‘राष्ट्र के मन’ में स्थान बना गयी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’
मधुकर चतुर्वेदी;
- आम नागरिकों से लगातार मार्गदर्शी संवाद स्थापित करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी
- 2014 से शुरू हुई ‘मन की बात’ की बात का आज शतक उत्सव
- भारत के साथ विश्व भर में आज सुना जाएगा मन की बात का 100 वां एपिसोड
नई दिल्ली। तीन अक्टूबर, 2014 की तिथि भारतीय राजनीति के साथ समाज जीवन में हमेशा स्वर्णिम तिथि मानी जाएगी क्योंकि, स्वतंत्र भारत में इस तिथि पर पहली बार किसी प्रधानमंत्री के मुख से भारतीय समाज में ‘स्वर्गादपि गरीयसी’ शब्द गुंजित हुआ था। नरेंद्र मोदी देश के ऐसे अकेले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने आत्मविस्मृति में पड़ी अपनी देश की गौरव-गरिमा को ‘मन की बात’ से मुख्यधारा में लाने का महनीय कार्य किया। इतना ही नहीं देशभर में लुप्त हो चुका श्रवण माध्यम ‘रेडियो’ भी घरों की पुनः शोभा बन गया। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ का ‘शतक उत्सव’ है। आज रविवार को प्रातः 11 बजे प्रधानमंत्री के मासिक रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ का सौवां एपिसोड प्रसारित होगा। वैसे तो रेडियो एवं टैलीविजन के आगमन के बाद विभिन्न देशों में राजनेता इन माध्यमों से अपनी जनता से संवाद करते रहे हैं, लेकिन ‘मन की बात’ जैसे नियमित कार्यक्रम का कोई अन्य उदाहरण हमारे सामने नहीं है।
‘मन की बात’ से नागरिकों में जाग्रत हुआ गौरव का भाव
वर्षो पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ ने सर्वेक्षण किया था। जिसमें कहा गया था कि कुशल इंजीनियर, टेक्नीशियन और डाॅक्टर तैयार में भारत अन्य देशों से अग्रणी है लेकिन, कमी यही है कि इसकी आवश्यकता का अनुभव नहीं करते। 2014 के बाद का कालखंड एक ऐसा कालखंड है, जिसमें देश के नेतृत्व ने इसकी ना केवल आवश्यकता का अनुभव किया बल्कि, नागरिकों से सीधा संवाद स्थापित करते हुए इसकी समर्थता भी अर्जित की और अपनी संस्कृति के प्रति गौरव का भाव जाग्रत किया। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जिसे अपनी प्राचीन संस्कृति से मोह न हो, जो उसके प्रति गौरवान्वित न रहता हो। 2014 के पहले कालखंड को अगर हम देखें तो ध्यान में आएगा कि हमने अपने पुरखों की निंदा, भत्र्सना और उपेक्षा की। विदेशी सभ्यता की अंधी नकल और अपनी संस्कृति के प्रति कुछ भी जानने की उत्सुकता का प्रकटीकरण नहीं किया। 2014 के बाद से भारत ने अपने गौरवपूर्ण अतीत का अध्ययन किया और उसके प्रगतिशील तत्वों को अपनाया। परिणाम हम सबके सामने हैं, आज भारत आत्मसम्मान के साथ विश्व में सिर उठाकर खड़ा है। इस आत्मसम्मान की प्राप्ति में प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ का योगदान बहुत बड़ा है क्योंकि अब देश का हर नागरिक अपने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर किसी भी समस्या पर उनका ध्यान आकर्षित कर समस्या का निदान प्राप्त कर सकता है।
प्रत्येक एपियोड में मिला देश को सकारात्मक संदेश
3 अक्टूबर 2014 से लेकर 26 मार्च 2023 तक नरेंद्र मोदी ने जितनी बार भी ‘मन की बात’ की है, सभी मे कुछ-ना-कुछ सकारात्मक संदेश रहा है। मन की बात में प्रधानमंत्री स्वतंत्रता के गुमनाम नायकों के अलावा समाज निर्माण में योगदान देने वालों का जिक्र करते हैं, वह वास्तम में सराहनीय है। यह नरेंद्र मोदी ही हैं, जिन्होंने अपनी मन की बात में कानपुर की नूरजहां और अखिलेश वाजपेयी, जम्मू-कश्मीर के जावेद अहमद, सीहोर के दलीप सिंह मालवीय, अभिषेक पारिख, मुंबई के अर्णव मेहता, बीबीपुर गांव के सरपंच सुनील जगलान, अलवर के पवन आचार्य, भार्गवी कानडे, जालंधर के लखविंदर सिंह जैसे आम नागरिकों के अच्छे कामों को इतने गर्व के उल्लिखित किया।
‘स्वच्छता’ अभियान बनकर उभरा
प्रधानमंत्री के मन की बात की बात की यात्रा को देखें तो स्वच्छ भारत मिशन, जल संचय को प्राथमिकता, कश्मीर समस्या का समाधान, अंगदान पर जागरूकता, काले धन की समस्या, जनधन योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सड़क सुरक्षा पर जागरूकता, आतंकवाद से लड़ाई, योग को मिली वैश्विक पहचान, शौचालय निर्माण, खादी की सामाजिक स्वीकार्यता, खेलों के प्रति सकारात्मक सोच जैसे विषयों को उठाकर नागरिकों को उनके लक्ष्यों का बोध कराया है। प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम का ही परिणाम है कि देश में स्वच्छता एक अभियान बनकर उभरा। 2014 में स्वच्छ भारत अभियान के विषय पर पहली बार प्रधानमंत्री मोदी ने जनसंवाद किया। उन्होंने स्वच्छता का सन्देश देते हुए इसके महत्व को रेखांकित किया और अपने विचार साझा किये, जिन्हें लोगों ने सुना और अपना समर्थन भी दिया। मन की बात के जरिये स्वच्छता को जनांदोलन बनाने में प्रधानमंत्री बहुत हद तक सफल भी रहे, जिसका असर हमारे परिवेश में भी दिखाई देने लगा है। आज भारत ‘खुले में शौच से मुक्ति पाने में सफल हो रहा है, इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात में जागरूकता को लेकर दिए संदेश की सार्थकर्ता भी है।
प्रधानमंत्री से संवाद का माध्यम भी है ‘मन की बात’
प्रधानमंत्री के मन की बात की लोकप्रियता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि प्रधानमंत्री कार्यालय सहित आकाशवाणी को औसतन 25,000 लोगों को पत्र आते हैं, हर माह इतने ही लोग फोन पर अपने सुझावों को रिकार्ड करवाते हैं। वहीं मोदी ऐप पर औसनत 5 हजार लोग अपनी बात भेजते हैं। मन की बात 30 भाषाओं और बोलियों में अनुवादित एवं प्रसारित होता है। इसके अलावा करोड़ो लोग मन की बात को मोबाइल, रेडियो, टीवी व सोशल मीडिया पर सुन रहे हैं। खास बात यह कि हर माह 19 से 24 आयुवर्ग के 62 प्रतिशत युवा प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम को नियमित सुनते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की संवाद शैली की एक बड़ी विशेषता यह है कि वे एकतरफा बातचीत की जगह लोगों को भी चर्चा में शामिल करना पसंद करते हैं, हर एपिसोड में वे श्रोताओं द्वारा भेजे गए पत्रों के अंश पढ़ते हैं और अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। वे अक्सर विभिन्न विषयों पर सुझाव भी आमंत्रित करते हैं और अच्छी सलाहों का उल्लेख भी करते हैं। इस सामाजिक व सामुदायिक संवाद के सौ एपिसोड पूरा होना एक ऐतिहासिक अवसर है।
राष्ट्रभाव से भरी वाणी की संपदा है ‘मन की बात’
निःसंदेह नरेंद्र मोदी आधुनिक भारत के शिल्पकार है। मानस से सतत् संवाद उनका गुण है। उन्होंने भारत को नवऊर्जा से भर दिया है। नए उत्साह और आत्मविश्वास से भारत आज विश्व में कुंदन की तरह दमक रहा है। मन की बात केवल नरेंद्र मोदी के मन की बात ना होकर एक गंभीर चिंतन और राष्ट्रभाव से भरा वाणी संपदा की अभिव्यक्ति है। नरेंद्र मोदी के मन की बात आज मानस के मन का स्थान है। यह मन की बात का ही प्रभाव है कि आज देश के नीति निर्माताओं के साथ आम नागरिक भी लोक महत्व के विषयों का समझ रहा है बल्कि प्रधानमंत्री के साथ उनमें सहभागी भी हो रहा है।
भारतीयोें को भारत से परिचित कराती ‘मन की बात’
भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 76 फीसदी भारतीय मीडियाकर्मियों की राय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ ने भारत का भारत से परिचय कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं, 75ः लोगों का कहना है कि ‘मन की बात’ एक ऐसे मंच के रूप में सामने आया है, जहां लोगों का ऐसे व्यक्तियों से परिचय कराया जाता है, जो जनसामान्य के जीवन में सार्थक बदलाव लाने के लिए निःस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं। आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. डॉ. संजय द्विवेदी ने बताया कि संस्थान के आउटरीच विभाग द्वारा यह सर्वेक्षण 12 से 25 अप्रैल, 2023 के बीच किया गया। इस सर्वेक्षण में देशभर के 116 अकादमिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों एवं मीडिया समूहों के कुल 890 पत्रकारों, मीडिया शिक्षकों, मीडिया शोधार्थियों और जनसंचार के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। इनमें 326 महिलाएं एवं 564 पुरुष शामिल थे। सर्वे में शामिल होने वाले 66 प्रतिशत लोग 18 से 25 वर्ष की उम्र के थे। अध्ययन के तहत लोगों से जब यह पूछा गया कि अगर कभी वे कार्यक्रम को लाइव नहीं सुन पाते हैं, तो फिर कैसे सुनते हैं, तो 63 प्रतिशत लोगों का कहना था कि अन्य माध्यमों की तुलना में वे यूट्यूब पर ‘मन की बात’ सुनना ज्यादा पसंद करते हैं। वहीं, 76 प्रतिशत लोगों के अनुसार ‘मन की बात’ में विभिन्न मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों को सुनकर उन्हें ऐसा एहसास होता है कि वे भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदार हैं।
देश में सामने निखर की आयीं गुमनाम प्रतिभाएं
प्रो. द्विवेदी के अनुसार सर्वेक्षण में यह भी समझने की कोशिश की गई कि प्रधानमंत्री द्वारा श्मन की बातश् में चर्चा किए गए किस मुद्दे ने लोगों के जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। इसके जवाब में 40 प्रतिशत लोगों ने कहा की ‘शिक्षा’ सबसे प्रभावशाली विषय है, जिसने उन्हें सोचने पर मजबूर किया, वहीं 26ः लोगों के अनुसार ‘जमीनी’ स्तर पर काम करने वाले गुमनाम समाज-शिल्पियों से संबंधित जानकारी उनके लिए काफी रोचक रही।
परिवारों को साथ बैठकर चर्चा करने का माध्यम भी
अध्ययन में यह भी जानने का प्रयास किया गया कि ‘मन की बात’ में चर्चा किए गए विषयों के बारे में लोग किनसे ज्यादा बातचीत करते हैं। 32 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपने परिवार के सदस्यों से इस बारे में अपने विचार साझा करते हैं, वहीं 29 प्रतिशत लोगों के अनुसार वे अपने दोस्तों और साथियों के साथ इस विषय पर बातचीत करते हैं।
सोशल पर सुनने वालों की संख्या अधिक
सर्वेक्षण के दौरान एक रोचक तथ्य यह भी सामने आया कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम सुनने के लिए जहां 12 प्रतिशत लोग रेडियो और 15 प्रतिशत लोग टेलीविजन का प्रयोग करते हैं, वहीं लगभग 37 प्रतिशत लोग इंटरनेट बेस्ड प्लेटफॉर्म पर इस कार्यक्रम को सुनना पसंद करते हैं।