ग्वालियर, न.सं.। गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की शहादत के चलते चीनी वस्तुओं के बहिष्कार को लेकर देशभर में उबाल है, जिसका सीधा असर बाजारों में साफतौर पर देखा जा रहा है। तीन अगस्त को रक्षाबंधन के त्यौहार पर इस बार बहनें अपने भाइयों की कलाई पर चीनी राखी के बजाय स्वदेशी राखी बांधकर चीन से सैनिकों की शहादत का बदला लेंगी। बहनों के स्वदेशी राखी के इस आह्वान के चलते शहर के बाजारों में स्वदेशी राखी की भरमार है। स्वदेशी का भाव जगाकर बहनें राखी के माध्यम से जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प को पूरा कर रही हैं वहीं उनका खुद का कारोबार भी काफी फलफूल रहा है।
शहर की बहनों का इस बार यह निर्णय हुआ है कि वे अपने भाइयों की कलाइयों पर चीनी राखी के बजाय हाथ से बनी राखी या धागों का इस्तेमाल करेंगी। बहनों के इस संकल्प को पूरा करने के लिए शहर में ही 15 से 20 महिलाओं के स्व-सहायता समूह, कैट वूमन विंग व अन्य संस्थाओं ने हाथ से बनी स्वदेशी राखी बनाना शुरू कर दिया है। यह आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत राखी तैयार कर रही हैं।
महिलाओं को मिल रहा है रोजगार
स्व-सहायता समूह, कैट वूमन विंग, सेवा भारती व अन्य संस्थाओं के तत्वावधान में राखी बनाने के इस कारोबार में सैंकड़ों महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। कोरोना के इस संकट में यह महिलाएं अपनी कमाई से अपने परिवार का निर्वहन भी कर रही हैं। एक-एक समूह में 25 से 30 महिलाएं राखी बनाने का काम कर रही हैं।
तुलसी, सब्जी के बीज, मोतियों और रूद्राक्ष की बना रहीं राखी
महिलाएं तुलसी, सब्जियों के बीज, मोतियों, जरकीन, रूद्राक्ष, चावल, रोली, हल्दी, कुमकुम, गणपति की राखियां बना रही हैं। महिलाओं ने बताया कि जब हम इन राखियों को उतारकर गमले में डाल देंगे तो कोई न कोई पौधा पैदा होगा, जो बहन-भाई के पवित्र प्यार की याद दिलाता रहेगा।
डाकघर ने उपलब्ध कराए पांच हजार वाटरप्रूफ लिफाफे
प्रदेश में जगह-जगह लॉकडाउन हैं और शहर की सीमाएं सील हैं। इसलिए बहनें इस बार अपने भाईयों के पास नहीं पहुँच पा रही हैं। बहनों ने हाथ से बनी राखियां अपने भाईयों को कोरियर व डाकघर के माध्यम से भेजना शुरू कर दिया है। वहीं डाकघर ने राखी पर बहनों के लिए 5000 वाटरप्रूफ लिफाफों की व्यवस्था की है, जिसमें बहनों की राखी भाइयों तक सुरक्षित पहुँच सके। एक लिफाफे की कीमत मात्र 10 रुपए है। वहीं बाजार में अच्छी राखियों की शुरुआत 20 रुपए से है। इसके बाद जैसी राखी है उसके हिसाब से राखी की कीमत है।
इनका कहना है:-
'चीनी सामान का बहिष्कार करने के संकल्प से इस बार रक्षाबंधन पर देशी राखियों को बढ़ावा देने के लिए स्व-सहायता समूहों से राखियां बनवाई जा रही हैं।
कौशलेन्द्र विक्रम सिंह, जिलाधीश, ग्वालियर
'चीन की हरकत के कारण बहनें अब चीनी राखियों को पसंद नहीं कर रही हैं। इसलिए देशी राखियों की मांग बढ़ गई है। कौशल विकास केन्द्र के अंतर्गत हमारे समूह में 50 महिलाएं प्रतिदिन देशी राखी बनाने का काम कर रही हैं। सभी बहनों को रोजगार भी मिल रहा है। सभी राखियां डिजाइनदार हैं। इन राखियों में कोरोना का कोई डर नहीं हैं।Ó
विमलेश जैन, राखी प्रशिक्षक
'मैंने अपने भाई, भाभी और भतीजे को अपने हाथ से ही राखी बनाकर कोरियर से भेजी है। चीन की हरकत से उसे हम बहनों का विश्वास उठ गया है।
श्रीमती प्रगति शर्मा
'देशी राखियों की मांग बहुत बढ़ गई है। हम एक राखी को 10 से 15 मिनट में तैयार कर लेते हैं। सभी राखियों को सेनेटाइज करके बनाया जा रहा है और बाजारों में भेजा जा रहा है।Ó
रानी सिंघल,कौशल प्रशिक्षु
'हमारी देशी राखियां चीनी राखियों की अपेक्षा अधिक सुंदर हैं। हाथ से बनी होने के कारण इन राखियों में बहन-भाई का प्यार भी झलकता है। जैसे-जैसे त्यौहार पास आ रहा है राखी की मांग बहुत बढ़ रही है।Ó
काजल शाक्य, कौशल प्रशिक्षु
'वैभव श्री स्व सहायता समूह की बहनों द्वारा कोविड-19 से बचने के लिए राखी का निर्माण महिला समूहों द्वारा किया जा रहा है। स्वदेशी राखियां बनाई जा रही हैं।
दिनेश शर्मा, महानगर संयोजक, सेवा भारती
'चीनी राखियों का तो बाजार ही खत्म हो गया है। सभी बहनें देशी राखी ही मांग रही हैं। इस वर्ष राखी का बाजार 30 से 40 प्रतिशत कम हो गया है। कोरोना के कारण बहनें बाजार आने से भी कतरा रही हैं।Ó
सोम अग्रवाल,राखी कारोबारी