UCC : समान नागरिक संहिता को लेकर संविधान में है प्रावधान,जानिए फिर क्यों हो रहा विरोध, लागू होने पर क्या पड़ेगा असर
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बाद साफ हो गया है की भाजपा अयोध्या राम मंदिर, कश्मीर में धारा 370 के बाद अब समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर आगे बढ़ेगी
नईदिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को भोपाल दौरे पर आए। यहां मेरा मेरा बूथ-सबसे मजबूत कार्यक्रम के तहत भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने समान नागरिक संहिता, विपक्षी एकता, महंगाई, भ्रष्टाचार, तीन तलाक जैसे मुद्दों पर जमकर निशाना साधा। पीएम के इस भाषण से ने आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव का एजेंडा लगभग तय कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बाद साफ हो गया है की भाजपा अयोध्या राम मंदिर, कश्मीर में धारा 370 के बाद अब समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर आगे बढ़ेगी। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार मानसून सत्र में इस बिल को संसद में पेश कर सकती है। गृह मंत्री अमित शाह और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को अहम बैठक की। भाजपा को इस मुद्दे परजहां एक बड़े वर्ग का भारी समर्थन मिल रहा है, वहीँ कुछ हिस्सों में विरोध के सुर भी सुनाई देने लगे है। सबसे ज़्यादा विरोध मुस्लिम समाज के द्वारा किया जा रहा है।ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तो देर रात इमर्जेंसी मीटिंग में रणनीति पर मंथन किया। उनका मानना है कि इस कानून के आने के बाद मुस्लिम समाज की धार्मिक मान्यताएं खत्म हो जाएगी।
अब समझते है की आखिर समान नागरिक संहिता क्या है, इस संबंध में हमारे संविधान में क्या प्रावधान है और क्यों इसका विरोध हो रहा है -
क्या है समान नागरिक संहिता -
यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता का अर्थ है भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून भले वह किसी भी धर्म, जाति या समुदाय का हो। यदि ये कानून लागू होता है तो वर्तमान में लागू सभी धर्मों के पर्सनल कानून जैसे हिन्दू विवाह अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लौ आदि रद्द हो जाएंगे। इसके स्थान पर एक ही कानून रहेगा यूनिफॉर्म सिविल कोड, जिसके अनुसार ही विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे
संविधान में समान नागरिक संहिता -
बता दें कि समान नागरिक संहिता का प्रावधान किया गया है। ये संविधान के अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्व के तहत शामिल किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार, सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है, इसमें विवाह, तलाक, संपत्ति का बंटवारा और बच्चों की कस्टडी को लेकर कानून बनानेका जिक्र है।
बता दें की संविधान की ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने भी संविधान सभा की बैठक में समान नागरिक संहिता के पक्ष में जोरदार दलीलें दी थीं। अंबेडकर ने कहा था की समान नागरिक संहिता कोई नया तरीका नहीं है। 1937 में शरीयत एक्ट लागू होने से पहले तक देश के कई हिस्सों में मुस्लिम समुदाय पर हिन्दू कानून लागू होता था। 1937 के शरियत ऐक्ट में कहा गया था कि ये सिर्फ उन मुसलमानों पर लागू होगा जो शरिया कानून को चाहते थे। इसके लिए उन्हें एक हलफनामा देना होता था कि वे इसे मानने के लिए तैयार हैं। उसके हलफनामा देने के बाद ये कानून उसके और उसके उत्तराधिकारियों पर लागू हो जाता था।
सुप्रीम कोर्ट भी दे चुका है लागू करने की सलाह -
उस समय समान नागरिक संहिता पर सहमति ना बन पाने के कारण इसे नीति निदशक तत्व में शामिल कर दिया गया था। उसके बाद से समय पर देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग उठती रही है। सुप्रीम कोर्ट भी कई मौकों पर सरकार को इसे लागू करने की सलाह दे चुका है। साल 1985 में शाहबानो के मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'संसद को एक समान नागरिक संहिता की रूपरेखा बनानी चाहिए, क्योंकि ये एक ऐसा साधन है जिससे कानून के समक्ष समान सद्भाव और समानता की सुविधा देता है।
समान नागरिक संहिता के लागू होने में परेशानी -
- आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून के लागू होने में सबसे बड़ी परेशानी धार्मिक संगठनों का विरोध और सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति न बन पाना है।
- भारत एक धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र है, यहां संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार, भी धर्मों को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार है। विधि विषेशज्ञों का मानना है की समान नागरिक संहिता लागू होने से इस प्रावधान का उल्लंघन होगा।
- समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले कहते हैं कि इससे सभी धर्मों पर हिंदू कानूनों को लागू कर दिया जाएगा, उनकी अपनी धार्मिक मान्यताएं खत्म हो जाएंगी।
समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद क्या पड़ेगा असर -
- समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद हिन्दू ( बौद्ध, जैन, सिख, पारसी ) समेत मुस्लिम और ईसाई समुदाय के पर्सनल लॉ खत्म हो जाएंगे।
- विशेषज्ञों का मानना है की देश भर में लोगों के रहन-सहन में एकरूपता आएगी।
- देशभर में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे।