खांसी, बुखार के साथ बच्चे का वजन घटे तो घबराएं नहीं टीबी की जांच कराएं
बाल रोग विशेषज्ञों की सलाह- बच्चों में टीबी की पुष्टि कर पाना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं। यदि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात हों बाल रोग विशेषज्ञ तो हो सकती है स्क्रीनिंग आसान
अतुल मोहन सिंह लखनऊ। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की वजह से बच्चों में टीबी का संक्रमण होने का खतरा अधिक रहता है। टीबी अर्थात क्षयरोग से प्रभावित होने के पीछे उनका कुपोषित होना, रोग को लेकर जानकारी की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं तक न पहुंच पाना भी है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को संक्रमण अक्सर घर के सदस्यों से जरिये से ही होता है, क्योंकि उनका अधिकतम समय घर में ही बीतता है।
बच्चों में फेफड़ों की टीबी की पुष्टि होना भी मुश्किल होता है। इसके लिए लक्षणों की सही से पड़ताल, क्लीनिकल परीक्षण, सीने का एक्स-रे और बच्चे के परिवार की टीबी हिस्ट्री का पता होना जरूरी है। लापरवाही अक्सर मुसीबत में डाल देती है।
संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई), लखनऊ की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ प्रो. पियाली भट्टाचार्य के अनुसार, बच्चों में सर्दी, जुकाम, बुखार आजकल एक आम समस्या है। ऐसे में उन बच्चों में टीबी की पहचान करना कठिन होता है, लेकिन इन समस्याओं के साथ अगर बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा है या घट रहा है तो टीबी की जांच जरूर कराएं। यह लक्षण गंभीर हो सकते हैं।
यह भी ध्यान रखें कि बच्चे के बलगम का नमूना लेने में थोड़ी कठिनाई आती है, क्योंकि बच्चे उसे निगल जाते हैं। उन्होंने बताया कि क्षय रोग दुनिया भर में बच्चों में मृत्यु दर का प्रमुख कारण है। ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों में बढ़ रही टीबी की अभिभावकों लापरवाही है।
डॉ.पियाली ने कहा कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) पर बाल रोग विशेषज्ञों की अनुपलब्धता के कारण बच्चों की बीमारियों के इलाज में दिक्कत होती है। ऐसी स्थिति में या तो बच्चों का उपचार देर से शुरू होता है या फिर शुरू ही नहीं होता। दोनों स्थितियां खराब परिणामों की ओर इशारा करती हैं।
उन्होंने बताया कि इस साल की विश्व क्षयरोग दिवस की थीम- 'हां, हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं' का उद्देश्य आशा को प्रेरित करना और उच्च स्तरीय नेतृत्व को प्रोत्साहित करना, निवेश में वृद्धि करना, डब्ल्यूएचओ की नई सिफारिशों को तेजी से अपनाना, इनोवेशन को अपनाना, त्वरित कार्रवाई और टीबी से निपटने के लिए बहु क्षेत्रीय सहयोग है।
घबराएं नहीं आसान है इलाज : बिहार के मुजफ्फरनगर निवासी प्रख्यात बाल रोग विशेषज्ञ एवं डॉ.अरुण शाह फाउंडेशन के संस्थापक डॉ.अरुण शाह बताते हैं कि अब टीबी का इलाज आसानी से हो जाता है, पर जरूरी है कि माता-पिता समय पर बच्चे के लक्षणों पर ध्यान दें। अगर लक्षण दिख रहे हैं तो जांच कराएं। टेस्ट में टीबी की पुष्टि होने पर इलाज शुरू करा दें। बीमारी के हिसाब से टीबी का ट्रीटमेंट चलेगा। इस दौरान कई बातों का ध्यान रखना होता है और दवा का कोर्स पूरा करना होता है। बीच में इलाज छोड़ने से बीमारी पर काबू नहीं किया जा सकता है।
डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि 15 साल से कम उम्र के 11 लाख बच्चों में से 50% से कम को टीबी का इलाज मिल पाता है। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में यह और भी कम है। इस उम्र वर्ग के केवल 30% बच्चों का ही इलाज होता है। राज्य क्षय रोग इकाई से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 26, 455 से अधिक बच्चे क्षय रोग से ग्रसित हैं। लिहाजा बच्चों में तपेदिक रुग्णता और मौतों को कम करने के लिए इलाज में सुधार के प्रयास और तपेदिक उपचार तक पहुंच में सुधार करना अहम है। लोग मानते हैं कि टीबी केवल बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारी है, जबकि ऐसा नहीं है। ये बीमारी किसी को भी शिकार बना सकती है। छोटे बच्चों में भी हर साल केस बढ़ रहे हैं। कई मामलों में लक्षणों की जानकारी नहीं होती है। इससे स्थिति खराब होने लगती है। ऐसे में बच्चों में होने वाली टीबी की जानकारी होना बहुत जरूरी है।
बच्चों में क्षय रोग: बच्चों में निष्क्रिय टीबी (जिसे गुप्त टीबी संक्रमण भी कहा जाता है) और सक्रिय टीबी रोग के परीक्षण और उपचार के लिए विशेष विचारणीय बिंदु हैं। एक बार क्षय रोग के कीटाणुओं से संक्रमित होने पर, बच्चों, विशेषकर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सक्रिय टीबी रोग से ग्रसित होने की संभावना अधिक होती है।
बच्चों में सक्रिय टीबी के लक्षण: खांसी, बीमारी या कमजोरी, सुस्ती या कम चंचलता की भावना, वजन कम होना, बुखार, रात का पसीना आना प्रमुख लक्षण हैं। टीबी रोग का सबसे आम रूप फेफड़ों में होता है, लेकिन टीबी रोग शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता है। शरीर के अन्य भागों में टीबी रोग के लक्षण प्रभावित क्षेत्र पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, मस्तिष्क की टीबी नींद न आना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन और दौरे या ऐंठन जैसे लक्षण पैदा कर सकती है।
जन्म के साथ हो सकती है टीबी: डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में टीबी की बीमारी जन्म के साथ भी हो जाती है। कई मामलों में ये बीमारी माता-पिता से बच्चों में ट्रांसफर हो जाती है। आमतौर पर टीबी फेफड़ों में होती है, पर कुछ बच्चों में यह आंतों, स्किन और लिम्फ नोड्स में भी हो सकती है। इससे बचाव के लिए बच्चे के जन्म के कुछ घंटों बाद उसको बीसीजी वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए। ये टीका टीबी से बचाव करता है। किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में ये टीका लग सकता है।
यूं करें बचाव: जन्म के बाद बच्चे को टीबी से बचाव का टीका अवश्य लगवा दें। अगर माता-पिता को टीबी कभी हुई है तो डॉक्टर से सलाह लें। बच्चे में टीबी के लक्षण दिखते ही टेस्ट कराएं। किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में बच्चे को न आने दें।
- बच्चे में टीबी के लक्षण
- वजन का न बढ़ना
- सांस लेने में परेशानी
- रात में ज्यादा पसीना आना
- भूख में लगातार कमी होना
- हमेशा हल्का बुखार रहना
- अकसर खांसी आनाf