Lohri 2025: दुल्ला भाटी के गीत के बिना लोहड़ी अधूरी, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा
लोहड़ी के मौके पर आग जलाने के अलावा आग में तिल, मूंगफली, गेंहू और गुड़ का प्रसाद डाला जाता है. साथ ही पूजा की जाती है। इसके अलावा दुल्ला भाटी के गीत गाए जाते हैं।;
Lohri 2025: आने वाले दिन 13 जनवरी को पंजाबी समुदाय के सबसे बड़े त्यौहार लोहड़ी मनाया जाएगा। इस खास मौके पर हर किसी ने तैयारी तो करके रख ली वही कीर्तन के लिए गुरुद्वारे में अलग व्यवस्था लोहड़ी के लिए किए गए हैं। लोहड़ी के मौके पर आग जलाने के अलावा आग में तिल, मूंगफली, गेंहू और गुड़ का प्रसाद डाला जाता है. साथ ही पूजा की जाती है। इसके अलावा दुल्ला भाटी के गीत गाए जाते हैं।
क्या है दुल्ला भाटी लोकगीत के पीछे की पौराणिक कथा
आपको बताते चलें कि, लोहड़ी का त्योहार पंजाब में किसानों के लिए खास पर्व है जहां पर दुल्ला भाटी के गाने गए जाते है। उससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार ,मुगलों के समय एक दुल्ला भट्टी नाम का व्यक्ति था. दुल्ला भट्टी बहुत ईमानदार और सच्चा था. उसने मुगलों के समय लड़कियों की भ्रष्ट कारोबारियों से की थी. इतना ही नहीं उसने लड़कियों की शादी भी कराई थी. इसलिए उसे नायक मान लिया गया. लोहड़ी पर ये गीत गाकर उसे ही याद किया जाता है।
क्या है दुल्ला भाटी के गाने के बोल
यहां पर लोहड़ी के मौके पर अलग तरीके से गीत गाए जाते हैं इसके बोल इस प्रकार हैं...
सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन विचारा हो,
दुल्ला भट्ठी वाला हो, दुल्ले दी धी व्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,
कुड़ी दा लाल पटाका हो, कुड़ी दा सालू पाटा हो,
सालू कौन समेटे हो, चाचे चूरी कुट्टी हो,
जमीदारां लुट्टी हो, जमीदारां सदाए हो,
गिन-गिन पोले लाए हो, इक पोला घट गया,
जमींदार वोहटी ले के नस गया, इक पोला होर आया,
जमींदार वोहटी ले के दौड़ आया,
सिपाही फेर के लै गया, सिपाही नूं मारी इट्ट, भावें रो ते भावें पिट्ट,
साहनूं दे लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी
साडे पैरां हेठ रोड़ सानूं छेती छेती तोर
साडे पैरां हेठ दही, असीं मिलना वी नई
साडे पैरां हेठ परात सानूं उत्तों पै गई रात
दे माई लोहड़ी जीवे तेरी जोड़ी.