सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से सवाल, पूछा - 75 साल बाद भी राजद्रोह जैसा कानून क्यों जरूरी ?

Update: 2021-07-15 08:00 GMT

नईदिल्ली।  राजद्रोह की संवैधानिकता को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह जैसे क़ानून की ज़रूरत है। चीफ जस्टिस ने कहा कि कभी महात्मा गांधी, तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज को दबाने के लिए ब्रिटिश सत्ता इस क़ानून का इस्तेमाल करती थी। क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत है। 

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि राजद्रोह में दोषी साबित होने वालों की संख्या बहुत कम है लेकिन अगर पुलिस या सरकार चाहे तो इसके जरिये किसी को भी फंसा सकती है। इन सब पर विचार करने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। यह याचिका सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एसजी बोम्बतकरे ने दायर की है। केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राजद्रोह कानून वापस नहीं लिया जाना चाहिए बल्कि कोर्ट चाहे तो नए सख्त दिशा-निर्देश जारी कर सकता है ताकि राष्ट्रीय हित में ही इस कानून का इस्तेमाल हो।

पत्रकार की याचिका 

उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने पिछले 12 जुलाई को राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर एक दूसरी याचिका पर सुनवाई टाल दी थी। सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की थी। यह याचिका मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ल ने याचिका दायर की है।

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