ब्यावरा में 35 वर्ष से नहीं जीता कोई दोबारा

कांग्रेस के पास इस बार मिथक तोडऩे की चुनौती

Update: 2023-11-02 00:00 GMT

राजगढ़ । राजगढ़ जिले की ब्यावरा और राजगढ़ यह दो विधानसभा सीटें ऐसी है जहां पांच वर्ष के अंतराल से होने वाले चुनावों में लगातार न तो कोई दल जीत दर्ज कर पाता है और न ही कोई प्रत्याशी लगातार दूसरा चुनाव जीत सका है। उपचुनाव को छोड़ दें तो हर बार यहां पर नया दल या नया प्रत्याशी ही जीत दर्ज करता है। ब्यावरा विधानसभा सीट पर उपचुनाव को छोड़ दें तो पिछले 35 साल में हुए चुनावों में किसी भी दल या उम्मीदवार ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज नहीं की है। ठीक इसी तरह राजगढ़ विधानसभा सीट पर भी पिछले 20 साल से किसी दल या उम्मीदवार ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज नहीं की है। ऐसे में इस बार फिर से दलों व उम्मीदवारों के सामने वर्षों पुराने मिथक को तोडऩे की चुनौती रहेगी।

9 चुनाव हुए, नया ही बना विधायक

जिले की ब्यावरा विधानसभा सीट का इतिहास भी बेहद रोचक है। यहां पर अंतिम बार लगातार दो बार 1977 और 80 में जनता पार्टी और भाजपा से डीएम जगताप ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद से अब तब पांच वर्ष के अंतराल में हुए कुल 9 विधानसभा चुनावों में हर बार नए नए दल या नए उम्मीदवार ने ही जीत दर्ज की है। या तो पार्टियां टिकट बदल देती है और यदि लगातार टिकट दोहराए जाते हैं तो मतदाता प्रत्याशी को नकार देते हैं।

1980 के बाद 1985 भाजपा ने टिकट रिपीट कर डीएम जगताप को दिया, लेकिन यहां कांग्रेस के विजय सिंह सौंधिया जीतें। 1990 में दोनों दलों ने नए चेहरों को उतारा तो निर्दलीय डीएम जगताप जीते। 1993 में भाजपा के बद्रीलाल यादव, 1998 में भाजपा ने टिकट दोहराया तो कांग्रेस के बलरामसिंह गुर्जर जीते। 2003 में भाजपा के बद्रीलाल यादव जीते, 2008 में भाजपा ने फिर बद्रीलाल यादव को उतारा, पर कांग्रेस के पुरुषोत्तम दांगी जीते। 2013 में भाजपा के नारायणसिंह पंवार जीते, 2018 में भाजपा ने फिर पंवार को उतारा, लेकिन कांग्रेस के गोवर्धन दांगी जीते। 2020 उपचुनाव में दल तो वहीं था, लेकिन नए उम्मीदवार रामचंद्र दांगी ने जीत दर्ज की और भाजपा उम्मीदवार पंवार हार गए। इस बार अब भाजपा से नारायण सिंह पंवार मैदान में हैं तो कांग्रेस के पुरुषोत्तम दांगी। कांग्रेस के सामने फिर से अपने दल को जिताने की चुनौती रहेगी।

राजगढ़: 1993 के बाद दूसरी बार नहीं जीता प्रत्याशी

ठीक ऐसा ही हाल राजगढ़ विधानसभा सीट का है। यहां अंतिम बार लगातार दो बार 1990 और 1993 में भाजपा के रघुनंदन शर्मा जीते थे। इसके बाद यहां हर बार दूसरे दल व उम्मीदवार ने ही जीत दर्ज की है। 1998 में कांग्रेस के प्रताप मंडलोई जीते, भाजपा उम्मीदवार केदार काका हारे थे। 2003 में भाजपा के हरिचरण तिवारी जीते, कांग्रेस हारी। 2008 में भाजपा ने फिर तिवारी को रिपीट किया, लेकिन हार गए और कांग्रेस के हेमराज कल्पोनी जीते। 2013 में भाजपा के नए चेहरे अमर सिंह यादव जीते। 2018 में भाजपा ने फिर यादव को रिपीट किया, लेकिन वह हार गए और कांग्रेस के बापू सिंह तंवर जीते। इस बार फिर से कांग्रेस ने बापू सिंह तंवर को रिपीट किया है और भाजपा ने अमर सिंह यादव को मैदान में उतारा है। ऐसे में यहां भी कांग्रेस के समक्ष मिथक तोडऩे की चुनौती रहेगी।

सिर्फ 2-3 साल के अंतराल में हुए चुनाव में डबल जीत दर्ज

दोनों ही सीटों पर लगातार दूसरी बार दलों या उम्मीदवारों ने उसी स्थिति में जीत दर्ज की है जब पांच वर्ष की बजाए मध्यावधि चुनाव हुए। ब्यावरा सीट पर 1977 के बाद जब 80 में चुनाव हुए तो डीएम जगताप ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। इसके बाद 2018 के बाद 2020 में उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस पार्टी ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। इसी तरह राजगढ़ सीट पर 1977 के बाद 80 में जमनालाल गुप्ता ने जीत दर्ज की थी। पांच वर्ष के अंतराल से होने वाले आम चुनाव में मिथक नहीं टूट सका।

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