एक बार फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी सुर्खियों में है। पहले तो देश में होने वाले विवादों पर ही यहां से बयान आते थे लेकिन अब विदेश में हो रही गतिविधियों को लेकर यहां छात्र प्रर्दशन करने लगे। बीते कुछ दिनों से इजरायल और हमास के बीच युद्ध जारी है। बीते 7 अक्टूबर को जब हमास ने चंद मिनटों में इजरायल पर हजारों रॉकेट दिए, उसके बाद एक्शन में आए इजरायल ने जवाब दिया। इस बीच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सैकड़ों छात्रों ने फिलिस्तीन के समर्थन में कैंपस में प्रदर्शन किया और गत शुक्रवार को हमास के लिए नमाज भी पढ़ी और वी स्टैंड फिलिस्तीन के साथ धार्मिक नारेबाजी भी की। छात्रों ने धार्मिक नारेबाजी करते हुए अल्लाह हू अकबर के नारे भी लगाए।
इस घटनाक्रम का यदि आकलन करें तो यह मात्र किसी विश्वविद्यालय का किसी के प्रति समर्थन या विरोध तक नहीं माना जाता चूंकि प्रश्न यह है कि क्या इन छात्रों के पीछे कोई बड़ी राजनीतिक सत्ता है या आतंकी संगठन? चूंकि देश में एकमात्र यही ऐसी यूनिवर्सिटी है जो देश-विदेशों में हो रहे बड़े मामलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। पूरे देश में इस मामले को लेकर कहीं भी किसी भी यूनिवर्सिटी या छात्र समूह ने कोई भी बयान नहीं दिया। इससे पहले भी कई बार यहां से विवादित बयान आ चुके हैं। इस प्रकरण में यह बात समझ नहीं आती कि आखिर वहां पढ़ रहे विद्यार्थियों का माइंड वॉश करने के पीछे क्या व किस किसकी मंशा है। यदि आतंकी व अन्य किसी बड़ी पार्टी इस खेल के पीछे हैं, तो निश्चित तौर पर देश को एक बड़ा खतरा है। हम बाहरी लोगों से लड़ने में तो पूर्णत सक्षम हैं लेकिन आस्तीन में पल रहे सांपों का इलाज मुश्किल है। बीते दिनों किसी अन्य मामले पर मेरे साथ एक टीवी चैनल डिबेट में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व उपाध्यक्ष सज्जाद राथर ने लाइव यह कहा कि कश्मीर हिंदुस्तान का भाग नहीं हैं। इसके अलावा भी कई देश विरोधी बातें कहते हुए उसने कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी पर कई आरोप लगाए। साथ में यह भी कहा इन सबके के लिए पार्टियां ही जिम्मेदार है जो यहां पढ़ रहे छात्रों में मतभेद समझती है लेकिन जब उससे पूछा गया कि क्या मतभेद है तो वह कोई उत्तर नहीं दे पाया चूंकि वह सिर्फ तथ्यहीन बातों को लेकर ही आग उगल रहा था। उसके इन वाक्यों से स्पष्ट हो चुका था कि जो इतने बड़े प्लेटफॉर्म पर हमारे देश के लिए आग उगल सकता है तो उसके मन में और कितना जहर होगा।
यह तो केवल एक ही छात्र की कहानी है। बाकी ऐसे लोगों की तो पूरी जमात ही है। सबसे ज्यादा मुसलमान हमारे देश में हैं। हम यह कहते हैं कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है। बावजूद इसके, ऐसी घटनाएं मन को कचोटती हैं। यदि एएमयू व जेएनयू जैसी संस्थाओं पर निगरानी नहीं रखी गई तो कहीं यह संस्थाएं आतंकियों का अड्डा व फैक्ट्री न बन जाएं। यहां हमारे शासन-प्रशासन पर सवालिया निशान उठता है कि लगातार हो रही इस तरह कि घटनाओं पर हमारा सिस्टम गंभीरता क्यों नहीं दिखा रहा। क्या यह चुनौती है या फिर असफलता? चुनौती है तो भी स्वीकार करनी पड़ेगी व असफलता है तो भी उसमें सुधार करना होगा। क्योंकि दोनों ही स्थिति में बड़ा नुकसान देश के वर्तमान व भविष्य को है। यदि इस जहर को फैलने से समय से इनकी उपज पर काबू पाना ही होगा, क्योंकि यह इन संस्थाओं में पढ़ रहे बच्चों के माता-पिता के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है। कोई भी अभिभावक नहीं चाहता कि उसके बच्चे इस तरह की राह पर चलें।
कॉलेज के समय से ही विद्यार्थियों के छात्रसंघ के चुनाव होते हैं लेकिन उनका किसी देश व दुनिया में हो रही बड़ी घटनाओं को लेकर विवादास्पद बयान देने पर कड़ी कार्यवाही की जरूरत है। बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि एएमयू के छात्रों ने वहां पढ़ा शिक्षकों व अन्य स्टाफ की इज्जत करनी बंद कर दी। सरकारी आदेशों को अपने स्वयं के बनाए फरमानों में बदल दिया जिससे वहां की स्थिति अच्छी नहीं बताई जा रही।
देश की तस्वीर बदलनी है तो एक साथ चलना होगा और इस बात को एएमयू को समझना होगा, यदि वह इस बात को प्यार से समझते हैं तो ठीक अन्यथा इस मामले को लेकर सरकार को बड़े एक्शन ऑफ प्लान की जरूरत है चूंकि यदि विद्यार्थियों के मन में अभी देश विरोधी भावना बस गई तो देश में विरोधाभास बढ़ जाएगा जो देश की एकता के लिए घातक है। युवा स्थिति में देश को एक साथ लेकर चलने की भावना उत्पन्न होगी तभी बात बनेगी जिसके लिए सबको एक-दूसरे को समझने की जरूरत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)