थल से सूक्ष्म की ओर और जड़ से चेतन की ओर की यात्रा है |
ध्यान एक मानसिक क्रिया है। ध्यान के माध्यम से चेतना की अवस्था में बदलाव लाया जा सकता है। ध्यान महज़ धार्मिक ना होकर चिकित्सा के रूप में भी प्रयोग किया जा रहा है। ध्यान के दौरान मन और शरीर को गहरा विश्राम मिलता है। 20 या 30 मिनट के ध्यान से प्राण वायु का ग्रहण कम किया जा सकता है।
जो की 6 या 7 घंटे की निद्रा से होता है। इससे पर्णकंपी तंत्रिका तंत्र प्रभाव में आता है। ध्यान की अवस्था में ऊंचे अल्फावेव पैदा होते हैं साथ ही थीटा तरंगे भी पैदा होती हैं। ध्यान के माध्यम से हम बहुत सारी चिताओं और मानसिक अवसादों से निजात पा सकते हैं। आज के समय में मानसिक रोग , तनाव , अवसाद ,अशांति से ग्रसित युवा को बचाने के लिए चिकित्सा उपचार के साथ-साथ दूसरे विकल्प भी ढूंढे जा रहे हैं जिसमें योग और ध्यान एक उत्तम विकल्प के रूप में सामने आ रहा है।
योगासन , प्राणायाम और ध्यान से मनोरोग, अशांति, अवसाद की जकड को कम किया जा सकता है और हम उत्तम मनोस्थिति प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार ध्यान वर्तमान समय की आवश्यकता बन गया है। इसकी व्यावहारिक उपयोगिता को देखते हुए योग और ध्यान को दैनिक व्यवहार का अभिन्न अंग बनाना अनिवार्य है और इसके प्रचार एवं प्रसार के लिए सरकार द्वारा वैश्विक स्तर पर उठाया गया यह कदम योग के इतिहास में मील का पत्थर बन गया है |