जयपुर/स्वदेश वेब डेस्क। राजस्थान में तीसरे मोर्चे की सक्रियता से विधानसभा का चुनाव इस बार कुछ ज्यादा ही दिलचस्प होने वाला है। कांग्रेस में टिकट बंटवारे व नेताओं के आपसी टकराव को लेकर चल रहे घमासान के बीच तीसरे मोर्चे की तेज हुई कवायद सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की चुनावी राह कुछ आसान कर सकती है।
जाट नेता हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में गठित तीसरे मोर्चे ने प्रदेश की कुल 200 विधानसभा सीटों में से करीब 125 पर त्रिकोणीय संघर्ष का दावा किया है। बेनीवाल बसपा को भी मोर्चे में शामिल करने के प्रयास में हैं। यदि उनका यह अभियान साकार हुआ तो मतों के बंटवारे का लाभ लेकर भाजपा फायदे में आ सकती है।
बेनीवाल कहते हैं कि मारवाड़ क्षेत्र की 44, बीकानेर की 24 और शेखावटी के 15 विधानसभा क्षेत्रों समेत करीब 125 सीटों पर तीसरा मोर्चा त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति में रहेगा। उन्होंने कहा कि इन सभी सीटों पर वहां की सामाजिक स्थिति के अनुसार चुनावी रणनीति बनाई जा रही है। इसी रणनीति के तहत तीसरा मोर्चा दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के बाद ही अपने उम्मीदवारों के नामों की सूची जारी करने की बात कर रहा है। मोर्चे में शामिल दलों के बीच सीटों का बंटवारा भी उसी समय होगा। भाजपा और कांग्रेस ने दीपावली बाद अपने प्रत्याशियों की सूची जारी करने की बात कही है। हालांकि, बसपा ने 11 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है, लेकिन बेनीवाल का कहना है कि वह मायावती के संपर्क में हैं। कई सीटों पर गठबंधन के लिए बात चल रही है।
इस बीच कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर घमासान जारी है। साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के बीच नेतृत्व को लेकर चल रहा द्वंद किसी से छिपा नहीं है। सूत्र बताते हैं कि चुनाव बाद अपने अस्तित्व को प्रभावशाली बनाने के लिए ये तीनों नेता अपने-अपने खेमे के लोगों को टिकट दिलाने की पुरजोर कवायद में लगे हैं।
भाजपा में भी टिकट को लेकर मारामारी कम नहीं है। कुछ मंत्रियों और विधायकों के टिकट कटने की भी चर्चा जोरों पर हैं। ऐसे में तीसरे मोर्चे के नेता इस इंतजार में हैं कि जिन प्रभावशाली नेताओं को भाजपा अथवा कांग्रेस से टिकट नहीं मिलेगा, उसे वे अपना उम्मीदवार घोषित कर देंगे।
तीसरे मोर्चे के संयोजक हनुमान बेनीवाल पहले भाजपा में ही थे। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से खटपट के चलते वर्ष 2012 में उन्होंने भाजपा छोड़ दी थी। वर्ष 2013 का चुनाव उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में लड़ा था और जीते भी थे। कुछ दिन पहले उन्होंने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया। भाजपा के बागी विधायक और भारत वाहिनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी का भी उन्हें साथ मिला हुआ है।
बेनीवाल के नेतृत्व में गठित तीसरे मोर्चे में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारत वाहिनी पार्टी के अलावा राष्ट्रीय लोकदल, समाजवादी पार्टी और राजस्थान लोकतांत्रिक मोर्चा भी शामिल हैं। सीपीआईएम, सीपीआईएमएल और जदयू ने हाल ही में राजस्थान लोकतांत्रिक मोर्चा का गठन किया है। बेनीवाल तीसरे मोर्चे में बसपा के गठबंधन को लेकर भी आशान्वित हैं। चुनावी समीक्षकों का कहना है कि तीसरे मोर्चे की इस सक्रियता ने कांग्रेस और भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। हालांकि राज्य के दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। भाजपा चुनाव समिति के सह संयोजक सतीष पुनिया कहते हैं कि तीसरे मोर्चे से चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। वह कहते हैं कि राजस्थान में सदैव ही भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है। प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट भी कुछ इसी तरह की बात करते हैं।
उधर, राजस्थान की सियासी नब्ज के जानकार भी कहते हैं कि इस राज्य के मतदाता दो दलीय परम्परा में ही विश्वास करते हैं। यहां के पिछले कई चुनावो के नतीजों से भी इस तर्क को बल मिलता है। दरअसल राजस्थान में करीब हर चुनावों में कुछ बड़े राष्ट्रीय दलों और स्थानीय पार्टिर्यों ने यहां के मतदाताओं को कांग्रेस और भाजपा का विकल्प देने के लिए तीसरे मोर्चे का गठन किया, लेकिन यह प्रयोग कभी सफल नहीं रहा। वर्ष 2008 में तीसरे मोर्चे के नाम पर तीन वामपंथी और छह बसपा के सदस्यों ने विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी, लेकिन 2013 में चली भाजपा लहर में कम्युनिस्टों का तो सूपड़ा ही साफ हो गया था और करीब छह जिलों में प्रभाव रखने वाली बसपा भी तीन सीटों पर सिमट गई थी।
लेकिन, इस बार के चुनावों में हनुमान बेनीवाल और घनश्याम तिवाड़ी के एक मंच पर आने से तीसरे मोर्चे के नए समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं। बेनीवाल ने हाल ही में जयपुर में हुंकार महारैली आयोजित की थी। उसमें आयी भीड़ ने लोगों के कान खड़े कर दिये। दरअसल बेनीवाल जाट समाज से आते हैं और इस समाज का राजस्थान की करीब 90 सीटों पर अच्छा प्रभाव है। इसी तरह घनश्याम तिवाड़ी भी राज्य में काफी लोकप्रिय नेता हैं। समाज के हर वर्ग पर उनका खास असर है। इसके अलावा दोनों नेताओं की जोड़ी तीसरे मोर्चे के लिए इस बार जो रणनीति तैयार कर रही है, उससे राज्य के चुनावी समीकरण काफी बदलने के आसार हैं।
राजस्थान चुनाव के लिए 12 नवम्बर से नामांकन पत्रों का दाखिला प्रारम्भ होगा। इस बीच दीवाली के बाद भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची भी आ जायेगी। इसके बाद तीसरे मोर्चे की सियासी ताकत लगभग स्पष्ट हो जायेगी। राज्य में एक ही चरण में सात दिसंबर को मतदान होंगे।