World Population Day: जानिए क्‍यों है भारत को बढ़ती जनसंख्‍या से डरने की जरूरत...

सवाल यही है कि क्‍या भारत इतनी जनसंख्‍या रखने के लिए तैयार है, जवाब है नहीं?

Update: 2024-07-11 08:17 GMT

भारत में जब भी जनसंख्‍या नियंत्रण की बात होती है तो लोग इसे धर्म से जोड़कर इस पर चर्चा शुरू कर देते हैं, और बाकी मुद्दों की तरह यह गंभीर मुद्दा भी धर्मों की बहस के बीच पिस जाता है जिसका ना कोई समाधान निकलता है, ना ही इस पर कोई काम होता है।

लेकिन भारत को बढ़ती जनसंख्‍या से डरने की सबसे ज्‍यादा जरूरत है, भारत अब दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। वर्तमान में देश की आबादी 142.86 करोड़ से ज्यादा है, वहीं चीन अब दूसरे नंबर पर है।

2050 तक भारत की जनसंख्या के बारे में विभिन्न अनुमानों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह लगभग 1.64 से 1.7 अरब के बीच हो सकती है। यह अनुमान विभिन्न संगठनों और संस्थाओं द्वारा लगाए गए हैं, जो वर्तमान जनसंख्या वृद्धि दर और अन्य संबंधित कारकों को ध्यान में रखते हैं।

कुछ प्रमुख स्रोतों के अनुसार:

संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र के विश्व जनसंख्या संभावना रिपोर्ट (World Population Prospects) के अनुसार, 2050 तक भारत की जनसंख्या लगभग 1.64 अरब हो सकती है।

विश्व बैंक: विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार, 2050 तक भारत की जनसंख्या 1.68 अरब तक पहुंच सकती है।

अन्य अनुसंधान संस्थान: विभिन्न जनसंख्या अनुसंधान संस्थानों के अनुमानों के अनुसार, 2050 तक भारत की जनसंख्या 1.65 से 1.7 अरब के बीच हो सकती है।

लेकिन सवाल यही है कि क्‍या भारत इतनी जनसंख्‍या रखने के लिए तैयार है, जवाब है नहीं?

वर्तमान में बढ़ती जनसंख्‍या के आंकड़े आपको ट्रेन, बस, ऑटो, चौराहे और बाजारों मेंं लगी भीड़ से पता चल रहे होंगे। इसमें कोई सोचने वाली बात नहीं है कि अगर भारत में जल्‍द ही जनसंख्‍या नियंत्रण का कानून लागू नहीं किया गया तो तेजी से बढ़ती देश के संसाधन कब खत्‍म कर देगी यह पता भी नहीं चलेगा।

बढ़ती जनसंख्‍या देश में लाएगी यह गंभीर समस्‍या?


संसाधनों की कमी:

जल संकट: हम सबने देखा कि इस साल की भीषण गर्मी में जनता ने कैसे पानी की समस्‍या का सामना किया। जैसे जैसे जनसंख्‍या बढ़ेगी पानी की किल्‍लत भी तेजी से बढ़ेगी। अधिक जनसंख्या से जल संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है, आने वाले समय में देश भारी जल संकट का सामना कर सकता है।

खाद्य संकट: कृषि योग्य भूमि की सीमितता के कारण खाद्य उत्पादन पर दबाव बढ़ जाता है।

ऊर्जा संकट: ऊर्जा की मांग बढ़ती है, जिससे ऊर्जा संसाधनों की कमी हो सकती है।

आर्थिक चुनौतियाँ:

बेरोजगारी: बढ़ती जनसंख्या के साथ रोजगार के अवसर उतने तेजी से नहीं बढ़ते, जिससे बेरोजगारी बढ़ती है।

गरीबी: अधिक जनसंख्या का मतलब है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपलब्ध संसाधन कम होते हैं, जिससे गरीबी बढ़ती है।

शहरीकरण की समस्याएँ:

अवसंरचना पर दबाव: शहरों में जनसंख्या वृद्धि से यातायात जाम, सार्वजनिक परिवहन पर दबाव, और अन्य बुनियादी ढांचे की समस्याएं बढ़ती हैं।

अवैध बस्तियां: आवास की कमी के कारण झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाती है।

स्वास्थ्य सेवाओं पर असर:

स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: अधिक जनसंख्या से स्वास्थ्य सेवाओं की मांग बढ़ जाती है, जिससे उन्हें प्रभावी ढंग से प्रदान करना कठिन हो जाता है।

संक्रामक रोग: भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में संक्रामक रोग तेजी से फैल सकते हैं।

शिक्षा पर प्रभाव:

शिक्षा की गुणवत्ता: जनसंख्या वृद्धि से शिक्षा संस्थानों पर दबाव बढ़ता है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

शिक्षण संसाधनों की कमी: अधिक छात्रों के कारण शिक्षण संसाधनों की कमी हो जाती है।

पर्यावरणीय क्षति:

वनीकरण में कमी: अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण वनों की कटाई बढ़ती है, जिससे जैव विविधता पर असर पड़ता है।

प्रदूषण: अधिक जनसंख्या से वायु, जल, और भूमि प्रदूषण बढ़ता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है।

सामाजिक तनाव:

सामाजिक असंतोष: संसाधनों की कमी और असमानता के कारण सामाजिक असंतोष और तनाव बढ़ सकता है।

अपराध: बेरोजगारी और गरीबी के कारण अपराध दर में वृद्धि हो सकती है।

इन समस्याओं से निपटने के लिए, सरकार और समाज को मिलकर परिवार नियोजन, शिक्षा, और संसाधन प्रबंधन की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। 

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