पांच राजयोगो में मनेगी गुरुपूर्णिमा, गुरुदीक्षा के लिए दशकों बाद अद्भुत संयोग
डॉ मृत्युञ्जय तिवारी
वेबडेस्क। कहा गया है कि, गुरु बिन भव निधि तरहि न कोई, जो वीरंचि शंकर सम होई। अर्थात् जीवन में जिस तरह नदी को पार करने के लिए नाविक पर, गाड़ी में सफर करते समय चालक पर, इलाज कराते समय डॉक्टर पर विश्वास करना पड़ता है, ठीक उसी तरह जीवन को पार लगाने के लिए सद्गुरु की आवश्यकता होती है और उनके मिल जाने पर उन पर आजीवन विश्वास करना होता है । जिन्होंने आज तक नही बनाया है गुरु वे मौका न चूके। सही समय का किया हुआ कार्य ही श्रेष्ठ होता है । इस बार कई दशकों बाद मंगल, बुध, गुरु और शनि की स्थिति चार राजयोग का निर्माण कर रही है इसके अतिरिक्त भी बुधादित्य आदि कई शुभ योग बन रहे हैं । इन्द्र योग में लिया गया गुरू मंत्र सर्वदा सर्वत्र विजयी बनाता है ।
श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है, इस बार ये पावन पर्व 13 जुलाई को पड़ रहा है । पुराणों की कथाओं के अनुसार इसी दिन अनेक ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, उन्होंने पुराणों की रचना की एवं वेदों का विभाजन भी किया, तभी से उनके सम्मान में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है ।
हम सभी जानते हैं सनातन परंपरा में गुरु का नाम ईश्वर से पहले आता है क्योंकि गुरु ही होता है जो आपको गोविंद से साक्षात्कार करवाता है, उसके मायने बतलाता है । डॉ तिवारी बताते है कि गुरु बनाने से अथवा गुरुपूजन से पहले यह जानना आवश्यक है -
गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि । बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥
अर्थात जिस तरह पानी को छान कर पीना चाहिए, उसी तरह किसी भी व्यक्ति की कथनी-करनी जान कर ही उसे अपना सद्गुरु बनाना चाहिए । अन्यथा उसे मोक्ष नहीं मिलता और इस पृथ्वी पर उसका आवागमन बना रहता है । कुल मिलाकर सद्गुरु ऐसा होना चाहिए जिसमें किसी भी प्रकार लोभ न हो और वह मोह-माया, भ्रम-संदेह से मुक्त हो । वह इस संसार में रहते हुए भी तमाम कामना, कुवासना और महत्वाकांक्षा आदि से मुक्त हो । तिवारी जी ने बताया यदि आपको गुरु के पास जाना जरूरी भी हो तो उनके पास विनम्र भाव से जाएं और उन्हें झुक कर प्रणाम करें । जिस तरह कुंए में रस्सी के जरिए डाला गया बर्तन ज्यादा झुकाए जाने पर ज्यादा पानी अपने भीतर समाता है, बिल्कुल उसी तरह गुरु के पास समर्पित भाव से जाने पर उनकी अत्यधिक कृपा बरसती है । गुरु पूजन के कुछ विशेष नियम जिनका ध्यान रखना चाहिए - गुरु के पास उनकी आज्ञा लेकर ही मिलने जाएं और उनकी आज्ञा लेकर ही प्रस्थान करें ।
गुरु से मिले दिव्य मंत्र का जप और मनन करें, कभी भूलकर भी दूसरे से इसकी चर्चा नहीं करनी चाहिए । सच्चे गुरु का सान्निध्य, उनकी कृपा और आशीर्वाद पाने के लिए पहले सुपात्र बनें क्योंकि यदि आपके पात्र में जरा सा भी छेद है तो गुरु से मिले अमृत ज्ञान को आप खो देंगे । भूलकर भी अपने गुरु को नाराज न करें क्योंकि एक बार यदि ईश्वर आपसे नाराज हो जाएं तो सद्गुरु आपको बचा लेंगे । लेकिन यदि गुरु नाराज हो गए तो ईश्वर भी आपकी मदद नहीं कर पाएंगे । कहने का तात्पर्य सद्गुरु के नहीं होने पर आपकी कोई मदद नहीं कर सकता । गुरु की पूजा का अर्थ सिर्फ फूल-माला, फल, मिठाई, दक्षिणा आदि चढ़ाना नहीं है बल्कि गुरु के दिव्य गुणों को आत्मसात करना है । गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार प्रकट करने दिन है । चार राजयोग में रुचक, भद्र, हंस, और शश राजयोग के साथ बुधादित्य योग में गुरुपूर्णिमा। पंच तारा ग्रहों में शुक्र दैत्य गुरु है जो कि अपने मित्र के घर में बैठा है यह भी शुभ संयोग ही है की पांच ग्रह मुदित अवस्था में उपस्थिति देंगे ।