VK Saxena Defamation Case: मेधा पाटकर को अदालत से मिली बड़ी राहत, कोर्ट बोला - सामाजिक कार्यकर्ता हैं वो...इतना गंभीर अपराध नहीं

Update: 2025-04-08 07:17 GMT
मेधा पाटकर को अदालत से मिली बड़ी राहत, कोर्ट बोला - सामाजिक कार्यकर्ता हैं वो...इतना गंभीर अपराध नहीं
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VK Saxena Defamation Case : वीके सक्सेना डिफेमेशन मामले में दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को राहत दी है। अदालत ने आदेश दिया कि वह दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को बदनाम करने के मामले में जेल में समय नहीं बिताएंगी। साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विशाल सिंह ने यह भी कहा कि, पाटकर एक उल्लेखनीय सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्हें उनके काम के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं और उनके द्वारा किया गया अपराध इतना गंभीर नहीं है कि उन्हें कारावास की सजा दी जाए।

न्यायाधीश सिंह ने कहा, "अदालत ने उन्हें अच्छे आचरण के लिए रिहा करने का फैसला किया है... उन्हें एक साल की परिवीक्षा पर रिहा किया जा रहा है।" अदालत ने उन पर लगाए गए ₹10 लाख के जुर्माने को भी कम करने का फैसला किया और कहा कि वह सक्सेना को मुआवजा देंगी। इससे पहले मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें सक्सेना को बदनाम करने के लिए पांच महीने की जेल और ₹10 लाख जुर्माने की सजा सुनाई थी। एएसजे सिंह ने पाटकर की दोषसिद्धि के खिलाफ याचिका खारिज कर दी लेकिन सजा और सजा प्राप्त करने के बारे में दलीलें देने के लिए मामले को आज (8 अप्रैल) के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

बीते 2 अप्रैल के अपने आदेश में एएसजे सिंह ने कहा था कि, यह संदेह से परे साबित हो चुका है कि पाटकर ने सक्सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए उनके खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने वाला प्रेस नोट प्रकाशित किया था।

बता दें कि, 10 लाख रुपए का जुरमाना और जेल की सजा के खिलाफ पाटकर ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

वीके सक्सेना, जो नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज नामक संगठन के अध्यक्ष थे, ने 2000 में पाटकर के नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ एक विज्ञापन प्रकाशित किया था। यह आंदोलन नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण का विरोध करता था। इस विज्ञापन का शीर्षक था ‘सुश्री मेधा पाटकर और उनके नर्मदा बचाओ आंदोलन का असली चेहरा’।

विज्ञापन के प्रकाशन के बाद पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ एक प्रेस नोटिस जारी किया था। ‘एक देशभक्त के सच्चे तथ्य - एक विज्ञापन पर प्रतिक्रिया’ शीर्षक वाले प्रेस नोट में आरोप लगाया गया कि सक्सेना खुद मालेगांव गए थे, नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रशंसा की थी और नर्मदा बचाओ आंदोलन के लिए लोक समिति को चेक के माध्यम से 40,000 रुपए का भुगतान किया था। इसमें यह भी कहा गया कि लालभाई समूह से आया चेक बाउंस हो गया था।

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