प्रदेश की 30 बाल कल्याण समितियों का कार्यकाल खत्म, नहीं बनी नई समिति
ग्वालियर की समिति को अपात्र करने के पत्र पर खड़े हो रहे सवाल
ग्वालियर, न.सं.। प्रदेश के 30 जिलों की बाल कल्याण समितियों का कार्यकाल शनिवार को खत्म हो गया। किंतु नई समिति बनाने अथवा किसी समिति का कार्यकाल बढ़ाने का राज्य शासन की ओर से कोई निर्णय नहीं लिया जा सका है। जिससे यदि रविवार को निराश्रित बच्चों संबंधी कोई नया मामला आ जाता है, तो उसे कौन निपटाएगा, जय स्पष्ट नहीं है। वहीं ग्वालियर जिले की बाल कल्याण समिति के कार्यकाल समाप्ति के एक दिन पूर्व उसे अपात्र घोषित करने के लिए जिलाधीश कौशलेन्द्र विक्रम सिंह द्वारा पत्र लिखा जाना कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है। वैसे भी यह पूरा मामला एक एनजीओ संस्था को फायदा पहुंचाने का है। जिसे बाल संरक्षण अधिकारी एवं सहायक संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग का संरक्षण प्राप्त है। इसमें सबसे गंभीर बात यह है कि पिछले महीने इसी संस्था के अधीन एक निराश्रित बालिका का आकस्मिक निधन हो गया। जिसे गुपचुप तरीके से दबाने की कोशिश की गई और किसी तरह की जांच करना उचित नहीं समझा गया।
यहां बता दें कि प्रदेशभर की लगभग 30 जिलों की बाल कल्याण समितियों का कार्यकाल शनिवार को खत्म हो गया है। शेष बची समितियों का कार्यकाल दिसम्बर तक समाप्त होने वाला है। इसके लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की संचालक स्वाति मीणा द्वारा विभाग के प्रमुख सचिव अशोक शाह को पत्र लिखकर सूचित किया जा चुका है। इसके बावजूद किसी भी समिति का कार्यकाल आगे नहीं बढ़ाया गया और न ही नई समितियों का गठन किया गया है।वैसे नियम यह है कि यदि किसी जिले की समिति का कार्यकाल खत्म हो रहा है तो उस जिले के आसपास के किसी जिले की समिति को चार्ज दे दिया जाता है किंतु ग्वालियर जिले के आसपास के जिलों की समितियों का कार्यकाल भी शनिवार को खत्म हो गया है। पता लगा है कि 11 समितियों के साक्षात्कार हो चुके हैं और शेष के आवेदनों पर विचार चल रहा है। यह सारी प्रक्रिया ऑनलाइन हो रही है। इसी बीच ग्वालियर में बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष केके दीक्षित एवं सदस्यों से बाल संरक्षण अधिकारी राजीव सिंह एवं महिला एवं बाल विकास विभाग के सहायक संचालक शालीन शर्मा में ठन गई। इस तनातनी का मुख्य कारण ज्योति महिला स्वास्थ्य कल्याण समिति को आठ बालिकाओं को ग्रुप फास्टर केयर में रखा जाना माना जा रहा है। क्योंकि अपनी जांच में समिति ने इस संस्था को योग्य नहीं माना था। जिस पर उक्त अधिकारियों द्वारा संस्था से सीधा आवेदन जिलाधीश को देकर उनके पक्ष में आदेश करा लिया गया। जिससे नाखुश होकर समिति अध्यक्ष ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग तक शिकायत पहुंचा दी। जिसपर आयोग ने जिलाधीश कौशलेन्द्र विक्रम सिंह को ही नोटिस जारी कर जबाव मांग लिया। इन सब नोटिसों का और तनातनी के चलते अंतिम प्रहार जिलाधीश द्वारा समिति को अपात्र घोषित करने राज्यशासन को पत्र लिखकर किया गया। समिति के कार्यकाल की पूर्व संध्या पर इस तरह का पत्र लिखना कई सवाल खड़े कर रहा है। यह सवाल भी उठ रहा है कि विवादास्पद संस्था के अधीन एक बालिका की मौत पर जिम्मेदार अधिकारियों ने किसी तरह की जांच न कराते हुए उस पर पर्दा डालने की कोशिश की। जिससे उनकी कार्यशैली से सभी हैरान है।
इनका कहना है
बाल कल्याण समितियों के कार्यकाल को किशोर न्याय अधिनियम के तहत आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए निर्वाचन आयोग से भी अनुमति लेना पड़ेगी।
फिलहाल नहीं समितियों का गठन नहीं हुआ है। विभाग इस पर शीघ्र निर्णय लेगा।
डॉ विशाल नाडकर्णी, संयुक्त संचालक, महिला एवं बाल विकास विभाग, भोपाल
समिति के कार्यकाल के एक दिन पूर्व उसे अपात्र करने पत्र लिखा जाना संदिग्ध है। समझा जाता है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जिलाधीश को नोटिस दिए जाने के कारण ऐसा किया गया है।
-केके दीक्षित, निवर्तमान अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति