हर घर में फहराएं विजय पताका

अजय पाटिल

Update: 2022-04-01 13:49 GMT

वेबडेस्क। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष प्रतिपदा या युगादि कहा जाता है। इस दिन भारतीय नववर्ष का आरम्भ होता है। विक्रम संवत 2079 भारतीय नववर्ष की आप सभी को बधाई व अनंत शुभकामनाएं। आज के दिन प्रत्येक भारतीय अपने घर में ब्रह्मध्वजा अर्थात विजय पताका फहराकर नववर्ष का स्वागत करें।

चैत्र प्रतिपदा को वर्षारंभ अर्थात नववर्ष क्यों मनाएं?

चैत्र प्रतिपदा को वर्षारंभ दिन अर्थात नववर्ष क्यों मनाए? इसके कई कारण हैं। जिनकी विस्तृत चर्चा हम यहां करेंगे। भारतीय त्यौहारों के संदर्भ में यह सत्य है कि ना सिर्फ भारतीय नव वर्ष, बल्कि प्रत्येक भारतीय त्यौहार हमारी सभ्यता व संस्कृति से गहरे जुड़े हुए हैं और हमारे भूत यानि हमारे बुजुर्ग, वर्तमान यानि हमारे युवा पीढ़ी और भविष्य यानि बच्चों के बीच में गहरा सामंजस्य स्थापित करते हैं। भारतीय त्यौहारों में एक संतुलन है। संतुलन है जीवन के आध्यात्मिक, सामाजिक, सांकृतिक, व्यावसायिक पक्षों से जबकि पाश्चात्य त्यौहारों में असंतुलन। भारतीय त्यौहार हमारी सनातन संस्कृति को संरक्षित व संवर्धित करते हैं जबकि पश्चिमी त्यौहार शराब, शबाब इत्यादि आसुरी संस्कृति के पोषण व संवर्धन करते हैं।

विजय का प्रतीक - 

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष प्रतिपदा या युगादि कहा जाता है। इस दिन भारतीय नववर्ष का आरम्भ होता है। कहते हैं शालिवाहन के सैनिकों की सेना से शत्रुओं का पराभव किया था। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 'उगादि' और महाराष्ट्र में यह पर्व गुढी पाडवा' के रूप में मनाया जाता है।

इसी दिन ब्रह्माजी ने किया था सृष्टि का निर्माण

अब चर्चा करते हैं इस दिवस को वर्षारंभ के रूप में मनाने के सबसे महत्त्वपूर्ण कारण की। किवदंतियों के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था।उनके नाम से ही 'ब्रह्मांड' नाम प्रचलित हुआ। इसी दिन से नया संवत्सर (नवसंवत्सर) शुरू होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि का निर्माण हुआ था, इसलिए इस दिन हिन्दू नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है। इस सुंदर ब्रह्माण्ड की निर्मिती इसी दिन हुई थी। । सत्ययुग में इसी दिन ब्रह्मांड में विद्यमान ब्रह्मतत्त्व पहली बार निर्गुण से निर्गुण-सगुण स्तर पर आकर कार्यरत हुआ तथा पृथ्वी पर आया। इस दिन को संवत्सरारंभ, गुडीपडवा, युगादी, वसंत ऋतु प्रारंभ दिन आदी नामों से भी जाना जाता है।

चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस

शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।

नववर्ष मनाने का नैसर्गिक कारण

सभी ऋतुओं में बहार लानेवाली ऋतु है, वसंत ऋतु। इस ऋतु में स्वाभाविक रूप से मन प्रसन्न व उत्साहित रहता है। शिशिर ऋतु में पेडों के पुराने पत्ते झड़ चुके होते हैं, जबकि वसंत ऋतु के आगमन से पेडों में कोंपलें अर्थात नए कोमल पत्ते उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-भरे दिखाई देते हैं । कोयल की कूक सुनाई देती है। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्णजी की विभूतिस्वरूप वसंत ऋतु के आरंभ का यह दिन है। यह एक नैसर्गिक कारण इस माह में वर्षारंभ को मनाने का।

वर्षारंभ मनाने का ऐतिहासिक कारण

जब इस दिन के ऐतिहासिक महत्व पर विचार करें तब हम पाते हैं कि इसी दिन शकोंने हूणोंको पराजित कर विजय प्राप्त की एवं भारतभूमि पर हुए आक्रमण को मिटा दिया - शालिवाहन राजा ने शत्रु पर विजय प्राप्त की और इस दिन से शालिवाहन पंचांग प्रारंभ किया। इस दिन का एक विशेष ऐतिहासिक महत्व है। अतः इसे वर्षारंभ के रूप में मनाया जाता है।

वर्षारंभ मनाने का पौराणिक कारण

इस दिन का विशेष पौराणिक महत्व है। इस दिन भगवान श्रीराम ने बाली का वध किया था वर्षारंभ का अतिरिक्त विशेष महत्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन अयोध्या में श्रीरामजी का विजयोत्सव मनाने के लिए अयोध्यावासियों ने घर-घर के द्वार पर धर्मध्वज फहराया। इसके प्रतीकस्वरूप भी इस दिन धर्मध्वज फहराया जाता है। महाराष्ट्र में इसे 'गुढी' कहते हैं। मराठी समाज इस दिन विशेष उत्साहित रहता है। यह समाज इस दिवस को एक उत्सव के रूप में मनाता है।

नववर्षारंभ कैसे मनाएं ? (ब्रह्मध्वजा स्थापित करना)

1. ब्रह्मध्वजा सूर्योदय के उपरांत, मुख्य द्वार के बाहर; परंतु दहलीज के पास (घर में से देखें तो) दाईं बाजू में भूमि पर कोई ऊंचाई रखकर उस पर स्थापित करें।

2. ब्रह्मध्वजा स्थापित करते समय उसकी स्वस्तिक पर स्थापना कर आगे से थोडी झुकी हुई स्थिति में उच्चतम स्थल पर स्थापित करें।

3. सूर्यास्त पर गुड़ का नैवेद्य अर्पित कर ब्रह्मध्वज निकालें।

हमारी सनातन संस्कृति व परंपराएं कभी भी कठोर नहीं रहीं। ये हमेशा ही लचीली व मानवता के हित में रहीं हैं। यदि ब्रह्मध्वजा स्थापित करने के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध ना हो तो नववर्ष का आध्यात्मिक लाभ लेने से वंचित न रहें। इसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था है।

1. नया बांस उपलब्ध न हो, तो पुराना बांस स्वच्छ कर उसका उपयोग करें। यदि यह भी संभव न हो, तो अन्य कोई भी लाठी गोमूत्र से अथवा विभूति के पानी से शुद्ध कर उपयोग कर सकते हैं।

2. नीम अथवा आम के पत्ते उपलब्ध न हों, तो उनका उपयोग न करें ।

3. अक्षत सर्वसमावेशी होने से नारियल, बीडे के पत्ते, सुपारी, फल आदि उपलब्ध न हों तो पूजन में उनके उपचारों के समय अक्षत समर्पित कर सकते हैं । फूल भी उपलब्ध न हों, तो अक्षत समर्पित की जा सकती है।

4. नीम के पत्तों का भोग तैयार न कर पाएं तो मीठा पदार्थ, वह भी उपलब्ध न हो पाए तो गुड अथवा चीनी का भोग लगा सकते हैं ।

मेरा मानना है हमारा इतिहास व हमारी संस्कृति हमारे भूगोल की रक्षा करते हैं। जब कभी भी कोई राष्ट्र अपना गौरवशाली इतिहास भूलता है या अपनी संस्कृति से विमुख होता है तो उसका भूगोल भी संकुचित हो जाता है। अतः हम सभी का यह नैतिक दायित्व है कि हम अपनी सनातन संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन करें। सतत व निरंतर। यदि हम अपने समृद्ध नववर्ष को छोड़कर विकृत अंग्रेजी नववर्ष की तरफ भागते हैं तो इसे हमारी अज्ञानता ही कहा जायेगा। आइये संकल्प करें इस वर्ष हमारी विजय पताका घर घर प्रत्येक घर फहराई जाए। तभी भारतीय नववर्ष की सार्थकता पुनः स्थापित होगी।

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