वीर सावरकर न रोकते तो लता स्वर साम्राज्ञी न होतीं, अटल जी को मानती थी दद्दा

Update: 2022-02-06 07:03 GMT

मेरी आवाज ही मेरी पहचान है

नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा,

मेरी आवाज़ ही पहचान है , अजीब दास्तान है

यह कहाँ शुरू कहाँ खत्म, यह मंज़िलें हैं कौन सी,

न वो समझ सकें न हम!'

कुछ ऐसे ही कर्णप्रिय और कालजयी गीतों से दुनियां भर को मोहित कर देने वालीं 'सुर साम्राज्ञी' लता मंगेशकर की आवाज आज शांत हो गई। भारत रत्न से सम्मानित इस सुप्रसिद्ध गायिका ने अपना करियर 1942 में प्रारंभ किया उन्होंने विश्व की 36 भाषाओं में 50,000 से भी अधिक गीतों को अपना मधुर स्वर प्रदान किया। उनका वैशिष्ट्य सिर्फ गायन नही था अपितु वे सनातन संस्कृति की महान ध्वजवाहक भी थी। जिस भारतीय सिने उद्योग में एक संस्कृति और एक धर्म के विरुद्ध असीमित, अनंत घृणा रही, वहाँ धारा के विरुद्ध बहकर भी लता मंगेशकर ने अपने करियर को यथावत रखा और अपनी संस्कृति की रक्षा भी की।जिस उद्योग में भारत के पक्ष मात्र में बोलने के लिए ही बड़े से बड़े अभिनेता एवं गायकों को वामपंथी गैंग ' खारिज' कर देते हो, वहाँ लता मंगेशकर ने पूरी दमदारी से विनायक दामोदर सावरकर जैसे प्रख्यात एवं ओजस्वी क्रांतिकारी को आयुपर्यंत अपना समर्थन दिया। वे वीर सावरकर का बहुत सम्मान करती थी, उनके परिवार के संबंध वीर सावरकर व उनके परिवार के साथ बेहद घनिष्ठ थे। हर वर्ष लता मंगेशकर उनके जन्मदिवस यानि 28 मई और उनकी पुण्यतिथि यानि 26 फरवरी पर उनका स्मरण किया करती थीं।

इसी वर्ष वीर सावरकर के जन्मदिवस के शुभअवसर पर लता मंगेशकर ने ट्वीट किया था, "नमस्ते, आज वीर सावरकर जी का जन्मदिवस है, जो भारत माँ के एक सच्चे सुपुत्र थे, एक देशभक्त थे एवं मेरे लिए पिता समान थे। मैं उन्हें नमन करती हूँ"।बता दें कि जीवन भर लता मंगेशकर उन्हें 'तात्या' के उपनाम से संबोधित करती थीं, जो मराठी में पिता या पिता समान संबंध के लिए उपयोग में लाया जाता है। ऐसे ही उनकी पुण्यतिथि पर लता जी ने ट्वीट किया था "आज वीर सावरकर जी की पुण्यतिथि है। मंगेशकर परिवार में हम सभी उन्हे नमन करते हैं"। "

वीर सावरकर जी और हमारे परिवार के बहुत घनिष्ठ संबंध थे, इसीलिए उन्होंने मेरे पिता की नाटक कंपनी के लिए नाटक 'सन्यास्त खड़ग' लिखा था। इस नाटक का पहला प्रयोग 18 सितंबर 1931 को हुआ था, इस नाटक में से एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ"।बीते युग के वीर सावरकर हो या अटलजी,आडवाणीजी,बाला साहेब या फिर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लता जी ने कभी अपने हिंदुत्व के सरोकारों को मुंबइया इंडस्ट्री में छिपाया नही।यह अलग बात है कि लता जी नेहरू,तिलक से लेकर इंदिरा जी की को भी बहुत सम्मान देती थी।

वीर सावरकर न रोकते तो लता स्वर साम्राज्ञी न होतीं... !

यतीन्द्र मिश्र की किताब से

हम भारतीयों को सावरकर का ऋणी होना चाहिए कि अगर उन्होंने लता मंगेशकर को दूसरे ढंग से समाज-सेवा करने से रोका न होता, तो पिछली अर्द्ध शताब्दी और यह नयी सदी लता जी को नहीं सुन पाती।सुर-साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर के प्रशसंक, उनका सम्मान करने वाले तो इस देश न 'लता सुर-गाथा' यह राज खोलती है।हिंदी के कवि, सम्पादक और सिनेमा के अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने लता मंगेशकर से छ: वर्षों के दरम्यान टेलीफोन पर की गयी बातचीत के आधार पर इस किताब को लिखा था। यूं कहें तो इस किताब में 'लता मंगेशकर की कहानी, उनकी जुबानी' है।

इस किताब में लता मंगेशकर ने उन तमाम नामों का जिक्र किया है, जिन्हें वे बेहद पसंद करती हैं, जिनका सम्मान करती हैं एवं जिनकी प्रेरणा से वे संगीत की दुनिया में पहुंची हैं। बहुत सारे लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि उन तमाम नामों में सबसे प्रमुख नाम प्रखर राष्ट्रवादी क्रांतिकारी वीर सावरकर का है। किताब के पृष्ठ संख्या चालीस पर यतीन्द्र लिखते हैं, "बहुत कम लोग जानते होंगे कि अपनी किशोरावस्था में उन्होंने समाज-सेवा का प्रण लिया था। इसके लिए वे राजनेता एवं क्रांतिकारी वीर सावरकर से कई दिनों तक विमर्श में उलझीं थीं कि उन्हें समाज-सेवा करते हुए राजनीति के पथ पर जाना है या कुछ और करना है ? सावरकर जी ने ही उन्हें समझाया था कि तुम एक ऐसी पिता की संतान हो, जिनका शास्त्रीय संगीत और कला में शिखर पर नाम चमक रहा है। अगर देश की सेवा करनी ही है तो संगीत के मार्फत समाज की सेवा करते हुए उसे किया जा सकता है। यहीं से लता मंगेशकर का मन भी बदला है, जो उन्हें संगीत की तैयारी के लिए ले आया।एक तरह से हम भारतीयों को सावरकर का ऋणी होना चाहिए कि अगर उन्होंने उस दिन लता मंगेशकर को कुछ दूसरे ढंग से समाज-सेवा करने से रोका न होता, तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि पिछली अर्द्ध शताब्दी और यह नयी सदी सुरीलेपन से कितनी विपन्न होती." 

इसमें कोई शक नहीं कि क्रांतिकारी वीर सावरकर एक महान राष्ट्र भक्त होने के साथ-साथ समाज में समग्रता की पहचान को कायम रखने वाले सचेतक भी थे।उस महान दृष्टा ने लता मंगेशकर की संगीत की असीम क्षमता को अवश्य पहचान लिया होगा। इसीलिए उन्होंने लता मंगेशकर को संगीत में जाने के लिए प्रेरित किया होगा।

सावरकर के गीतों को दिया स्वर -

सावरकर और लता मंगेशकर के बीच संवाद और संबंध इतने तक सीमित नहीं थे। बहुत कम लोग जानते होंगे कि लता मंगेशकर ने सावरकर के लिखे गीत 'हे हिन्दू नरसिम्हा' को स्वर भी दिया है। इसके अलावा भी सावरकर के लिखे कई गीत लता मंगेशकर की आवाज बनकर श्रोताओं तक पहुंचे हैं। यतीन्द्र मिश्र ने एक सवाल के रूप में जब लता मंगेशकर से पूछा कि राजनीतिक क्षेत्र में कोई ऐसा व्यक्ति जो आपको पसंद हो अथवा उस व्यक्ति की शख्सियत आपको बहुत पसंद हो? लता मंगेशकर का जवाब एकबार फिर क्रांतिकारी वीर सावरकर का नाम लिए बिना नहीं पूरा होता है। वो कहती हैं, 'मुझे इंदिरा गांधी व्यक्तिगत रूप से पंसद हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरु जी की भी इज्जत करती हूँ। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी को मै एक बड़े नेता के रूप में मानती हूं। सक्रीय राजनीति से अलग, मगर देशप्रेम में डूबे किसी राजनीतिक चरित्र की बात करें मै वीर सावरकर को गहरे सम्मान से याद करती हूँ.' हालांकि एक दूसरे सवालों के जवाब में उन्होंने राजनीतिक लोगों में अटल विहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी का नाम भी अपने करीबी लोगों में लिया था।यतीन्द्र मिश्र द्वारा लता मंगेशकर पर लिखी गयी इस किताब में ऐसे अनेक तथ्य हैं जिनके बारे में लोगों को  नहीं पता है।

अटल जी को मानती थीं दद्दा - 

अटल जी के देवलोकगमन पर लता जी ने ट्विटर पर शेयर कर लिखा था 'मेरे दद्दा अटल जी एक साधुपुरुष थे, हिमालय जैसे ऊंचे और गंगा जैसे पवित्र थे, मैंने जब उनकी कुछ कविताएं रिकॉर्ड की थी तो ये एक कविता एलबम में नहीं थी और इसलिए वो कविता में उनकी याद को अर्पण करती हूं।'ट्विटर पर उन्होंने अटल जी की कविता मौत से ठन गई साझा की थी।

मोदी भी लाडले रहे लता जी के - 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लता जी के चहेते नेताओं में से एक रहे ।यतीन्द्र मिश्र की किताब में लता जी अटल जी आडवाणी के साथ मोदी जी का नाम भी लिया था।इस साल जब प्रधानमंत्री ने अपनी मन की बात में लता जी के साथ हुए संवाद को साझा किया तो बदले में लता मंगेशकर ने भी उन्हें खुलकर आशीर्वाद दिया था। उन्होंने प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए देश के विकास के लिए भी उन्हें बधाई दी।

उन्होंने कहा था कि भारत की तरक्की के लिए जिस तरह से मोदी काम कर रहे हैं, उसका प्रभाव पूरे विश्व पर नजर आ रहा है। 'उम्र में बड़ा होने से कुछ नहीं होता है, जिसके काम बड़े होते हैं वही बड़ा होता है। आपके आने के बाद देश की छवि बदली है और इससे मुझे काफी खुशी मिली है। आपने देश के विकास के लिए निरंतर काम किया है और देश का नाम और गौरव बढ़ाया। मैं आपको ऐसे ही लगातार काम करते रहने के लिए बधाई देती हूं।'

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