Janmashtami: MP में श्री कृष्ण से जुड़े पवित्र स्थल, जानिए इनसे जुड़ी पौराणिक कथा

Update: 2024-08-24 08:42 GMT

Holy Places Related To Shri Krishna In MP : जन्माष्टमी पर मध्यप्रदेश समेत दुनिया भर के कृष्ण मंदिरों में भक्तों का ताता लगेगा। कहीं मटकी फोड़ प्रतियोगिता होगी तो कहीं छोटे - छोटे बालक - बालिकाएं कृष्ण - राधा बने दिखाई देंगे। इस बार मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मध्यप्रदेश में जन्माष्टमी धूमधाम से मनाने की बात कही है। यही नहीं सीएम यादव ने 4 स्थलों को कृष्ण तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा भी है। इसके पहले भी सीएम कई मौकों पर उन स्थलों को कृष्ण पथ के रूप में विकसित करने की बात कह चुके हैं जहां भगवान कृष्ण ने कदम रखा। आइए जानते हैं मध्यप्रदेश के उन स्थलों के बारे में जिनसे जुड़ी है माखनचोर श्री कृष्ण की कथाएं...।

सांदीपनि आश्रम :

उज्जैन अपने राजनीतिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। महाभारत काल की शुरुआत में उज्जैन शिक्षा का केंद्र भी था। भगवान श्री कृष्ण और बलराम ने गुरु उज्जैन के सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी। कथाओं के अनुसार आज से लगभग 55,00 साल पहले भगवान श्री कृष्ण और बलराम ने गुरु सांदीपनि के आश्रम में 64 दिन में 64 कलाएं सीखी थीं।

गुरु सांदीपनि कश्यप गोत्र में जन्मे ब्राह्मण थे। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को 64 कलाओं समेत वेद - पुराण का ज्ञान दिया था। वैष्णव सम्प्रदाय को मानने वालों के लिए इस आश्रम का विशेष महत्त्व है। महर्षि सांदीपनि का यह आश्रम मंगलनाथ रोड पर स्थित है।

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सांदीपनि आश्रम

आश्रम के पास के क्षेत्र को अंकपात के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान कृष्ण स्‍लेट पर लिखी अपनी लेखनी को धोया करते थे, इसलिए इसका नाम अंकपात पड़ा। यहां एक पत्थर पर पाए गए 1 से 100 तक के अंक गुरु सांदीपनि द्वारा उकेरे गए थे एसी भी मान्‍यता है। पुराणों में उल्लेखित गोमती कुंड प्राचीन समय में आश्रम में पानी की आपूर्ति का स्रोत था। यहां नंदी की एक प्रतिमा हैै। तालाब के पास नंदी की यह प्रतिमा शुंग काल के समय बनवाई गइ थी। माना जाता है कि, यहां जब महादेव, भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं को देखने आए थे तब नंदी उनके सम्मान में खड़े हो गए थे। इस तरह नंदी की खड़ी प्रतिमा के दर्शन भी इसी आश्रम में होते हैं।

इस आश्रम की एक ख़ास बात यह भी है कि, यहां भगवान श्री कृष्ण हाथ में स्लेट लिए दिखाई देते हैं। अधिकांश मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण हाथ में बांसुरी लिए नजर आते हैं। इस आश्रम को आज गुरु सांदीपनि के वंशज संभाल रहे हैं। जन्माष्टमी के अलावा गुरु पूर्णिमा पर भी यहां भक्तों की विशेष भीड़ होती है।

नारायण धाम :

नारायण धाम, भगवान श्री कृष्ण और उनके परम मित्र सुदामा का मंदिर है। यहां कृष्ण और सुदामा को पूजा जाता है। उज्जैन से 35 किलोमीटर दूर आगरा रोड पर जैथल में एक गांव है। यहीं यह मंदिर स्थित है। अतिप्राचीन इस मंदिर को कृष्ण - सुदामा धाम के नाम से भी जाना जाता है। जन्माष्टमी के दिन तो यहां मेला लगता है। इस मेले में लाखों की संख्या में लोग आते हैं।

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नारायण धाम

नारायण धाम से जुड़ी प्रचलित कथा यह है कि, सांदीपनि आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान गुरुमाता ने श्री कृष्ण और सुदामा को जंगल से लकड़ी लाने को कहा था। गुरुमाता ने सुदामा को रास्‍ते में खाने के लिए चने भी दिए थे। लकड़ी लेने के लिए दोनों दूर तक चले गए। इसके बाद तेज बारिश हुई जिससे दोनों ने एक स्थान पर शरण ली। यहां सुदामा ने श्री कृष्ण से छुपाकर चने खा लिए और श्री कृष्ण को भूखे रहकर पूरी रात गुजारनी पड़ी। जब गुरुमाता को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने सुदामा को दरिद्रता का श्राप दे दिया।

कथाओं के अनुसार भारी बारिश के कारण कृष्ण और सुदामा ने जो लकड़ियां काटी थी वे वही छोड़ कर चले गए थे। नारायण धाम वही स्थल है। यहां अब हरे भरे वृक्ष हैं। लाखों की संख्या में भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।

अमझेरा धाम :

अमझेरा धाम धार जिले में बसा कस्बा है। यही वह जगह है जहां से भगवान श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मणी का हरण किया था। मान्यता है कि मंदिर के पीछे बनी नाली नुमा निशाल द्वारकाधीर भगवान श्री कृष्ण के रथ के पहियों के निशान है। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में आकर दर्शन करने से हर कामना पूरी होती है। जन्माष्टमी पर यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है।

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अमझेरा धाम

धार के अमझेरा में एक अमका - झमका मंदिर है। मान्यता है कि, इसी मंदिर से श्री कृष्ण ने देवी रुक्मणी की आज्ञा से उनका हरण किया था। देवी रुक्मणी के भाई रुखमी द्वारा विरोध किए जाने पर दोनों के बीच युद्ध हुआ था। युद्ध में श्री कृष्ण ने रुखमी को परास्त किया था।

जानापाव धाम :

जानापाव को जानापाव कुटी भी कहा जाता है। यह 881 मीटर की ऊँचाई पर एक पर्वत है जो इंदौर-मुंबई राजमार्ग पर स्थित है। जानापाव धाम इंदौर से 45 किलोमीटर दूर है। यह पहाड़ घने जंगलों से घिरा हुआ है और मालवा क्षेत्र का दूसरा सबसे ऊंचा स्थान माना जाता है। जानापाव महर्षि परशुराम जी की जन्म स्थली है। माना जाता है कि, भगवान श्री कृष्ण जब परशुराम जी से मिलने यहां आए थे तो उन्हें परशुराम जी ने सुदर्शन चक्र दिया था।

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जानापाव धाम

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