झारखंड विधानसभा चुनाव-2024: मुकाबले में खड़ी हुई भाजपा, बदल रहा संथाल और कोल्हान का मन...

Update: 2024-11-09 14:03 GMT

मंगल पाण्डेय, रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव-2024 में भाजपा रोटी, बेटी और माटी को बचाने के मुददे पर फोकस कर मुकाबले में आ गई है। 2019 के चुनाव में पार्टी 81 सीटों वाली विधानसभा में मात्र 25 सीटों के साथ हाशिए पर चली गई थी। लेकिन इस बार हालात बदलते दिख रहे हैं। चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान, सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की रणनीति ने भाजपा को मुकाबले में खड़ा कर दिया है।

इस तिकड़ी ने सबसे पहले झारखंड चुनाव में एनडीए का दायरा बढ़ाया। जेडीयू, लोजपा (आर) और आजसू को साथ लिया। सीट बंटवारे के मुश्किल काम को अंजाम तक पहुंचाया। फिर चुनाव में उठाये जाने वाले मुददे का चयन किया। इसी का परिणाम है कि चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ, आदिवासी स्वाभिमान, बेरोजगारी, पेपर लीक, महिला उत्पीड़न जैसे मुद्दे पर झारखंड चुनाव में मुददा बन गया है।

मंईया योजना की काट गोगो दीदी योजना

सत्ता में वापसी के लिए हेमंत सोरेन ने कई लोकलुभावन घोषणाएं किये। सबसे पहले मईयां सम्मान योजना में 18 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं के लिए हर महीने एक हजार रुपए देने की शुरुआत की। इसके बाद भाजपा ने गोगो दीदी योजना के तहत महिलाओं को हर माह 2100 रुपए देने के वादा किया तो हेमंत ने सम्मान राशि को बढ़ाकर दिसंबर से 2500 रुपए करने की घोषणा कर दी।

इतना ही नहीं, अबुआ आवास योजना के तहत एक लाख आवास बनाने का ऐलान भी कर दिया। 3500 करोड़ से अधिक रुपए का बिजली बिल राज्य सरकार ने माफ कर दिया और 200 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा की। हेमंत सोरेन की इन घोषणाओं का व्यापक असर हुआ।

51 लाख महिलाएं मईयां सम्मान योजना के लिए पंजीकृत हुई हैं तो 39.44 लाख उपभोक्ताओं को बिजली बिल माफी का लाभ मिला है।

भाजपा ने हेमंत की इन घोषणाओं की काट के तौर पर अपने घोषणापत्र में 150 संकल्प किए हैं। इनमें मईयां सम्मान योजना की तर्ज पर 2100 रुपए मासिक देने, 500 रुपए में रसोई गैस सिलिंडर, साल में दो मौकों पर दो मुफ्त सिलिंडर, 300 यूनिट तक फ्री बिजली, स्नातक-स्नातकोत्तर बेरोजगारों को 2000 भत्ता देने और रोजगार के संकल्प में एक लाख लोगों को नौकरी देने का वादा भी किया है।

बदल रहा है संथाल और कोल्हान

बांग्लादेशी घुसपैठ और आदिवासी स्वाभिमान जैसे मुददे को हथियार बनाकर भाजपा ने संथाल और कोल्हान पर फोकस किया। 2019 में इन दोनों क्षेत्रों में भाजपा प्रदर्शन सबसे कमजोर था।

आदिवासी बाहुल संथाल परगना शिबू सोरेन के समय से जेएमएम का गढ़ रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसी इलाके के बरहेट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।

झारखंड की सत्ता निर्धारित करने में संथाल परगना का अहम भूमिका रहती है। हेमंत सोरेन खुद भी संथाल जनजाति से आते हैं। झामुमो के इस गढ़ को बीजेपी भेदने की कोशिश में है।

शिबू सोरेन की बड़ी पुत्र वधू सीता सोरेन और हेमंत सोरेन के चुनाव प्रस्तावक तथा अमर शहीद सिद्धो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू भाजपा के पाले में आ चुके हैं। इनके सहारे बीजेपी संथाल क्षेत्र में जेएमएम को काउंटर करने की कोशिश में है।

घटती आदिवासी जनसंख्या ने बदला चुनावी मिजाज

झारखंड में आदिवासी, हिंदू की आबादी का घट रही है और उसी अनुपात में मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है। बंगलादेशी मुसलमान आदिवासी लड़कियों से शादी कर उनकी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं। आदिवसियों की घटती जनसंख्या का मुद्दा संथाल परगना में भाजपा के लिए वरदान साबित हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड की एक रैली में कहा था कि घुसपैठिए आपकी बेटियों को छीन रहे हैं, जमीन हड़प रहे हैं और आपकी रोटी खा रहे हैं।

कोल्हान में कमबैक की कवायद

14 सीटों वाले कोल्हान प्रमंडल में 2019 के चुनाव में भाजपा का खाता भी नहीं खुला था। पार्टी इस बार यहां सतर्क है। इसीलिये ‘कोल्हान टाईगर’ के नाम से मशहूर पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को भाजपा में शामिल कराया है। इससे कोल्हान में भाजपा मजबूत हुई है।

कम मार्जिन से हारी सीटों पर फोकस

2019 में कम अंतर से हारी सीटों पर भाजपा का मुख्‍य फोकस है। खासकर आदिवासी सीटों पर। यहां रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी शिवराज, हिमंता बिस्वा और बाबूलाल मरांडी को सौंपी गई है। 2019 में आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 में से 26 सीटों पर बीजेपी चुनाव हार गई थी। यहां पर इस बार विशेष ध्यान है।

बागी कार्यकर्ता बन रहे चुनौती

भाजपा के लिए उसके बागी कार्यकर्ता सबसे बड़े चुनौती बन रहे हैं। इस बार कई बड़े नेताओं के पत्‍नी, बहू, बेटा, भाई और दूसरे दल से आये नेताओं को बड़ी संख्या में टिकट दिया गया। इससे बागी नेताओं की फौज मैदान में उतर गई। इतनी बड़ी संख्या में बगवात भाजपा के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। हालांकि शिवराज और हिमंता ने नाराज नाराजी पर काबू पाने की कोशिशें की हैं। लेकिन 13 और 20 नवंबर को होने वाले मतदान से पूर्व बागियों की समस्‍या पर काबू पाना भाजपा के लिए बडी चुनौती है। 

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