जीवाजी विश्वविद्यालय में हुआ शोध: डायबिटीज की दवा खाना भूल जाते हैं, तो ट्रांसडर्मल पैच लगाएं, यह जरूरत के मुताबिक दवा शरीर में पहुंचाएगा…
ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय के एक रिसर्च स्कॉलर ने डायबिटीज की दवा खाने में भूल करने वालों के लिए एक नया तरीका खोजा है। यहां पर एक ट्रांसडर्मल पैच (ट्रांसडर्मल ड्रग डेलिवरी सिस्टम) डिजाइन किया गया है, इसमें दवा डालकर स्किन पर चिपका दिया जाता है। इसके बाद यह पैच जरूरत के मुताबिक दवा शरीर में पहुंचा देता है।
इस पैच का प्रयोग चूहों पर किया गया है, प्रयोग के दौरान यह देखने के आया कि शरीर पर पैच चिपकाने के बाद दवा शरीर के अंदर जरूरत के मुताबिक पहुंचती रही और इसका कोई साइड इफैक्ट भी नहीं हुआ। जीविवि के फार्मेसी विभाग द्वारा अब इसे पेटेंट कराने की प्रक्रिया की जा रही है।
टाइप 2 डायबिटीज डायबिटीज का सबसे आम प्रकार है, यह तब होती है जब शरीर इंसुलिन का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाता या पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता। इंसुलिन एक हार्मोन है जो ग्लूकोज को शरीर की कोशिकाओं में ले जाने में मदद करता है।
टाइप 2 डायबिटीज में, शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया नहीं करतीं, जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इसे हाइपरग्लाइसीमिया कहते हैं।
पैच से दवा उपयोग तो साइड इफैक्ट भी नहींं : रेपाग्लिनाइड टाइप-2 मधुमेह के उपचार में आमतौर पर दी जाने वाली बहुत ही कारगर दवा है जो कि मैग्लिटिनाइड श्रेणी में आती हैं। इसकी एक बार में लगभग 4 मि.ग्रा. की टेबलेट दिन में 4 बार दी जाती है जो कि इस रोग की नियंत्रण के लिए आवश्यक है लेकिन इस दवा को टेबलेट में देने से इसके बहुत सारे साइड एफेक्ट जैसे की पेट की जलन, पेट दर्द, जी मिचलाना हैं।
इसलिए इस दवा के साइड इफेक्ट्स को ख़त्म करने के लिए तथा मरीजों में इसकी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए जीवाजी विश्वविद्यालय के फार्मेसी अध्यानशाला के प्रो. नवनीत गरुड़ एवं उनके रिसर्च स्कॉलर डॉ. राजेन्द्र चौहान (संविदा सहायक सहायक प्राध्यापक) ने अपने शोध कार्य में रेपाग्लिनाइड को ट्रांसडर्मल ड्रग डेलिवरी सिस्टम से त्वचा के द्वारा रक्त तक पहुंचाने का अधिक प्रभावी तरीका विकसित किया है।
इसमें इन्होंने पहले चरण में कुछ मेट्रिक्स पॉलिमर्स का इस्तेमाल करके ट्रांसडर्मल पैच तैयार की। इस ट्रांसडर्मल पैच में त्वचा से दवा की पारगाम्यता को बढ़ाने के लिए एक अन्य नेचुरल पदार्थ डी-लीमोनेन का उपयोग किया जो कि लिपॉफिलिक हाइड्रोकार्बन है और नीबू से आसानी से प्राप्त हो जाता है।
शुरुआती शोध में इस ट्रांसडर्मल पैच को प्रयोगशाला स्तर पर इसके सभी मानकों के अनुसार इसको जांच लिया गया है और अच्छे परिणाम प्राप्त हुए। इसके बाद ट्रांसडर्मल पैच को चूहों पर लगाकर इसका अध्यन किया गया जिसमे चूहों की त्वचा पर स्किन इरिटेशन स्टडी में यह सही पाई गयी तथा दवा की जो मात्रा रक्त के लिए आवश्यक है वह भी पाई गयी है।
अब इसे पेटेंट करने कि प्रक्रिया को आगे बढ़ाए जाने की योजना बनाई जा रही है। अब इस ट्रांसडर्मल पैच को मरीज़ दिन में एक बार अपने शरीर के गर्दन या हाथ पर लगाकर एक दिन पूरे दवा ले सकता है जिससे रेपाग्लिनाइड टेबलेट दिन में बार-बार लेने का झंझट ख़त्म जाता है और दवा की बहुत कम मात्रा से ही इस रोग का उपचार संभव है।
“फार्मेसी विभाग में डायबिटीज-2 की त्वचा के माध्यम से ड्रांसडर्मल ड्रग डिलेवरी सिस्टम से भेजने के लिए पैच बनाया गया है। इस तरह से दवा शरीर में जाने से साइड इफैक्ट नहीं होते हैं एवं डायबिटीज कंट्रोल रहता है। इस शोध को पेटेंट कराने की प्रक्रिया की जा रही है।” - प्रो. नवनीत गरुड़, फार्मेसी अध्ययनशाला, जीवाजी विश्वविद्यालय