मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पीएम को लिखी चिठ्ठी, इन...कारणों से कर रहे समान नागरिक संहिता का विरोध
संविधान का अनुच्छेद 44 देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कहता है
नईदिल्ली/लखनऊ। देश भर में समान नागरिक संहिता को लेकर चर्चा जारी है। भाजपा समेत हिन्दू संगठन जहां इसका पक्ष कर रहे है। वहीँ गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकारें और मुस्लिम संगठन इस पर आशंका व्यक्त कर रहे है। इसी कड़ी में आज मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। बोर्ड का कहना है की इसे लागू करना संविधान सम्मत नहीं है। सरकार का काम धार्मिक मसलों को आम राय से हल करने का होता है ना कि उन मसलों में पेचीदगियां पैदा करना। बोर्ड ने इसे लागू करने से पहले सभी धर्मगुरुओं से ड्राफ्ट पर चर्चा करने की अपील की है।
ये पत्र मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव मोईन अहमद खान ने लिखा है। उन्होंने पत्र में लिखा है की संविधान में सभी धर्म के लोगों को अपने रीति रिवाजों के अनुसार शादी करने की अनुमति है। मुस्लिम समुदाय को आजादी के पहले से ये अधिकार प्राप्त है।जोकि मुस्लिम एप्लीकेशन एक्ट 1937 के तहत मुस्लिम समुदाय को संरक्षण प्राप्त है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पत्र के माध्यम से समान नागरिक संहिता को लेकर कई सवाल भी किए है। उन्होंने पूछा है की इसके लागू होने बाद मुस्लिम समुदाय के निकाह व तलाक सहित महिलाओं के, सम्पत्ति में अधिकार जैसे विषय क्या समाप्त हो जाएंगे अथवा वह किस विधि के अनुरूप सम्पन्न होंगे।र्ड ने पत्र की एक कॉपी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी भेजी है।
क्यों जरूरी है समान नागरिक संहिता -
मुस्लिम समुदाय द्वारा लगातार किए जा रहे विरोध के कारणों को समझने से पहले ये जानना बेहद जरूरी है की देश को समान नागरिक संहिता की आवश्यकता क्यों है। बता दें वर्तमान में देश में सभी समुदायों के अपने अलग रीति-रिवाज और नियम होने की वजह से कोर्ट में कानूनी प्रक्रिया में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जैसे की हिन्दुओं के लिए अलग हिन्दू विवाह अधिनियम और मुस्लिम समुदाय के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ है। देश में समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद अलग-अलग सिविल कानून समाप्त हो जाएंगे और एक ही कानून रहेगा। संविधान का अनुच्छेद 44 भी देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कहता है।
समान नागरिक संहिता -
अब जानना जरुरी है की समान नागरिक संहिता ( यूनिफॉर्म सिविल कोड) आखिर क्या है और कैसे ये सभी को सक कानून के तहत लाएगा। यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के सभी नागरिकों पर एक समान तरीके से लागू होगा। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या पंथ का हो, सभी पर एक ही कानून और नियम लागू होगा। दरअसल, अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को एकसमान तरीके से सभी समुदायों पर लागू किया था लेकिन धर्म से जुड़े मामलों पर धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया था।
हिन्दुओं का पर्सनल लॉ खत्म -
स्वतंत्रता के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुस्लिमों के समान हिन्दुओं के पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया था, वहीं मुसलमानों के कानून को संविधान से संरक्षण दिलाया था। उन्होंने हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को समाप्त कर दू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू किए थे। जोकि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध पर समान रूप से लागू होते है।
समान नागरिक संहिता का विरोध क्यों -
अब प्रश्न ये उठता है की समान नागरिक संहिता लागू होने से मुसलमानो को आखिर क्या समस्या है। बता दें की मुस्लिम पर्सनल लॉ को शरिया कानून कहा जाता है। जिसका आधार इस्लामिक पुस्तकें कुरान और हदीस है। इस कानून के तहत मुसलमान चार शादियां कर सकते है, जिन्हें मुस्लिम पर्सनल लॉ वैध मानता है। वहीँ सामान्य भारतीय कानून किसी भी व्यक्ति को एक ही विवाह की अनुमति देता है। विशष परिस्थितियों में दूसरे विवाह की अनुमति है। ऐसे में यदि समान नागरिक संहिता लागू होती है तो मुसलमान चार शादियों से वंचित हो जाएंगे।
महिलाओं की समाजिक स्थिति सुदृण
इससे मुस्लिम समाज की महिलाओं की समाजिक स्थिति सुदृण होगी। वर्तमान में निकाह के समय मुसलमानों में मेहर की रकम तय की जाती है। जब कोई मुस्लिम पुरुष दूसरी शादी करने व अन्य कारण से पत्नी को तलाक देता है तो उसे मेहर की राशि एकमुश्त गुजारा भत्ता के रूप में दे देता है। जोकि बेहद कम होती है। ये राशि एक या दो महीने के खर्च के बराबर होती है। जिसे आसानी से महिला को देकर मुस्लिम पुरुष दूसरे विवाह के लिए तैयार हो जाता है। इस कानून ने मुस्लिम महिलाओं की आर्थिक और समाजिक स्थिति को बेहद कमजोर बना रखा है। समान नागरिक कानून लागू होने के बाद मेहर या गुजारा भत्ते की उचित राशि कोर्ट द्वारा तय की जाएगी।