Swadesh Exclusive : श्रीराम जन्मभूमि की 25 वर्षो से परिक्रमा कर रही है ‘सरयू गाय’
108 परिक्रमा करके श्रीरामलला की ओर निहारती रहती है ‘सरयू गाय’, मानव ही नहीं, गौमाता ने भी की है श्रीरामलला के आगमन की प्रतिक्षा
अयोध्याजी में रंगमहल मंदिर की गौशाला में श्रीराम भक्ति में लीन ‘सरयू गाय’
अयोध्या/मधुकर चतुर्वेदी। श्रीराम को गाय इतनी अधिक प्रिय हैं कि वह उनके साथ रहते थे और गौ के समक्ष खड़े श्रीराम कहते थे...हे अनघे..। मैं प्रणत होकर आपकी पूजा करता हूँ, आप विश्वदुःखहारिणी हो, मेरे प्रति प्रसन्न हो..आप मेरे भीतर हो...मैं आपके भीतर हूं। श्रीराम की तरह गायों को भी श्रीराम से अनन्य प्रेम था। आज त्रेतायुग नहीं है, पर श्रीराम और गाय के प्रेम के प्रमाण आज भी अयोध्याजी में कोई भी अपनी आंखों से देख सकता है। आज भी अयोध्या में एक गाय ऐसी है, जिसने पूरे 25 वर्ष श्रीराम जन्मभूमि की प्रतिदिन 108 परिक्रमा की है और इस गाय को परिक्रमा करते हुए अयोध्याजी के लोगों ने, संतों ने और जन्मभूमि की सुरक्षा करने वाले सुरक्षाकर्मियांें ने देखा है। यह भी आश्चर्यचकित हैं कि एक गाय नियम से श्रीराम जन्मभूमि की परिक्रमा करती है, इस गाय में श्रीराम भक्ति का प्रवाह कैसे उत्पन्न हुआ...इसके पीछे क्या रहस्य है। हालांकि पिछले कई वर्षो में आधुनिक विज्ञान के मानने वाले कुछ लोगों ने इसपर शोध पर भी किया...पर श्रीराम और इस गाय के बीच के सम्बंधों पर उनका विज्ञान भी कुछ उत्तर देने में सफल नहीं हुआ। यह भी एक आश्चर्य है कि भारत में श्रीराम के भक्त को बहुत मिल जाएंगे, पर सरयू गाय की भक्ति मिलना बहुत कठिन है।
अयोध्याजी के रंगमहल मंदिर में है ‘सरयू गाय’
श्रीराम जन्मभूमि की परिक्रमा करने वाली इस गाय का नाम ‘सरयू’ है। यह गाय अयोध्याजी के रसिक संप्रदाय के प्रसिद्ध मंदिर ‘रंगमहल’ में रहती है। रंगमहल मंदिर की दीवार श्रीरामजन्मभूमि से सटी है। मंदिर में गाय की सेवा करने वाले कृष्णकुमार दास ने बताया कि मंदिर के महंत श्रीरामशरण दास जी 30 वर्ष पूर्व ‘साहीवाल’ नस्ल की इस ‘गैरिकवर्णी’ गाय की माता को गोरखपुर से लेकर आ रहे है। उस समय यातायात के इतने अधिक साधन नहीं थे। अयोध्या लाते समय सरयू नदी को पार कराते समय गाय का प्रसव हो गया और इस बछिया का जन्म सरयू नदी में होने के कारण इसका नाम ‘सरयू’ रख दिया। तभी यह गाय पूरे अयोध्या में ‘सरयू गाय’ के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
बचपन से श्रीराम जन्मभूमि की परिक्रमा कर रही है ‘सरयू गाय’
कृष्णकुमार दास ने बताया कि रंगमहल की गौशाला में आने के बाद से सरयू गाय एक वर्ष तक अपनी मां के साथ गौशाला में रही। एक वर्ष बाद सरयू गाय को उसकी मां के साथ चरने के छोडा जाता था। सभी गाय रंगमहल गौशाला से निकल कर इधर-उधर जाती थीं लेकिन सरयू गाय बचपन से ही श्रीराम जन्मभूमि की ओर जाती थी और श्रीराम जन्मभूमि की परिक्रमा करने लगती थी। उस समय उस भूमि पर बाबरी ढांचा खड़ा था, उस ढांचे के पास की भूमि पर परिक्रमा करती थी। पिछले 25 वर्षो से यह जन्मभूमि की परिक्रमा कर रही है। अभी वर्तमान में श्रीरामलला के मंदिर का निर्माण चल रहा है, इसलिए अब हम इसे छोड़ते नहीं है। छोड़ने पर यह अभी भी जन्मभूमि की ओर भागती है।
भूमि पर मंदिर निर्माण चल रहा है लेकिन सरयू की परिक्रमा नहीं रूकी
रंगमहल के सटी श्रीराम जन्मभूमि पर वर्तमान में श्रीरामलला के भव्य मंदिर का निर्माण चल रहा है। इस कारण सरयू गाय जन्मभूमि परिसर में जा नहीं सकती लेकिन, सरयू गाय की परिक्रमा नहीं रूकी। सरयू गाय रंगमहल की गौशाला के पास बने एक अहाते में प्रतिदिन करीब 20 फीट की परिधि के घेरे में परिक्रमा करती है, इस चबूतरे से श्रीरामलला के मंदिर के दर्शन स्पष्ट होते हैं।
परिक्रमा की संख्या और समय भी चमत्कारित है
सरयू गाय का श्रीराम जन्मभूमि की परिक्रमा करना जितना चमत्कारित है, उतना इसकी संख्या और समय भी है। सरयू गाय मंदिर बनने से पूर्व जिस भूमि पर परिक्रमा करती थी, उसकी संख्या 108 है और आज भी जिस आहते में वह परिक्रमा करती है, वह भी 108 की संख्या में करती है। वहीं सरयू गाय की परिक्रमा करने का समय भी मंदिर में दर्शन करने का समय है। वह दोपहर और रात में नहीं बल्कि, प्रातः और सांय ही परिक्रमा करती है।
सुरक्षाकर्मियों से पता चला सरयू गाय की परिक्रमा का
सरयू जब पांच माह की बछिया थी, तभी उसने परिक्रमा के लिए जन्मभूमि के पास की जमीन का चुनाव कर लिया। शुरू में रंगमहल के सेवायतों ने सरयू गाय की परिक्रमा पर ध्यान नहीं दिया। कुछ दिनों बाद रामजन्मभूमि की सुरक्षा में कैमरों के मानीटर करने वाले पुलिसकर्मी ने इस बछिया के नित्य परिक्रमा की ओर ध्यान दिया और मंदिर के लोगों को बताया कराया।
एकादशी के दिन नहीं खाती चारा
सरयू गाय कोई साधारण गाय नहीं है। गाय की सेवा करने वाले बताते हैं कि केवल परिक्रमा का सवाल होता, तो एक बार इसे चमत्कार नहीं भी माना जाए लेकिन, सरयू गाय एकादशी व्रत के दिन चारा नहीं खाती। हमारे यहां मंदिर में भंडारा होने बचा हुआ भोजन गायों को डालते हैं, बाकी सभी गाय भंडारे के बचे हुए भोजन को खाती हैं लेकिन सरयू गाय उसे भी नहीं खाती। केवल हरा चारा खाती है और परिक्रमा करते समय एक-एक कदम ऐसे रखती, जैसे कोई ज्यामितीय दृष्टि इस गाय के भीतर हो।
कृष्ण कुमार दास, रंगमहल मंदिर, रामकोट, अयोध्याजी ने कहा -
हमारे लिए तो यह सरयू गौमाता कामधेनु है। हम खुद इसे पिछले 25 वर्षो से श्रीरामजन्मभूमि की परिक्रमा करते हुए देखा है। आज भी इसे गौशाला से बाहर निकालते हैं तो यह सीधे जन्मभूूमि की ओर जाती है। यह बहुत विलक्षण है। हम अपने नियमों को भूल जाते हैं लेकिन, सरयू अपनी रामभक्ति से कभी भी अवकाश नहीं लेती।