नई विश्व व्यवस्था की दस्तक - फीजी में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन

अनिल जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी संस्थान

Update: 2023-03-08 17:22 GMT

इस बार का 12 विश्व हिंदी सम्मेलन कई मायनों में अलग था  । उसके आयोजन से कुछ महत्वपूर्ण संकेत निकल रहे हैं और सार्थकता के जो आयाम उसमें दिखाई दिए वे केवल विश्व हिंदी सम्मेलन तक सीमित नहीं थे । उनसे स्पष्ट हो रहा था एक नई विश्व व्यवस्था अपना आकार और स्वरूप ग्रहण कर रही है । भारत अब एक ऐसा विकासशील देश नहीं है जो बुनियादी आवश्यकताओं के लिए महाशक्तियों पर निर्भर हो बल्कि वह ऐसा देश है जो  परिवर्तन के बाद विकसित   होती नई संरचना का महत्वपूर्ण भाग है । यह संभावित परिवर्तन केवल आर्थिक या सामरिक नहीं होगा बल्कि  दुनिया में भाषाई और सांस्कृतिक परिवर्तन अपेक्षित है । इस प्रक्रिया में  सोच और दृष्टि के बुनियादी औपनिवेशिक आधार हिल जाएँगे । अरबों लोगों की भाषाएं अपने अधिकार मांगेगी । उन्हें बोलने वाले अपने विकास के स्वप्न और अपेक्षाएं पूरे ना होने के कारणों का विश्लेषण करेंगे । यह सम्मेलन अन्य उपलब्धियों के अतिरिक्त दुनिया में भाषायी और सांस्कृतिक संतुलन बेहतर करने के प्रयासों को भारत द्वारा  गति देने के लिए याद किया जाएगा।

अनिल जोशी, उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी संस्थान

इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण वक्तव्य भारत के विदेश मंत्री और विशेषज्ञ  राजनयिक  श्री जयशंकर का उद्घाटन सत्र में था ।उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह सम्मेलन नई विश्व व्यवस्था का संकेत भी है। आज प्रवासन (माइग्रेशन)और एक स्थान से दूसरे पर जाना (मोबिलिटी)स्वाभाविक रूप में विकसित हो रहा है । यह विशेष रूप से विकसित होते देशों की ज्ञान व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है। इस प्रवासन के कारण आए  लोग अपनी पहचान और अस्मिता के प्रति सजग  हैंं। इस दृष्टि से वैश्वीकरण मैं सब भाषाओं का समुचित स्थान आवश्यक है। आज से 75 साल पहले जब भारत आज़ाद हुआ , उस समय और उसके बाद आज़ाद हुए देश आर्थिक रूप से तो स्वतंत्र हुए परंतु राजनीतिक और सामाजिक स्वतंत्रता उन्हें प्राप्त नही हुई । उनकी वर्तमान सोच औपनिवेशिक दृष्टि का भी प्रतीक है । आज हम उससे मुक्त हो रहे हैं । इसके कारण विश्व व्यवस्था में पुनर्संतुलन की आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि समय के साथ स्वावलंबन,स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते हुए देशों ने देखा उनका विकास जब तक अधूरा है जब तक फिर वे अपनी भाषाई और सांस्कृतिक अस्मिता को पुनर्जीवित नहीं करते । 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन ऐसा ही एक महाअनुष्ठान था। 

सम्मेलन में बोलते हुए भारत के विदेश राज्य मंत्री और सम्मेलन के संयोजक श्री मुरलीधरन ने इस बात पर बल दिया कि हमें भाषा के बारे में केवल भावनात्मक आधार पर नहीं सोचना चाहिए । उन्होंने सबके ध्यान में लाया कि इस सम्मेलन का थीम या मुख्य विषय ‘पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक है । हिंदी केवल सैद्धांतिक ज्ञान या पौराणिक ग्रंथों तक सीमित नहीं है ।वह एक तरफ तो भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा से विचार ग्रहण करती है दूसरी तरफ कृत्रिम मेधा के माध्यम से आधुनिकतम ज्ञान को खंगालने का प्रयत्न करती है ।यदि हिंदी को आधुनिक ज्ञान विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भाषा बनना है तो ऐसे नए और आधुनिक क्षेत्रों में उसका विकास अवश्यंभावी है अन्यथा वह सांस्कृतिक संदर्भ में प्रयुक्त होने वाली और निजी और पारिवारिक परिवेश में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा के रूप में सीमित रह जाएगी । विदेश राज्य मंत्री श्री मुरलीधरन ने संयुक्त राष्ट्र संघ में जून 2022 में बहुभाषावाद की संकल्पना के प्रवेश की चर्चा की और बताया कि सोशल मीडिया सहित संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न माध्यमों में भारत की तीन भाषाओं हिंदी , उर्दू बंगाली का प्रवेश हो गया  ।भारत से गए गृह राज्य मंत्री श्री अजय मिश्रा ने भी इसी थीम पर बोलते हुए उदाहरण सहित कृत्रिम मेधा के उपयोग को सम्मेलन के सामने रखा । यह एक तरफ़ तो हमारे आत्मविश्वास को भी बताता है और दूसरी तरफ हमारी भाषाओं के लिए दिशा संकेत भी प्रदान करता है।

सम्मेलन के उद्घाटन में फीजी के राष्ट्रपति, पहले दिन रात्रि भोज के समय फिजी के प्रधानमंत्री , समापन के समय फीजी के उप प्रधानमंत्री और विभिन्न कार्यक्रमों में उपस्थित फीजी  का मंत्रिमंडल यह दर्शा रहा था कि फीजी इस सम्मेलन को , हिंदी भाषा को और भारत फीजी के संबंधों को कितना महत्व देता है । फीजी का सर्वोच्च राजनीतिक , सामाजिक नेतृत्व भारत से आए प्रतिनिधियों का स्वागत कर रहा था और आने वाले समय में भारतीय मूल के लोगों , गिरमिटिया समाज के वंशजों और हिंदी में रुचि रखने वालों के लिए ठोस और आकर्षक प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा था ।यहां यह भी दिलचस्प है कि फीजी  में हाल ही में सत्ता परिवर्तन हुआ है ।ऐसे में कुछ लोगों के मन में यह आशंका थी कि नई सरकार बनने पर पूर्व निर्धारित विश्व हिंदी सम्मेलन क्या पहले की तरह संभव हो सकेगा ? परंतु यह आशंका निर्मूल निकली और फीजी सरकार की ओर से बड़े उत्साह के साथ सम्मेलन के आयोजन में सहयोग मिला।

भाषाओं पर दिया गया फीजी के प्रधानमंत्री का वक्तव्य बहुत महत्वपूर्ण था उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है भाषा हमारे दिमाग में, हृदय में रहती है।  यह हमारे जीवन की लय है।  उन्होंने इस बात पर दुख प्रकट किया कि औपनिवेशिक दृष्टि के कारण स्कूल ,कॉलेजों में विद्यार्थी अपनी भाषाओं का उपयोग करते हुए शर्म महसूस करते हैं ।उनका सरोकार हिंदी के साथ-साथ ई- तोकेई की भाषा की और भी था जिसका  प्रयोग कमतर होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि स्कूल और कालेजों के स्तर पर हिंदी और ई -तोकेई  दोनों भाषाएँ लुप्त होती जा रही हैं।

उन्होंने और समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि फीजी के उप - प्रधानमंत्री ने कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घोषणाएं कि जो भारतीय मूल के निवासियों के लिए उत्साहवर्धक हैं।  उन्होंने बताया कि इस वर्ष से फीजी में 14 मई को गिरमिट दिवस का आयोजन किया जाएगा और फीजी के इतिहास में पहली बार गिरमिटिया आगमन दिवस पर एक दिन का  सार्वजनिक अवकाश दिया जाएगा । फिजी के प्रधानमंत्री ने कहा कि वे  गिरमिटियों द्वारा फीजी  के निर्माण में किए गए योगदान और उनकी पीड़ा को समझते हैं इसलिए उसको उचित महत्व दिया जाना चाहिए।  इसी क्रम में फीजी के  उपप्रधान मंत्री श्री विमान प्रसाद ने घोषणा कि वर्तमान सरकार ने यह तय किया है कि फीजी की संसद में ई -तोकेई और हिंदी किसी भी भाषा में अपना वक्तव्य रखा जा सकता है और इसकी शुरुआत वर्तमान उपप्रधान मंत्री  ने  हिंदी में अपना वक्तव्य देकर की । यह शुरूआत बहुत महत्त्वपूर्ण है। 

विश्व हिंदी सम्मेलन में हिंदी फिल्मों के माध्मम से हिंदी के प्रचार - प्रसार की भी बात हुई ।   बालीवुड की विश्व व्यापी लोकप्रियता के संदर्भ में विदेश मंत्री ने  बताया कि उद्घाटन कार्यक्रम में पधारे फीजी के राष्ट्रपति ने उन्हें बताया कि उन्हें शोले फ़िल्म बहुत पसंद है । मजेदार बात यह है  कि उन्हें इस फिल्म का गाना , ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे विशेष रूप से पसंद  है । उनकी बात सुन कर मुझे वर्ष 2015 में एक फिल्म फैस्टिवल के दौरान पधारे फीजी के तत्कालीन राष्ट्रपति का किस्सा याद आया ।उस समय मैं फीजी में भारत के हाई कमीशन में कार्यरत था । वे ‘बजरंग भाई  जान ‘फिल्म की प्रस्तुति के समय आए थे। जब सलमान खान और अन्य सुपर स्टारों की बात चल रही थी । पुरूष सुपर स्टारों से अलग हटते हुए उन्होंने कहा कि उनकी खास  पसंद ऐश्वर्य राय है। पैसेफिक के छोटे- बड़े देशों में हिंदी सिनेमा अत्यंत लोकप्रिय है। ईसाई धर्म में आस्था रखने वाले बहुतायत देश हालीवुड के एक्शन और सैक्स को आधाऱ बना कर बनाई गई फिल्मों को बहुत पसंद नहीं करते।

अपना जीवन हिंदी के प्रति समर्पित करने वाले विद्वानों को इस विश्व हिंदी सम्मेलन में सम्मानित किया गया । इस सम्मेलन की विशेषता 35 से ज़्यादा देशों के हिंदी विद्वानों की भागीदारी थी । इनमें विदेशी मूल की हंगरी की मारिया नगेशी , स्वीडन से प्रो वैसलर भारतीय मूल के अमेरिका से शिक्षण विशेषज्ञ प्रो सुरेंद्र गंभीर , न्यूज़ीलैंड के पूर्व गवर्नर जनरल श्री सत्यानंद , पत्रकार श्री रोहित हैप्पी , आस्ट्रेलिया की श्रीमती रेखा राजवंशी आदि बड़ी संख्या में शामिल थे । भारत के विदेश मंत्री श्री जय शंकर ने समापन भाषण में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए प्रशंसा की । फीजी में शानदार व्यवसाथाओें के लिए मुख्य समन्वयक श्री विश्वास सपकाल और फीजी मे भारत के उच्चायुक्त प्रशंसा के पात्र हैं । 

तमिल मूल के विदेश मंत्री श्री जयशंकर और मलयाली मूल के  विदेश राज्य मंत्री श्री मुरली धरन की अगुवाई में हुआ यह सम्मलेन इस रूप में भी महत्वपूर्ण था कि यह भारतीय भाषाओं में पारस्परिक समन्वय और संवाद का सजीव उदाहरण था।  पहले सम्मेलन से ही भारतीय भाषाओं को विश्व हिंदी सम्मेलनों  में समुचित सम्मान दिया जाता है। विमल मित्र जैसे बंगाली लेखकों ने विश्व हिंदी सम्मेलन मे भाग लिया है। इसी क्रम में भारतीय भाषाओं के संदर्भ में एक विशेष सत्र भी रखा गया था। सम्मेलन में तमिलनाडु से श्रीमती भवानी , श्रीमती पद्मावती पंजाब से डॉ हरमोहिंदर सिंह बेदी , गुजरात से डॉ बलवंत जानी , उत्तर पूर्व के विद्वानों आदि की भागीदारी से स्पष्ट था कि भारतीय भाषाओं के विद्वानों की सम्मेलन में अच्छी भागीदारी थी । विदेश मंत्री श्री जयशंकर ने नई विश्व व्यवस्था में हिंदी के साथ सभी भाऱतीय भाषाओं का उल्लेख किया। इस संदर्भ में यह आयोजन भारत सरकारी की नीति और  भारतीय भाषाओं के पारस्परिक समन्वय और संवाद की संकल्पना  के अनुकूल है। 

कुल मिला कर नई विश्व व्यवस्था में अपेक्षित परिवर्तनों को केन्द्र में रख आयोजित इस विश्व हिंदी सम्मेलन ने भारत सरकार की सांस्कृतिक और भाषायी नीतियों को वैश्विक स्तर पर रखा है ।  यह आयोजन भारत की जी 20 की अध्यक्षता , विश्व में  उसके बढ़ते कद और बदलती वैश्विक संरचना के अनुकूल है।

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