बेटी अभिशाप नहीं, जीवनदायिनी हैं
दादी प्रेमलता चौहान कितनी निर्दयी है कि वह नन्ही जान की हत्या करने के बाद नवदुर्गा की पूजा पाठ करते हुए कन्या पूजन करने का नाटक कर रही थी।
ग्वालियर। बेटी है तो कल है, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ यह वह नारे हैं जिनको सरकार बेटियों को बचाने के लिए देती हैं, लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है और आधुनिक भारत में आज भी मासूम बेटियां का गला घोंटा जा रहा है। कमलाराजा चिकित्सालय में 23 मार्च को मां काजल चौहान की कोख से बाहर आई नन्ही जान को क्या पता था कि उसको मतलबी दुनियां में आने के बाद नाम मिलने से पहले ही मौत की नींद सुला दिया जाएगा। नन्ही जान का सिर्फ कसूर इतना था कि वह बेटी थी। आधुनिक हो चले समाज में लोगों की मानसिकता इस कदर गिर सकती है सोचकर भी रुह कांप उठती है। काजल चौहान को अपनी सास प्रेमलता चौहान द्वारा चंद घण्टों की नन्ही परी की गला घोंटकर हत्या करने का पता चला तो उसको यकीन नहीं हुआ कि मातृत्व सुख मिलने के बाद अपने आंचल से दूधमुंही संतान को स्तनपान कराने से पहले ही मौत के घाट उतार दिया, वो भी नाती की चाहत में। दादी प्रेमलता चौहान कितनी निर्दयी है कि वह नन्ही जान की हत्या करने के बाद नवदुर्गा की पूजा पाठ करते हुए कन्या पूजन करने का नाटक कर रही थी। पच्चीपाड़ा किलागेट से लेकर समूचे शहर में जिसने भी प्रेमतला की क्रूरतापूर्वक और निर्दयी हरकत को सुना वह पहले तो भरोसा नहीं कर सका कि आज जहां बेटियां चांद पर परचम लहरा रही हैं, लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं, दुर्गम क्षेत्रों में बंदूक लेकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जंग लडऩे में अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं, तो दूसरी ओर उनका बेटे की चाहत मेंं गला घोंटा जा रहा है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में दो दिन पहले ही बेटियोंं ने अपना लोहा बनवाकर अपने माता पिता का सिर गर्व से न केवल ऊंचा कर दिया बल्कि प्रेमलता चौहान जैसी संकीर्ण सोच वाली महिला के गाल पर तमाचा है जो बेटों की चाहत में बेटी का गला घोंट रही हैं। तो वहीं समाज में ऐसे लोग भी हैं जो बेटी के अरमानों को पूरा करने के लिए दिन रात मेहनत कर उनके सपनों को उड़ान भरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आधुनिक समाज में आज बेटियां खुले में सांस ले रही हैं और हमको उन पर गर्व है।
मेरा तो सहारा ही नातिन हैं: सरला दास
आनंद नगर निवासी सरला दास आज भी कोरोना महामारी को याद करते हुए रोने लगती हैं। 7 मई 2021 को बेटे एरिक जोसेफ की कोरोना संक्रमण केे चलते मौत हो गई तो उससे पहले 15 मार्च 2021 को पुत्रवधु एलिजाबेथ की पुरानी छावनी में सडक़ दुर्घटना में मौत हो गई। पति बेटे और पुत्रवधु की मौत के बाद बुरी तरह टूट चुकीं सरला दास के सामने अपनी दो मासूम तातिन के पालन पोषण की समस्या थीं। बेटियों के माता पिता की मौत के बाद सरलादास के पास लोग बेटियों की यह कहकर मांग करने लगे कि इनको हमें दे दो तुम कैसे पालोगी। दादी सरलादास ने हिम्मत नहीं हारी और दोनों मासूम नातिनों को पालन पोषण किया। सवा साल की जुड़वां बहनों को सरलादास ने आर्थिक समस्या और अन्य चुनौतियां का सामना करते हुए परवरिश कर रही हैं। सरला दास का कहना है कि मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है। प्रेमलता ने जो किया वह काफी शर्मनाक है में उनसे पूछना चाहती हूँ कि लडक़ा होता तो क्या वह उसको भी मार देतीं। बेटा बेटी में फिर भेदभाव क्यों। आज मेरी दोनों नातिन की मेरा सहारा है और में उनको लिए ही जिंदा हूँ।
मेरा सपना मेरी बेटियां: हेतराम कुशवाह
पुरानी छावनी खेरिया निवासी हेतराम कुशवाह ऑटो चलाकर अपनी जीविका चला रहे हैं। हेतराम की चार बेटियां हैं और चारों ही उनको जान से ज्यादा प्यारी हैं। वह सीना चौड़ा करते हुए कहते हैं कि मेरी बेटियां ही मेरा सपना है। मैने कभी भी जिंदगी में कोई भेदभाव नहीं किया है। अपनी औकात से ज्यादा इनके पालन पोषण करने में कोई कसर नहीे छोड़ रहा हूँ। मेरी बड़ी बेटी का अब में विवाह करने की तैयारी कर रहा हूँ। जितनी सुखी मुझे मेरी दो दिन पहले हुए बेटे के पैदा होने पर हुई उससे ज्यादा खुशी बेटियों के जन्म पर होती थी। हालांकि में पढ़ा लिखा नहीं हूँ लेकिन बेटियोंं के पालन पोषण में कोई भेदभाव नहीं हैं। हालाकि मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है लेकिन मेरी बेटियां मुझे जान से ज्यादा प्यारी हैं।
बेटी की हत्या मानसिक विकृति दर्शाती है: डॉ. दीपक यादव
जयारोग्य चिकित्सालय के रेडियालॉजी विभाग के प्रो डॉ. पंकज यादव का कहना है कि प्रेमलता चौहान ने जिस प्रकार नन्ही जान को मारा है वह उसकी मानसिक विकृति को दर्शाता है। यह सामाजिक बुराई है जो अब समय के साथ नहीं होना चाहिए। बता दें डॉ. यादव विगत पन्द्रह वर्षों से इसलिए किसी भी गर्भवती महिला का अल्ट्रासाउंड नहीं करते हैं कि वह गर्भ में पल रहे शिशु के बारे में उसकी पहचान होने पर गर्भपात करा देती हैं। डॉ. यादव की स्वयं दो बेटियां हैं जिनको वह इतना दुलार करते हैं कि वह शब्दों में बयां नहीं कर सके। उनका कहना है कि बेटियां लडक़ों की अपेक्षा जल्दी समझदार हो जाती हैं और उनकी प्रवृत्ति उदंडता करने की नहीं होती। मेरी बड़ी बेटी आईआईटी वाराणसी में और जबकि छोटी बेटी 11वी कक्षा में अध्यनरत है और उसके दसवी में उसके 97.6 प्रतिशत अंक आए थे। मेरे और हमारी पत्नी के जहन में कभी यह बात भी नहीं आई कि हम पर बेटा नहीं है।
बेटी की औलाद है किसके सहारे छोड़ती: हुकुमदेवी
नदी पार टाल निवासी हुकुमदेवी की बेटी आशा की उन्होंने धूमधाम से विवाह किया लेकिन बेटी के अरमानों पर उस समय पानी फिर गया जब ससुराल में उसे परेशान किया जाने लगा। आशा अपनी मां हुकुमदेवी के पास आ गई और किराए से रहने लगी। तीन वर्ष पहले आशा की बीमारी के चलते मौत हो गई। आशा की बेटी शिल्पी 14 वर्ष और बिट्टी 11 वर्ष के सिर से मां का साया उठ गया। पिता उनको छोडक़र पहले ही चले गए थे। नानी हुकुमदेवी ने दोनों नातिनों को अपने पास रख लिया। आर्थिक हालत इतनी थी लोगोंं के घरों में जाकर झाड़ू पोंछा करना पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बिट्टी दिव्यांग है और नानी के साथ ही साए की तरह रहती है। हुकुमदेवी का कहना है कि बेटी आशा की मौत के बाद नातिनों को किसके सहारे छोड़ती। बेटियां है अपने कलेजे से लगाकर रखंूगी चाहे मुझे दिन रात काम करना पड़े लेकिन इनका पालन पोषण करुंगी।