शारदा का सैलाब : 'अटल हल' नहीं अपनाया तो शिवानियों का बेमौत मरना ही नियति

देश भर के हालात देखते हुए राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना पर तेजी से काम की दरकार। मोदी सरकार 2.0 ने बजट से डाली थी योजना की झोली में महज लाख रुपए की खैरात।

Update: 2024-07-12 15:05 GMT

बस्ती के घरों को क्या देखे बुनियाद की हुरमत क्या जाने,

सैलाब का शिकवा कौन करे सैलाब तो अंधा पानी है...

रेल की पटरी के समानांतर दो सफर और चल रहे हैं... एक तो उस बिटिया का अंतिम सफर जो भाइयों के साथ चाचा के यहां रह कर पढ़ाई कर रही थी... और दूसरा सफर कांधे अदल-बदल छोटी बहन की निस्पृह काया ढो कर अन्तिम संस्कार को गांव ले जा रहे भाइयों के भीतर चल रहा है। भाइयों के भीतर बहन को खोने का दर्द है तो, फ्लड सीजन में शारदा किनारे का हाल कोई नया नहीं है, प्रशासनिक दावों और बदइंतजामी का भी।

खीरी में रहने के दौरान चौमासा में शारदा और घाघरा का जुल्म ओ सितम देखा हुआ है... और देखी हुई तो फिर प्रशासनिक बदइंतजामी भी है। खीरी के दुधवा रेंज के किशनपुर के पास से आईं तस्वीरें द्रवित करती हैं। सैलाब से रास्ते कट गए हैं। मैलानी थाना क्षेत्र के एलनगंज महाराज नगर की शिवानी (15) टाइफाइड की बीमारी से जूझ रही थी। समय से इलाज नहीं हो सका और शिवानी के साथ उसके सतरंगी सपने भी बेमौत मारे गए। एलनगंज निवासी राजेश अपने भाई एवं बहन शिवानी (16) के साथ किशनपुर में चाचा के यहां रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। बताते हैं, बहन का स्थानीय इलाज कराया, पर रास्ते कटे होने से बेहतर इलाज के लिए बाहर नहीं ले जा पाए। दोनों भाई शिवानी को कंधे अदल-बदल कर कोई पांच किमी की दूरी तय कर गांव पहुंचे। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।

खीरी में रहने के दौरान चौमासा में शारदा और घाघरा का जुल्म ओ सितम देखा हुआ है... और देखी हुई तो फिर प्रशासनिक बदइंतजामी भी है। खीरी के दुधवा रेंज के किशनपुर के पास से आईं तस्वीरें द्रवित करती हैं। सैलाब से रास्ते कट गए हैं। मैलानी थाना क्षेत्र के एलनगंज महाराज नगर के देवेंद्र की बिटिया शिवानी (15) टाइफाइड की बीमारी से जूझ रही थी। समय से इलाज नहीं हो सका और शिवानी के साथ उसके सतरंगी सपने भी बेमौत मारे गए। भाई बता रहा है कि किशनपुर में चाचा के यहां रह कर सभी पढ़ाई कर रहे हैं। बताते हैं, बहन का स्थानीय इलाज कराया, पर रास्ते कटे होने से बेहतर इलाज के लिए बाहर नहीं ले जा पाए। चूंकि अतरिया क्रॉसिंग की पुलिया ध्वस्त हो चुकी है तो दोनों भाई पहले सैलाब में नाव से और आगे गांव तक पांच किमी शिवानी को कंधे अदल बदल कर दूरी तय की। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। एसडीएम कार्तिकेय सिंह कहते हैं मदद मांगी जाती तो जरूर होती। सोशल मीडिया से प्रकरण का पता चला। कार्तिकेय ने माना, बाढ़ के कारण तटवर्ती गांवों में स्थितियां असहज करने वाली हैं, फिर भी प्रशासन तत्परता से काम कर रहा है।

हालांकि, एनडीआरएफ की टीम मुस्तैदी से काम करती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में उनकी पेट्रोलिंग में कोई कमी नहीं रहती। दुनिया के श्रेष्ठ रेस्क्यू बलों में एक एनडीआरएफ यहां भी शिद्दत से ड्यूटी करती है... लेकिन वो उपलब्ध राहत इंतजाम प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचा ही सकते हैं, टाइफाइड जैसी सामान्य हो चुकी बीमारी का इलाज पहुंचाना तो सेहत महकमे का काम है। सैलाब का दर्द और दंश तो 'हरि अनंत हरि कथा अनंता' की भांति है, जिसे तटवर्ती लोगों को तब तक झेलना होगा जब तक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी 'नदी जोड़ो परियोजना’ पर अमल नहीं होता।

हैरान मत होइएगा... अटल की योजना को मिला लाख रुपया बजट

मोदी सरकार-2.0 का पहला बजट भले ही 27.86 लाख करोड़ रुपये का था, पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी 'नदी जोड़ो परियोजना' के लिए इसमें कुल एक लाख रुपये रखे गए थे। अटल सरकार ने नदियों को आपस में जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना को जोर-शोर से आगे बढ़ाया था। अटल सरकार के बाद आई मनमोहन सरकार ने भले ही इस पर कोई ध्‍यान न दिया हो तो पर मोदी सरकार से सेवाएं की उम्मीद तो बनती ही है।

भारत की भौगोलिक विविधताओं के अध्ययन के बाद यहां ‘नदी जोड़ो' का विचार 1858 में ब्रिटिश सिंचाई इंजीनियर सर आर्थर थॉमस कॉटन ने दिया था। नदियों को जोड़ने के इस 161 साल पुराने विचार को कार्यरूप में बदलने का साहस अटलजी ने दिखाया था। परियोजना में 37 नदियों को जोड़ना है। इसके लिए 15,000 किमी नई नहरें खोदनी होंगी, पुरानी नहरों का पुनरुद्धार करना होगा। जिसमें, 174 घन किमी पानी स्टोर किया जा सकेगा। राष्ट्रीय नदी जोड़ो प्रोजेक्ट में कुल 30 लिंक बनाने की योजना है, जिनसे 37 नदियां जुड़ी होंगी। इसके लिए 3 हजार स्टोरेज डेम का नेटवर्क बनाने की योजना है। यह दो भागों में होगा। एक हिस्सा हिमालयी नदियों के विकास का होगा। इसमें 14 लिंक हैं। इसी के तहत गंगा और ब्रह्मपुत्र पर जलाशय बनाने की योजना है।

BY  - ब्रजेश 'कबीर'। लखीमपुर खीरी।

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