Gwalior : अंतत: दो सौ करोड़ की गजराराजा मर्सी होम की जमीन सरकारी ही रहेगी
11 वर्ष देरी से दायर याचिका खारिज
ग्वालियर। बहुचर्चित गजराराजा मर्सीहोम की लगभग दो सौ करोड़ रुपए की 50 बीघा जमीन मामले में नए सिरे से दायर की गई विविध याचिका एमपी 4070/2022 को उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ने खारिज कर दिया है। इसके लिए पहले से प्रचलित याचिका वापस लेने और पुन: दूसरी याचिका अन्य नाम से 11 वर्ष बाद लगाने को कारण माना गया है। इस तरह मानसिक दिव्यागों के आसरे मर्सीहोम की जमीन सुरक्षित हो गई है।
दरअसल तत्कालीन अपर तहसीलदार भूपेंद्र सिंह द्वारा मर्सीहोम अथवा शासन का पक्ष सुने बिना 23 नवंबर 2010 को सादा कागज पर आए एक आवेदन मात्र पर डोंगरपुर के सर्वे क्रमांकों की 10.032 हेक्टेयर भूमि को श्रीनिवास सिंह के नाम कर दिया था। जिस पर तत्कालीन जिलाधीश आकाश त्रिपाठी ने मामले को स्वत संज्ञान में लेते हुए जांच के बाद 11 नवंबर 2011 को शासकीय घोषित कर दिया था। तब श्रीनिवास ने मैसर्स ट्यूलिप एसोसिएट की ओर से उच्च न्यायालय में याचिका क्रमांक 8685/2011 दायर की। लेकिन बाद में 27 जुलाई 2022 को याचिका वापस ले ली गई। फिर अचानक एक नए नाम श्रीमती विमला पत्नी जितेंद्र सिंह के नाम से विविध याचिका क्रमांक 4070/2022 दायर करा दी गई। इस याचिका की लगातार सुनवाई चली। जिसमें राज्य शासन व अन्य को पक्षकार बनाया गया। जिसमें 13 मार्च को हुई सुनवाई के बाद अंतिम अनुग्रह के साथ 20 मार्च की तिथि लगी। 4 अप्रैल को न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार ने यह याचिका खारिज करने के आदेश जारी किए हैं। जिसमें 11 वर्ष देरी से याचिका लगाने को कारण मानते हुए राहत देने से इंकार किया गया है। साथ ही कहा कि याचिकाकर्ता पूर्व में लगाई याचिका में पक्षकार नहीं थी। यहां बता दें कि श्रीनिवास सिंह नामक व्यक्ति के आवेदन पर तत्कालीन तहसीलदार भूपेंद्र सिंह कुशवाहा ने इस जमीन को निजी घोषित कर दिया था। जिसपर तत्कालीन जिलाधीश आकाश त्रिपाठी ने जांच के बाद इसे वापस मर्सीहोम के नाम किया। बाद में एक याचिका उच्च न्यायालय में दायर की गई जिसे वापस ले लिया गया, फिर पुन: एक नए नाम से याचिका लगाई गई।
यह पूरा मसला ग्राम डोंगरपुर पुतलीघर के सर्वे क्रमांक 413, 414 एवं 416 की लगभग 50 बीघा जमीन का है जिसका लंबे समय से विवाद चल रहा था । तत्कालीन अपर तहसीलदार श्री कुशवाहा ने मर्सीहोम अथवा राज्य शासन को न तो सूचना दी और न ही पक्षकार बनाया बल्कि 23 नवंबर 2010 को आदेश जारी कर सारी जमीन श्रीनिवास के नाम करते हुए 10 अप्रैल 2011 को नामांकन भी कर दिया। तब शिकायत के बाद श्री त्रिपाठी ने इस महत्वपूर्ण मामले की जांच तत्कालीन तहसीलदार आरके पांडे से कराई जिसमें श्री पांडे ने जांच के बाद 31अक्टूबर 2011 को अपनी विस्तृत रिपोर्ट जिलाधीश को सौंपी जिसमें पाया गया कि यह जमीन चरनोई की शासकीय होकर कुछ हिस्सा मर्सीहोम को आवंटित किया गया था। जिसमें वर्षों से मानसिक विकलांग बच्चों को रखा जा रहा है। तब श्री त्रिपाठी ने इस जमीन को पुन: मर्सी होम के नाम किया।
याचिका ली वापस
जिलाधीश के इस निर्णय को श्रीनिवास द्वारा चुनौती दी गई लेकिन पांच वर्ष तक इसमें शासन की ओर से पक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सका। वर्ष 2016 में शासन का जोरदारी से पक्ष रखें जाने पर याचिका को 11 साल बाद 27 जुलाई 2022 में वापस ले लिया गया। यहां तक बात ठीक रही लेकिन इसी मामले में एक नई याचिका 5 सितंबर 2022 को इसी भूमि के संबंध में पुन: श्रीमती विमला के नाम से उच्च न्यायालय खंडपीठ ग्वालियर में विविध याचिका के रूप में दायर कराया गया। जिसपर पिछले डेढ़ वर्ष से लगातार सुनवाई चल रही थी।
यह है मैसर्स ट्यूलिप के साझेदार
श्रीनिवास सिंह के नाम जमीन कराने में शहर के जाने-माने बिल्डरों का हाथ था जिन्होंने अपर तहसीलदार से सांठ-गांठ कर ऐसा कराया। फिर जब 10 अप्रैल को नामांकन कराया गया तब उसमें क्रेता के रूप में मैसर्स ट्यूलिप एसोसिएट के रूप में रोहित वाधवा, महेश भारद्वाज, रविन्द्र सेंगर, धर्मेंद्र पुत्र दलवीर सिंह, के नाम चढवाए गए इस फर्म में गोपाल अग्रवाल, योगेंद्र तिवारी, अज्ञात गुप्ता भी साझेदार बताए गए हैं।