मैनेजमेंट और सोशल मोबिलिटी के मास्टर हैं मुरारी: 5,152वें जन्मोत्सव पर प्रभुश्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिभाषित कर रहे हैं डॉ. अतुल मोहन सिंह

Update: 2024-08-30 05:59 GMT

16 कलाओं से पूर्ण कृष्ण विविधता का वैशिष्टय हैं। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में वह लाइफ मैंनेजमेंट, सोशल मोबिलिटी और माइक्रो ऑब्जरवर के साथ माननीय संवेदना के मास्टर हैं। कृष्ण सगुण, निर्गुण, साकार, निराकार, निर्विकार हैं। उन्हें आप जीवन की जिस स्थिति-परिस्थिति और प्रॉब्लम में पुकारेंगे, वह आपके लिए आपसे बेस्ट सल्यूशन लेकर आएंगे। आइए जानते हैं, श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के कुछ ऐसे पहुलुओं को जो नास्तिक आस्तिक को भी सहजता-सरलता में स्वीकार हो जाते हैं।

मित्रों के लिए सच्चे मित्र : श्रीकृष्ण ऐसे मित्र हैं, जो मित्र के सही होने पर तो साथ रहे ही, मित्र अगर गलत हुआ तो भी उसका साथ देकर उसे सही साबित कर दिया। राजवंशी अर्जुन के मित्र बने तो महाभारत की जीत दिलवा दी। गरीब सुदामा के मित्र बने तो आंसुओं से उनके पांव धो दिए। अपने राज का बड़ा हिस्सा दे दिया।

बहनों के सर्वश्रेष्ठ भाई : श्रीकृष्ण अपनी बहनों के लिए सर्वश्रेष्ठ भाई थे। द्रौपदी उनकी सगी नहीं, मानी हुई बहन थीं। द्रौपदी ने कभी उनकी जख्मी अंगुली पर अपनी साड़ी को चीरकर पट्टी बांधी थी। श्रीकृष्ण ने द्यूत सभा में उनका चीरहरण रोका था। यही नहीं, बहन का अपमान करने वाले, अपमान को शह देने वालों का सर्वनाश करवा दिया।

प्रेम करना और निभाना : श्रीकृष्ण प्रेम के प्रतीक हैं। उनके प्रेम में किसी तरह का भेद नहीं था। जिसने कृष्ण को प्रेम किया, कृष्ण ने उसे उससे ज्यादा प्रेम किया। मां से प्रेम, बहन और भाई से प्रेम, मित्र से प्रेम। पत्नी रुक्मिणी और राधा समेत तमाम गोपियों से भी निर्मल प्रेम। रूप और हानि-लाभ से परे था उनका प्रेम। कृष्ण ने राधा से प्रेम किया तो कुबड़ी से भी।

रिश्ते की कद्र करना और निभाना : श्रीकृष्ण ने हर रिश्ते को पूरी शिद्दत से निभाया। उनके लिए न तो देवकी और यशोदा में फर्क था और न ही द्रौपदी और सुभद्रा में। खून से ज्यादा उन्होंने प्रेम के रिश्तों को निभाया। सुभद्रा से पहले द्रौपदी और देवकी से पहले यशोदा का मान रखा।

क्षमाशीलता और धीरज : श्रीकृष्ण सर्वशक्तिमान थे, लेकिन धीरज और क्षमा उनके मूलभूत गुण थे। शिशुपाल की 100 गलतियां उन्होंने माफ की थीं। यानी 100 बार उन्होंने शिशुपाल को सुधरने का मौका दिया था।

दंडाधिकारी होना : कृष्ण आपको अवश्यतानुसार दंडाधिकारी होना भी सिखाते हैं। जब आपकी उदारता को कोई आपकी कमजोरी समझने लगे, तो उसका प्रतिकार भी जरूरी है। शिशुपाल ने 100 गलतियों की सीमा पार की, 101वीं गलती पर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

मोह से मुक्ति का मार्ग : श्रीकृष्ण ने प्रेम किया, प्रेम ही किया, मोह ने उन्हें कभी नहीं बांधा। उनका प्रेम मोह नहीं, बल्कि त्यागोन्मुखी था। प्रेम आपको आनंद देता है, मोह आपको बंधनों में बांधकर आपके रास्तों को जटिल करता है।

हर पल जी भर जियो : श्रीकृष्ण का जीवन अद्भुत है। बचपन में खूब मस्ती, गोपी-गोपियों के साथ बदमाशी, बचपना उन्होंने बच्चों की तरह जिया। किशोरावस्था से उन्होंने अपने कर्तव्य संभालने शुरू किए। जिस वय में रहे, उसका आनंद लिया। श्रीकृष्ण का जीवन दर्शन हर पल जी लेने का था।

जो मिले, स्वीकार करो : श्रीकृष्ण के एक हाथ में बांसुरी है तो दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र। यानी जीवन जिस चीज की मांग करे, उसके अनुरूप आचरण करें। यही वजह है कि श्रीकृष्ण के जीवन में नृत्य है, गीत है, प्रीति है, हंसी-मजाक है, रासलीला है तो जरूरत पड़ने पर उन्होंने सुदर्शनचक्र भी उठाया।

दूरदर्शिता : भगवान श्रीकृष्ण में अपार धीरज था। वे कोई भी फैसला लेते थे तो उसका भूत वर्तमान और भविष्य तीनों देखते थे। जल्दीबाजी में कोई फैसला नहीं लेते थे। द्रौपदी के चीरहरण में उन्होंने कौरवों का समूल नाश देखा था।

अगली कड़ी में फिर मिलेंगे, प्रेम से बोलो जयश्रीकृष्णा...

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