तो सिंधिया के प्रभाव से कांग्रेस में घबराहट है !

कमलनाथ की चिट्ठी से खुली कांग्रेस की घबराहट की पोल

Update: 2020-07-12 07:42 GMT

File Photo

भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस को अलविदा कहने के बाद भले इस बात का दावा कर रहे हैं कि किसी के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को कोई फर्क नही पड़ रहा है। लेकिन खुद कमलनाथ द्वारा प्रदेश के पार्टी जिलों अध्यक्षों को लिखी गई एक चिट्ठी ने न केवल उनके इस दावे की पोल खोल दी है, बल्कि उनकी घबराहट को भी उजागर कर दिया है।

सिंधिया के प्रभाव की घबराहट?

दरअसल पिछले दिनों जिस तरह सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस नेताओं का पार्टी से पलायन शुरु हुआ है, उसके बाद से प्रदेश कांग्रेस मुखिया कमलनाथ पर आलाकमान का दबाव बढ़ गया है कि किसी भी सूरत में इस पलायन को रोकें। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक ने भी भोपाल प्रचास के दौरान इस बात को लेकर प्रदेश के सभी विधायकों और जिलाध्यक्षों की क्लास लेते हुए अपने-अपने जिलों में पलायन को रोकने की बात कही थी। इसके बाद कमलनाथ की चिट्ठी सामने आने पर यह बात प्रमाणित हो गई है कि कांग्रेस में सिंधिया के बढ़ रहे प्रभाव को लेकर घबराहट है। प्रदेश कांग्रेस मुखिया कमलनाथ ने एक चिट्ठी लिखी है जिसमें मध्यप्रदेश के सभी जिलों में कांग्रेस जिला अध्यक्ष को हिदायत दी गई है कि जो कांग्रेस कार्यकर्ता सिंधिया या भाजपा के साथ जा सकते हैं, उनसे सिंधिया के विरोध में बयान जारी कराएं, यदि यह कार्यकर्ता बयान जारी करने से मना करें, तो तत्काल इनके खिलाफ पार्टी से निष्कसन की कार्यवाही करें।

नाथ की चिट्ठी में क्या है?

कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा लिखी गई यह चिट्ठी राजधानी के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। जिसमें कहा गया है कि जिस कार्यकर्ता पर यह शक हो कि वह चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया या भाजपा के साथ जा सकता है, ऐसे कार्यकर्ता से सिंधिया या भाजपा के विरोध में मीडिया में बयान जारी कराओ। बयान जिलाध्यक्ष के संयुक्त हस्ताक्षर से जारी हों। शक के दायरे में आ रहा कार्यकर्ता अगर बयान पर हस्ताक्षर नहीं करे या आनाकानी करे, तो उसे तत्काल पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दो। दरअसल कमलनाथ को शिवराज सरकार के मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के उस बयान के बाद डर सताने लगा है जिसमें तोमर ने कांग्रेस से बड़े पलायन की बात कही थी। प्रदेश में 22 विधानसभा सीटें ऐसी है, जहां के विधायकों ने सिंधिया के समर्थन में पद से इस्तीफा दिया है। ऐसे में कमलनाथ को लग रहा है कि इन क्षेत्रों में अब भी कई सिंधिया समर्थक कांग्रेस में ही हैं। कहीं ऐसा न हो, ऐन चुनाव के वक्त यह कार्यकर्ता कांग्रेस छोड़कर सिंधिया या भाजपा के साथ चले जाएं। ऐसे में कमलनाथ ने संबंधित जिलाध्यक्षों से सजग रहने को कहा है।

सोशल मीडिया पर भी समर्थन करें तो कार्रवाई

कमलनाथ की घबराहट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी चिट्ठी में यहां तक चेतावनी सभी जिला अध्यक्षों को दी है कि सोशल मीडिया पर भी नजर रखें। कोई कार्यकर्ता सिंधिया, भाजपा या उसके प्रत्याशी के समर्थन में या उनकी तारीफ करे, बधाई दे तो उसका स्क्रीनशॉट लेकर ऐसे कार्यकर्ता को भी पार्टी से निकाल दें।

जितना विरोध उतना बढ़ रहा प्रभाव ?

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया कमलनाथ इस बात को या तो समझ नहीं पा रहे हैं या समझकर भी अपनी खामियों को छुपाने के लिए अनजान बनने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस के बड़े क्षत्रप खासकर दिग्विजय सिंह और उनके समर्थक भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पर जितने तीखे हमले कर रहे हैं ग्वालियर-चंबल अंचल में सिंधिया के प्रति लोगों विशेष रूप से युवाओं में सहानुभूति बढ़ती जा रही है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखिया कमलनाथ द्वारा कराए गए सर्वे की रिपोर्ट में दावा किया गया है। जिसे कमलनाथ और उनकी पार्टी के क्षत्रप हल्के में लेने की गलती कर रहे हैं। दरअसल ग्वालियर-चंबल अंचल में सदियाँ बीत जाने के बाद भी सिंधिया राजघराने के प्रति लोगों की आस्था अभी तक कम नहीं हुई है। खासकर पिछले विधानसभा चुनाव के बाद इसका ग्राफ पहले की तुलना में इसलिए बढ़ा है कि विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने सिंधिया को आगे कर चुनाव लड़ा और मतदाताओं को यह संदेश दिया कि यदि कांग्रेस की सरकार बनी तो सिंधिया ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद जब कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा किया तब दिग्विजय सिंह की कुटिलनीतिक बाजीगरी के चलते सिंधिया को पीछे कर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनवा दिया। जिसकी वजह से इस अंचल में कांग्रेस और दिग्विजय सिंह के खिलाफ भरा गुस्सा अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। इस महत्वपूर्ण तथ्य को कांग्रेस मुखिया समझ रहे हैं और कई अवसरों पर संकेत भी दे चुके हैं। शायद इसीलिए दिग्विजय सिंह समर्थकों के भारी दबाव के बावजूद उन्होंने अभी तक दिग्विजय सिंह को उप चुनाव की रणनीति से दूर ही रखा है। कमलनाथ के सामने बड़ी मुसीबत यह भी है कि भले ही वह अभी तक दिग्विजय सिंह को दूर रखने में कामयाब रहे हैं, लेकिन निकट भविष्य में वह ज्यादा समय तक उप चुनाव की राजनीति से उन्हें दूर नहीं रख पाएंगे। यही वजह है कि कमलनाथ इस अंचल में अपनी पैठ बढ़ाने की कवायद में जुटे हुए हैं और संगठन में अपने समर्थकों की राजनीतिक नियुक्तियां कर अपनी टीम खड़ी कर रहे हैं।

पलायन रोकने नाथ ने खोला नियुक्तियों का पिटारा

सिंधिया के भाजपा में आने के कांग्रेस में शुरु हुए पलायन के दौर को थामने के लिए कमलनाथ ने प्रदेश पदाधिकारियों से लेकर जिला स्तर और ब्लॉक के स्तर तक नियुक्तियों का पिटारा खुल गया है। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय से हर दिन 50 से 100 नियुक्तियों के आदेश जारी हो रहे हैं। सबसे ज्यादा नियुक्तियां उपचुनाव वाले जिलों में हो रही हैं। ग्वालियर-चंबल इलाके में सिंधिया के समर्थन में पाला बदलकर भाजपा में जा रहे नेताओं को रोकने की कवायद में जुटी कांग्रेस ताबड़तोड़ नियुक्तियां कर कांग्रेस का कुनबा बढ़ाने में जुटी हुई है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी में पहली बार सबसे ज्यादा पदाधिकारियों की नियुक्ति के आदेश जारी हो रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस कमेटी में ही अब तक 35 से ज्यादा सचिव, सहसचिव और महामंत्री पद के नियुक्ति के आदेश जारी हो चुके हैं। ग्वालियर-चंबल इलाके में ही जिला संगठन को मजबूत बनाने के लिए 500 से ज्यादा नियुक्तियां हो चुकी है। 200 से ज्यादा पदाधिकारियों की नियुक्तियां अकेले ग्वालियर-चम्बल के भिण्ड जिले और ग्वालियर में चार जिला कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की गई है।

इनका कार्यकाल बढ़ाने की तैयारी

मध्यप्रदेश कांग्रेस में भी कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति बढ़ाने की तैयारी है। अभी तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर कमलनाथ के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष काम कर रहे हैं, जिसमें रामनिवास रावत, बाला बच्चन, जीतू पटवारी और सुरेंद्र चौधरी शामिल हैं, लेकिन उपचुनाव के मद्देनजर इस संख्या को बढ़ाने की कवायद तेज हो गई है। उपचुनाव में भाजपा को संगठन के मुकाबले टक्कर देने के लिए कांग्रेस पार्टी में नियुक्तियों के जरिए कार्यकर्ताओं को खुश करने में जुटी हुई है। सिर्फ इतना ही नहीं कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद हाशिए पर गए अरुण यादव के समर्थकों को भी अब प्रदेश कांग्रेस में पदाधिकारी नियुक्त किया जा रहा है।

इनके अपने दावे

कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए नियुक्तियां करने की पुरानी परंपराएं हैं, जहां जिलों से पदाधिकारी नियुक्त करने की मांग आती है, उसके नियुक्ति के आदेश जारी किए जाते हैं। प्रदेश में अभी 16 जिलों में ब्लॉक के स्तर पर कांग्रेस पार्टी संयोजक, सह संयोजक और प्रचारक नियुक्त करने जा रही है। ताकि बेहतर तालमेल के साथ उपचुनाव लड़ा जा सके।

चन्द्रप्रभाष शेखर, संगठन प्रभारी, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी

आग लगने पर कुआं खोदने की परंपरा कांग्रेसमें पुरानी है। सत्ता में थे, तब कार्यकर्ताओं की पूछ परख नहीं की। अब उपचुनाव है, तो ऐसे में कार्यकर्ताओं की याद आ रही है। कांग्रेस में कार्यकर्ता बच्चे नहीं है, जो थे वह भाजपा में शामिल हो गए हैं। ऐसे में संगठन में नियुक्तियों का असर उपचुनाव पर नहीं होगा।

हितेष वाजपेई, प्रवक्ता, भाजपा

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