दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में जो हो रहा है, उसे टाला नहीं जा सकता था क्योंकि कोरोना वायरस की जानकारी छिपाने को लेकर दुनियाभर से फजीहत झेल रहे चीन ने ध्यान भटकाने का यही रास्ता चुना है। चीन की रणनीति है कि भारत के साथ विवाद उस हद तक बढ़े कि पूरी दुनिया की चिंता कोरोना से हटकर दो बड़े देशों के बीच शांति बहाली के प्रयासों की तरफ शिफ्ट हो जाए। भारत ने चीन की इसी चाल को समझकर बिल्कुल संयम बरतने का फैसला किया और विवाद को बिल्कुल स्थानीय स्तर तक सीमित रखने की ठान ली।
यही वजह है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के एक-दूसरे की आखों में आखें डाले डटे रहने का एक महीना होने जा रहा है, लेकिन मोदी सरकार ने चीन से बातचीत के लिए न विदेश मंत्री एस. जयशंकर और न तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को मैदान में उतारा है। चीन की बढ़ती बौखलाहट का एक वजह यह भी है कि भारत उसकी चाल में नहीं फंस रहा। यह ट्राइड ऐंड टेस्टेड स्ट्रैटिजी है कि दुश्मन को दर्द देना है तो उसकी अपेक्षाओं पर पानी फेरो। भारत चीन के साथ यही कर रहा है।
चीन को आर्टिकल 370 हटाने का खुन्नस निकालना होता तो वह अगस्त 2019 में ही अपना रंग दिखा सकता था। इसी तरह, एलएसी पर भारत की सड़कें सालों से बन रही हैं, वह बहुत पहले ही अड़ंगा डाल सकता था। जहां तक बात भारतीय कंपनियों में चीनी निवेश पर निगरानी की है तो चीन ने भारत से पोर्क के आयात पर प्रतिबंध लगाकर बदला ले लिया है।
तो आखिर अभी चीन की आक्रामकता का कारण क्या है? इंद्राणी बागची बर्टिल लिंटर की एक पुस्तक के हवाले से कहती हैं कि चीन ने 1962 में भारत के खिलाफ इसलिए युद्ध छेड़ा था क्योंकि उसका ग्रेट लीप प्रोग्राम (देश को तेजी से तरक्की दिलाने का विजन) बुरी तरह नाकामयाब रहा और चीनी जनता में निराशा घर करने लगी। तब चीन ने अपनी जनता का ध्यान भटकाकर उनमें जोश भरने के लिए भारत से युद्ध का रास्ता चुना।
2020 में चीन को कोविड-19 को लेकर विश्वसनीयता के अभूतपूर्व संकट का सामना करना पड़ रहा है। चीन से फैली इस महामारी का वैश्विक दूरगामी असर हुआ है। ऐसे में दुनिया की नजर में सुपरपावर की छवि गढ़ने के चीनी सपने को बड़ा झटका लगा है। चीन ने ध्यान भटकाने की अपनी पुरानी रणनीति पर दोबारा यकीन किया है, लेकिन उसका यह विश्वास कितना सही साबित होगा और भारत उसके भरोसे को किस हद तक चकनाचूर कर पाएगा, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।
बहरहाल, चीन ने तो भारत के सामने लद्दाख की समस्या इसलिए खड़ी क्योंकि उसे लग रहा है कि अन्य देशों की तरह भारत अभी महामारी से जूझ रहा है, अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है और राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्च पर भी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। ऐसे में नित नई महत्वाकांक्षा संजो रहे भारत को उसकी कमियों का आईना दिखाओ और मनोबल तोड़ने की कोशिश करो।
चीन को पता है कि वह दुनिया से टक्कर नहीं ले सकता है। वैश्विक संस्थाओं और संधियों से हटना उसके हाथ से ग्लोबल सप्लाइ चेन के फिसलने का खतरा और बढ़ाएगा। चीन की इस रणनीति को समझने के बाद आने वाले कुछ महीनों में एलएसी पर तनाव और बढ़ने की ही आशंका है क्योंकि भारत ने साफ कर दिया है कि इलाके में आधारभूत ढांचे का निर्माण कार्य और तेज किया जाएगा।
बागची कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ एक और अनौपचारिक सम्मेलन करना चाहिए जिसके परिणाम जरा हटके हो सकते हैं। भारत ने अभी ताजा विवाद को सुलझाने के लिए चीनी की भाषा मंदारिन बोलने वाले जनरल जोशी और लेह में उनके साथियों को बातचीत का जिम्मा दे रखा है।
1960 में चीन के साथ सीमा विवाद पर भारत की तरफ से बातचीत करने वाले एस गोपाल ने कहा था कि चीन अपने दावों में कहीं टिकता नहीं है, वह बार-बार बातें बदलता रहता है। चीन अब भी वही कर रहा है। वह सीमा रेखा को लचीला बनाए रखना चाहता है ताकि कभी कोई ठोस समाधान नहीं सके और विवाद का रास्ता खुला रहे। ताजा विवाद में भारत के पास चीन की चाल को भांपते रहने और उसे उसकी चाल में मात देते रहने का ही विकल्प है।