कौन है अतीक अहमद ? जिसके नाम से कभी कांपता था पूर्वांचल, अब डर से नहीं निकल रही आवाज

अतीक अहमद दबंग, माफिया, गैंग लीडर,हिस्ट्रीशीटर और बाहुबली है, उसके नाम पर 100 से ज्यादा केस दर्ज है

Update: 2023-03-27 11:59 GMT

प्रयागराज/वेबडेस्क। अतीक अहमद का नाम आज देश भर की मीडिया में छाया हुआ है। अहमदाबाद की साबरमती जेल से जब पुलिस का काफिला उसे लेकर प्रयागराज के लिए रवाना हुआ तो मीडिया भी उसके साथ ये लंबा सफर करती सड़क पर नजर आई। जब-जब उसका काफिला सड़क पर रुका तो अतीक की जान हलक में आ गई। मीडिया के सामने बेशक मूछों पर ताव दे रहा हो लेकिन एनकाउंटर का डर उसके चेहरे पर साफ छलकता दिखा।  

बता दें की जिस अतीक अहमद के चेहरे पर आज मौत का खौफ दिख रहा है, उसके नाम से कभी उप्र का पूर्वांचल क्षेत्र कांप जाता था।  हाल ही में प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड में अतीक का नाम आने के बाद जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने माफिया को मिट्टी में मिलाने की कसम खाई। उसके बाद से अतीक और उसके गुर्गों के बुरे दिन शुरू हो गए।  योगी सरकार का खौफ इतना अधिक है कि अतीक गुजरात से उप्र में अपनी शिफ्टिंग रुकवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। उसने अर्जी लगाई कि यूपी पुलिस मेरा एनकाउंटर कर देगी।

कौन है अतीक अहमद - 


अब बात करते है कि आखिर अतीक अहमद है कौन? यदि उसके गुनाहों की बात करें तो इसकी फेहरिस्त उतनी ही लंबी है, जितना बड़ा सियासी दबदबा। अतीक अहमद दबंग, माफिया, गैंग लीडर,हिस्ट्रीशीटर और बाहुबली है।  उसके नाम पर 100 से ज्यादा केस दर्ज है लेकिन उसका रुतबा कुछ ऐसा है कि उसे आज तक किसी मामले में सजा नहीं हुई। अधिकांश मामलों में या तो गवाह पलट जाते है या मर जाते है लेकिन कोर्ट में अतीक के खिलाफ बोल नहीं पाते।  

तांगा चलाने वाले का बेटा - 

अब बात करते है अतीक अहमद के काले कारनामे के सफरनामे की।  अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त 1962 को प्रयागराज में हुआ था। उसके पिता फिरोज अहमद तांगा चलकर गुजर-बसर करते थे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण वह अतीक समेत अपने सभी बच्चों को पढ़ा-लिखा नहीं सकें।  बताया जाता है की उसके पिता भी आपराधिक प्रवृति के थे। कई  बार छोटे-बड़े  झगड़ों में नाम आया लेकिन पुलिस की हिदायत के बाद ये सिलसिला थम गया।अनपढ़ अतीक अपने पिता से बेहद प्रभावित रहा।  वह अपने पिता के ही नक्शे कदम पर चलते हुए 17 साल की उम्र में ही अपराधी बन गया।  

राजनीतिक सफर - 


अतीक अहमद के खिलाफ साल 1983 में हत्या के आरोप में पहली एफआईआईर दर्ज हुई।  इसके बाद अतीक 21-22 साल की उम्र तक अपराध की दुनिया का बड़ा नाम बन गया। उसके बढ़ते अपराधों से परेशान पुलिस जब उसके एनकाउंटर का विचार कर रही थी।  उसी समय उसने राजनीति में एंट्री कर ली।  साल 1989 में उसने विधानसभा इलाहाबाद वेस्ट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बन गया।   इसके बाद साल 1991 और 1993 में भी निर्दलीय चुनाव लड़ा।  1996 में वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक चुना गया और 2002 में अपना दल से विधायक बना।  इसके बाद साल 2004 में उसकी सपा में वापसी हुई और वह फूलपुर सीट से सांसद बना। 

राजू पाल हत्याकांड - 

साल 2004 में अतीक के सांसद बनने केबाद इलाहाबाद पश्चिम की सीट खाली हो गई।  इस सीट पर उसने अपने भाई अशरफ अहमद को टिकट दिला दिया लेकिन बसपा उम्मीदवार राजू पाल ने उसे हरा दिया।  अतीक को अपने भाई की ये हार अखर गई।  उसने 25 जनवरी 2005 को राजू पाल की 19 गोलियां मारकर हत्या कर दी।  इसके बाद दोनों भाइयों अतीक और अशरफ को जेल जाना पड़ा।इस हत्याकांड के चश्मदीद उमेश पाल का अतीक ने 28 फरवरी 2006 को उसका अपहरण करा लिया था।  अतीक अहमद ने उमेश पाल को अपहरण के बाद अपने चकिया के ऑफिस में रखा था। उसे रात भर पीटा और टॉर्चर किया। इससे वह घबरा गया। उसे बिजली के शॉक भी दिए गए। अपनी आंख के सामने मौत का मंजर देखकर उमेश पाल टूट गया। इसके बाद उसने डर के मारे अगले दिन कोर्ट में अतीक के पक्ष में गवाही दे दी। हलफनामा भी दे दिया। लिखा कि उमेश पाल मर्डर के समय वह वहां मौजूद नहीं था और न ही कुछ वह जानता है।

अतीक अहमद का बुरा समय - 


अतीक अहमद का बुरा समय 2007 में शुरू हुआ जब प्रदेश में सरकार बदली। सपा को हार मिली और बसपा प्रमुख मायावती मुख्यमंत्री बनीं। अतीक अहमद के पर बसपा की सरकार बनते ही कार्रवाई शुरू हो गई। मायावती ने अतीक के दफ्तर पर बुलडोजर चलवा दिया। बताया जाता है कि मायावती ने रमेश पाल हत्याकांड के चश्मदीद गवाह उमेश पाल को लखनऊ बुलवाया। कहा कि, तुम गवाही दो, तुम्हारी सुरक्षा सरकार करेगी। इसके बाद उमेश पाल हिम्मत जुटाकर 5 जुलाई 2007 में अतीक, उसके भाई अशरफ सहित 10 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। इसी अपहरण केस के बाद उमेश पाल अतीक अहमद के निशाने पर आ गया। उमेश पाल को पूरा भरोसा था कि योगी सरकार में उसका कुछ कोई नहीं बिगाड़ सकता। लेकिन गत 24 फरवरी को उमेश पाल की अतीक अहमद के शूटरों ने गोली और बम मारकर हत्या कर दी। इसमें उमेश की सुरक्षा में लगे दो सरकारी गनर संदीप निषाद और राघवेंद्र की भी मौत हो गई थी।

सपा के दरवाजे बंद - 

साल 2016 में अखिलेश यादव के सपा की कमान संभालने के बाद अतीक के लिए पार्टी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए।  इस सब के बावजूद उसने 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ में अपना दल से, 2018 में फूलपुर सीट के उपचुनाव में निर्दलीय  और 2019 में वाराणसी सीट से पीएम मोदी के खिलाफ निर्दलीय लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन सभी में उसे हार मिली।  साल 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद उससे जुड़े सभी मामलों की जांच शुरू हो गई।  प्रयागराज निवर्सिटी में  वहां के टीचर्स को सरेआम पिटाई किये जाने के मामले में फरवरी 2017 से वह जेल में है।  सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उसे उप्र के बाहर गुजरात की साबरमती जेल में शिफ्ट किया गया। पिछले साल चार साल से गुजरात जेल में बंद अतीक का नाम अब उमेशपाल हत्याकांड में आया है। इस मामले में उसके गुर्गों के एनकाउंटर हो चुके है।  वहीँ योगी सरकार ने उसकी करोड़ो की संपत्ति पर बुलडोजर चलकर मिटटी में मिला दिया है।  

अब उम्रकैद मिलना तय - 

अब उमेश पाल के 2006 में हुए अपहरण मामले में प्रयागराज की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है और इस मामले में 28 मार्च को अपना फैसला सुनाएगी। उमेश पाल अपहरण मामले में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को सजा मिलना लगभग तय माना जा रहा है।

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