ग्वालियर स्वच्छता सर्वेक्षण : गीले-सूखे कचरे का न कलेक्शन हो रहा और न ही निस्तारण
ग्वालियर। । निगम द्वारा सडक़ पर जगह-जगह दो-दो डस्टबिन रखे गए हैं, लेकिन ज्यादातर कर्मचारी डस्टबिन के कचरे को एक ही जगह मिला देते हैं।
गीले व सूखे कचरे को अलग-अलग लेने के लिए न तो नगर निगम के अधिकारी कोई सही व्यवस्था बना पाए हैं और न ही कचरे का निस्तारण हो पा रहा है। टिपर वाहन के कर्मचारी ज्यादातर लोगों से गीला व सूखा कचरा अलग-अलग लेकर उसे गाड़ी में एक जगह मिला देता है, जबकि कचरे को अलग-अलग करने के लिए निगम ने टिपर वाहनों में अलग-अलग जगह बनाई है। नगर निगम द्वारा सडक़ पर जगह-जगह दो-दो डस्टबिन रखे गए हैं, लेकिन ज्यादातर कर्मचारी डस्टबिन के कचरे को एक ही जगह मिला देते हैं।
रोजाना कचरा कलेक्शन में जब तक अनिवार्य तौर पर सूखा गीला कचरा अलग नहीं लिया जाएगा, तब तक सही कलेक्शन कैसे होगा। स्वच्छ सर्वेक्षण सिर पर है और हर बार की तरह सर्वे टीम के आने के दौरान टिपर वाहन के साथ कुछ वालेंटियर्स लगा दिए जाते हैं, जो सूखा गीला कचरा अलग लेने की निगरानी करते हैं। निगम सफाई कर्मियों की ओर से यही अभ्यास सालभर हो तो सर्वे में नंबर कटने की नौबत न आए। यहां बता दें स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 की शुरुआत जुलाई माह के पहले पखवाड़े में होने जा रही है। लेकिन नगर निगम की तैयारियां अब भी अधूरी हैं।
वर्ष 2023 के सर्वेक्षण में 9500 अंकों के सर्वे में ग्वालियर नगर निगम को 7994.7 अंक हासिल हुए थे, जिसमें सर्वेक्षण चार हिस्सों में किया गया था। इसमें सेवा आधारित प्रगति के 4830 अंकों में से 4270.4, कचरा मुक्त शहर के 1375 में से 725 अंक मिले हैं। वाटर प्लस के 1125 अंक हासिल हुए हैं, जबकि सिटीजन फीडबैक के 2170 अंकों में से 1874.3 अंक प्राप्त हुए था।
स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 में 10 लाख की आबादी में ग्वालियर को 18वां नंबर मिला था, जबकि 2020 में ग्वालियर 13वें नंबर पर था। रैंकिंग पिछडऩे के ये हालात तब हैं, जबकि सफाई पर हर साल 140 करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च हो रही है। यह पैसा सिर्फ कचरा उठाने एवं लैंडफिल साइट तक ले जाने पर खर्च किया जाता है। कचरा प्रोसेसिंग पर अलग से पैसा खर्च किया जा रहा है। वर्तमान में निगम की कचरा प्रबंधन यूनिट पूरी तरह चालू नहीं है। शहर में कई स्थानों पर खुले में सीवर बह रहा है। घरों से गीला-सूखा कचरा लेने में ही अमले को पसीना छूट रहा है। शौचालयों में भी मानकों के अनुरूप कार्य नहीं है।
तीन हजाी से अधिक सफाई कर्मचारी
स्वास्थ्य विभाग में लगभग 3000 सफाई कर्मचारी कार्यरत बताए जाते हैं। इसमें नियमित 975, विनियमित 1150 एवं ठेके के 950 कर्मचारी हैं। सफाई कर्मचारियों के कुल वेतन पर 50 से 60 करोड़ रुपए खर्च होता है। स्वास्थ्य विभाग में 282 से अधिक वाहन लगे हुए हैं। इनके संचालन में 60 से 65 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। रोड स्वीपिंग मशीन सहित अन्य संसाधनों पर भी 10 करोड़ रुपए साल में खर्च होते हैं। शौचालयों के जीर्णोद्धार सहित पुताई एवं जागरूकता अभियान पर चार से पांच करोड़ रुपए खर्च किया जाता है। फिर भी हालातों में कोई सुधार नहीं है।
निरीक्षण में 20 से अधिक सफाई कर्मचारी मिले गायब
हाल ही में निगमायुक्त के साथ-साथ अपर आयुक्त व उपायुक्त ने वार्डो व क्षेत्रीय कार्यालयों का निरीक्षण किया था। जिसमें एक ही वार्ड व जोन से 20 से अधिक सफाई कर्मचारी गायब मिले। इसको लेकर वेतन काटने के निर्देश भी दिए, लेकिन उसके बाद भी आज भी वार्डो में सफाई कर्मचारी बिना बताए गायब हो जाते है।
15 जुलाई से होगी शुरुआत आवारा पशुओं पर रहेगा जोर
स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 के सर्वे की तारीख तय हो गई है। देश भर में 15 जुलाई से 9500 अंक की परीक्षा की सत्यता जानने के लिए टीमें मैदान में उतरेंगी। इस बार शिक्षण संस्थानों में साफ-सफाई और शहर में घूमने वाले आवारा पशुओं पर भी रोक की कार्रवाई पर विशेष जोर रहेगा। निगम ने स्वच्छ सर्वेक्षण की प्रस्तावित तारीख आने के बाद तैयारी फिर से शुरू कर दी है।
पिछले नौ वर्षों में ये रही हैं निगम की रैंकिंग
वर्ष 2016-73वीं
वर्ष 2017-27वीं
वर्ष 2018-28वीं
वर्ष 2019-59वीं
वर्ष 2020-13वीं
वर्ष 2021-15वीं
वर्ष 2022-18वीं
वर्ष 2023-16वं